भोपाल. ग्वालियर से दिल्ली तक जनादेश 2007 पदयात्रा सत्याग्रह का नेतृत्व किया.उसके बाद ग्वालियर से दिल्ली जाने के दरम्यान मोहब्बत की नगरी में जन सत्याग्रह 2012 पदयात्रा सत्याग्रह का नेतृत्व किया.उसके बाद जनांदोलन 2018 में पदयात्रा सत्याग्रह ग्वालियर से चलकर मुरैना में जाकर समाप्त हो गया. 2020 में तीन कृषि कानूनों के विरोध में मुरैना से दिल्ली की ओर पैदल मार्च शुरू करने का ऐलान किया गया है.ऐलान करने वाले एकता परिषद के संस्थापक गांधीवादी विचारक पी वी राजगोपाल हैं. 17 दिसंबर को मध्य प्रदेश के मुरैना से दिल्ली की ओर पैदल मार्च शुरू करेंगे. बता दें कि केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में 25 नवम्बर से किसान आंदोलनरत हैं. देश भर के किसानों (Kisan Andolan) ने 8 दिसंबर को असरदार भारत बंद (Bharat Bandh) रखा. किसान केंद्र सरकार द्वारा इस साल मानसून सत्र में पास किए गए तीन कृषि कानूनों पर नाराज हैं और वह चाहते हैं कि ये कानून रद्द कर दिए जाएं. हालांकि सरकार की ओर से लगभग यह स्पष्ट संदेश दिया जा चुका है कि वह कानून वापस नहीं लेगी बल्कि वह उचित संशोधन को तैयार है.आज किसान आंदोलन का अठारहवा दिन है. इस बीच आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा है. किसान संगठनों ने दिल्ली-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर ट्रैफिक ठप करनी की चेतावनी दी है. किसानों ने ऐलान किया है कि आज वो दिल्ली जयपुर हाईवे और दिल्ली-आगरा हाईवे को बंद कर देंगे. किसानों के ऐलान के साथ ही हाईवे पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है. गुरुग्राम और फरीदाबाद में पुलिस अलर्ट है और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं.वहीं अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने आगामी 14 दिसंबर को राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम घोषित किया है. एकता परिषद के संस्थापक और गांधीवादी विचारक पी वी राजगोपाल ने कहा कि जनांदोलन 2018 में पदयात्रा सत्याग्रह ग्वालियर से चलकर मुरैना में जाकर अंत किया गया था. वहीं से यानी मध्य प्रदेश के मुरैना से 17 दिसंबर से दिल्ली की ओर पैदल मार्च शुरू करने का ऐलान किया है.इससे पूर्व मुरैना से दिल्ली की ओर किसानों के समर्थन में किए जाने वाले मार्च से पहले राजगोपाल जबलपुर, कटनी, दमोह, सागर होते हुए ग्वालियर पहुंचेंगे और फिर 17 दिसंबर को मुरैना से पैदल मार्च शुरू करेंगे. उनके साथ सामाजिक कार्यकर्ता व किसान होंगे. राजगोपाल ने कहा कि केंद्र सरकार ने तीनों कानून अध्यादेश के रास्ते सामने के कारण पैदल चलने को बाध्य कर दिया है.यह वास्तव में काला कानून है जो इस प्रकार है, पहला कानून है अत्यावश्यक वस्तु अधिनियम का. इस कानून मे केंद्र सरकार ने संशोधन किया है ताकि खाद्य-उत्पादों पर लागू संग्रहण की मौजूदा बाध्यताओं को हटाया जा सके.दूसरा, केंद्र सरकार ने एक नया कानून (द फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रोमोशन एंड फेसिलिएशन) अध्यादेश, 2020) एफपीटीसी नाम से बनाया है जिसका मकसद कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) के एकाधिकार को खत्म करना और हर किसी को कृषि-उत्पाद खरीदने-बेचने की अनुमति देना है.तीसरा, एक नया कानून एफएपीएएफएस (फार्मर(एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्युरेंस एंड फार्म सर्विसेज आर्डिनेंस,2020) बनाया गया है. इस कानून के जरिये अनुबंध आधारित खेती को वैधानिकता प्रदान की गई है ताकि बड़े व्यवसायी और कंपनियां अनुबंध के जरिये खेती-बाड़ी के विशाल भू-भाग पर ठेका आधारित खेती कर सकें. उन्होंने कहा कि जो तीन कृषि कानून लाए गए हैं वह किसान विरोधी हैं. यही कारण है कि किसान आंदोलन के रास्ते पर हैं.केंद्र सरकार को इन तीनों कानूनों को रद्द करना चाहिए और किसानों की मांगों को मानना चाहिए.उन्होंने आगे कहा कि, केंद्र सरकार जहां तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने के साथ ही यह भी तय करना चाहिए कि आगामी समय में जो भी किसान और खेती से संबंधित कानून बनेंगे वे किसानों से संवाद के बाद ही बनाए जाएंगे.
रविवार, 13 दिसंबर 2020
मुरैना से दिल्ली की ओर पैदल मार्च शुरू करेंगे 17 दिसम्बर से
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