- दो दिवसीय नुक्कड़ महोत्सव, जश्न-ए-नुक्कड़, SXCMT में 20 फरवरी से शुरू होगा
पटना। पटना के सेंट जेवियर्स कॉलेज ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी (SXCMT) का मास कम्युनिकेशन विभाग और जेवियर थिएटर क्लब के संयुक्त तत्वावधान में 20 फरवरी से दो दिवसीय नुक्कड़ नाटक महोत्सव का आयोजन किया गया हैं। एक प्रेस विज्ञप्ति में, SXCMT के प्रिंसिपल फादर टी निशांत एसजे और आयोजन समिति के चेयरपर्सन अजय कुमार ने कहा, 'जश्न-ए-नुक्कड़' के नाम से आयोजित कार्यक्रम के दौरान बिहार की 13 टीमें नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत करेंगी। उन्होंने कहा कि नाटकों का मंचन SXCMT कैंपस में डॉ फादर जैकब स्रामपिक्कल रंगमच पर किया जाएगा। उन्होंने कहा कि सभी कोविद -19 प्रोटोकॉल को दो दिवसीय समारोह के दौरान बनाए रखा जाएगा। सुप्रसिद्ध रंगकर्मी तनवीर अख्तर ने उद्घाटन दिवस पर मुख्य अतिथि होंगे, जबकि वरिष्ठ रंगकर्मी समी अहमद समापन दिवस पर मुख्य अतिथि रहेंगे । आयोजन में भाग लेने वाली टीमों में एचएमटी, पटना; अभिजान, पटना; मंच, नौबतपुर; रंग समूह, पटना; रंग सृस्टि, पटना; आशा रेपर्टायर, पटना; प्रेरणा, पटना; चिराग, बक्सर; आईपीटीए, पटना सिटी; निर्माण मंच, हाजीपुर; पुण्यार्क, पंडारक; सूत्रधार, खगौल और जेवियर थिएटर क्लब, पटना।
कौन हैं डॉ फादर जैकब स्रामपिक्कल
सेवा केंद्र कुर्जी में स्थित रवि भारती दूर संचार के निदेशक थे डॉ फादर जैकब स्रामपिक्कल ।डॉ फादर जैकब स्रामपिक्कल का जन्म 12 दिसम्बर 1950 को केरल में हुआ था। 14 अगस्त 1968 में येसु समाज में प्रवेश किये। 15 अप्रैल 1982 में पुरोहित बने।उन्होंने रवि भारती में नुक्कड़ नाटक शुरू करवाया था। उस समय रेणु ऑपेन थियेटर बनवाये।वहीं पर नुक्कड़ नाटक होता था।आज उनके निधन 9 साल के बाद नाटकों का मंचन SXCMT कैंपस में डॉ फादर जैकब स्रामपिक्कल रंगमच पर किया जाएगा। उन्होंने अपने शुरुआती दिनों से ही मीडिया के क्षेत्र में गहरी दिलचस्पी दिखाई। 1977 में 1979 से पटना के नवज्योति निकेतन में हमारे ऑडियो-विजुअल सेंटर, कोलकाता के चित्रबनी में और रवि भारती में उन्हें शुरुआती शुरुआत मिली। मुंबई में हिंदी में एमए करने के बाद, और मीडिया में उनकी पीएचडी की। लीड्स, इंग्लैंड, जैकब बरबीघा में देहाती मंत्रालय के एक साल के लिए लौट आए। फिर वह 1984 से 1996 तक रवि भारती के सहायक निदेशक और निदेशक के रूप में चले गए। उनकी सेवाएं असिस्टेंस सेंटर NISCORT द्वारा दिल्ली में मांगी गई थीं और वह 1997 से 2003 तक वहां रहे थे। आखिरकार, उन्हें रोम बुलाया गया, और ग्रेगेशियन में मीडिया पढ़ाया गया 2003 से उनकी मृत्यु तक।
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