- राष्ट्रद्रोह से कम नहीं है, चार कक्षाएं पढ़कर अपनी हीं संस्कृति को नकार देना - डॉ. रविन्द्र कान्हेरे
- मातृभाषा दिवस पर मातृभाषा मंच द्वारा किया गया संज्ञान-5 और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन
भोपाल - जब हमारा समाज संकट में था, पराधीन था तब भारतीय भाषाएँ हीं थीं जिन्होंने हमारी संस्कृति को जीवित रखा. तुलसीदास ने अवधी में रामचरितमानस की रचना की, कहने को तो इसे बस एक पुस्तक कह सकते हैं लेकिन इसी पुस्तक के सहारे लोगों ने राम को, राम के मूल्यों को जिन्दा रखा. इसी पुस्तक को साथ लिए भारतीय दुनिया के हर कोने में गए और अपना यह विश्वास बनाये रखा कि कितने भी संकट का समय क्यूँ न हो अधर्म पर धर्म की विजय जरुर होती है. शिवाजी ने मराठी भाषा के आधार पर हिन्दुओं को संगठित किया तब जाकर पहले हिन्दवी साम्राज्य की स्थापना हुई. यह बात प्रवेश एवं शुल्क नियामक समिति के अध्यक्ष एवं संज्ञान – 5 के मुख्य अतिथि डॉ. रविन्द्र कान्हेरे ने कही. अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर मातृभाषा मंच के द्वारा रविन्द्र भवन में मातृभाषा समारोह का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में जहाँ एक तरफ “सांस्कृतिक पुनरुथान में मातृभाषा की भूमिका” पर बुद्धिजीवियों द्वारा विमर्श किया गया वहीँ शाम में विभिन्न भाषाई समूहों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी. संज्ञान – 5 में प्रवेश एवं शुल्क नियामक समिति के अध्यक्ष डॉ. रविन्द्र कान्हेरे मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे. राजीव गाँधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सुनील कुमार तथा प्रसिद्ध ह्रदय रोग विशेषज्ञ डॉ राजेश सेठी ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये. कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व पुलिस महानिदेशक एवं स्वागत समिति के अध्यक्ष श्री संतोष कुमार राउत जी ने की. सांस्कृतिक कार्यक्रम में पूर्व न्यायाधीश श्री अशोक पाण्डेय मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे.
मातृभाषा में हो प्राथमिक शिक्षा
श्री सुनील कुमार ने कहा कि यह दुःख का विषय है कि आज भी विश्व में लगभग 40% बच्चे अपनी मातृभाषा से अलग भाषा में प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करते हैं. इस कारण उन्हें कक्षा और हर विषय में संघर्ष करना पड़ता है. इस बात का पूरा प्रयास करना चाहिए की बच्चों की प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में हीं हो. उन्होंने कहा कि मातृभाषा, मातृभूमि और संस्कृति तीनों पृथक-पृथक नहीं बल्कि एक ही हैं, एक दुसरे से जुड़े हुए हैं. इनका संरक्षण और संवर्धन प्रत्येक नागरिक का दायित्व है.
हमारी भाषा हीं है हमारी पहचान
श्री राजीव सेठी ने इजरायल का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर एक छोटा सा राष्ट्र अपनी मातृभाषा और संस्कृति के प्रति प्रतिबद्ध होकर इतना शक्तिशाली और शक्ति संपन्न बन सकता है, तो अगर यही भाव हम 130 करोड़ भारतीयों में आ जाये तो क्या कुछ संभव नहीं होगा. उन्होंने अपने पिताजी का संस्मरण याद करते हुए बताया की कैसे वह विभाजन के समय में अपनी जान बचाते हुए भारत आये थे. उन्होंने कहा कि वो अपने साथ और कुछ तो नहीं ला पाए लेकिन अपनी भाषा और संस्कृति जरुर लाये. यह भाषा हीं उनकी पहचान है और इसके प्रति उनके मन में गर्व का भाव है.
भारतीय भाषाओँ में समझी जा सकती है भारतीय संस्कृति
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. रवीन्द कान्हेरे ने कहा कि आज अंग्रेजी पढ़ लेने के बाद लोगों के मन में अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति हीन भावना पैदा हो जाती है. अगर चार कक्षाएं पढ़कर आप अपनी संस्कृति को ही नकार रहे हैं तो यह राष्ट्रद्रोह से कम नहीं है. उन्होंने कहा कि पक्शिम का कल्चर और भारत की संस्कृति ये दोनों समान नहीं हैं. पक्शिम में कल्चर आपके भौतिक प्रस्तुतीकरण पर केन्द्रित है लेकिन भारत की संस्कृति आपके भाव, स्वाभाव, विचारों को प्राथमिकता देती है. एक दुसरे के प्रति सम्मान का भाव, वसुधेव कुटुम्बकम, स्त्री को सम्मान ये सब भारतीय मूल्य हैं जिनको भारतीय भाषाओँ में हीं समझा जा सकता है. कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे श्री संतोष कुमार राउत ने कहा कि जो लोग विदेशी भाषा पर गर्व करते हैं. उन्हें यह समझना चाहिए की गुलामी की भाषा पढ़कर कोई स्वतंत्र नहीं हो सकता. हमारा किसी भाषा से विरोध नहीं है, हर भाषा सीखनी चाहिए लेकिन अपनी मातृभाषा पर गर्व का भाव होना जरूरी है. आज हमारे पास समय है की हम अपनी मातृभाषा का संरक्षण और संवर्धन करें. कार्यक्रम का संचालन मातृभाषा मंच के संयोजक श्री अमिताभ सक्सेना ने किया.
रविन्द्र भवन के मुक्ताकाश मंच में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया. इस आयोजन में 17 विभिन्न भाषाई समूहों ने अपने सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी. बड़ी संख्या में सामान्य नागरिक एवं भोपाल के विभिन्न भाषाई समूह इस कार्यक्रम में उपस्थित रहे. भाषाई समूहों द्वारा अपने पारंपरिक व्यंजनों के स्टाल और प्रदर्शनी भी लगाई गयी, जो आकर्षण का मुख्य केंद्र रहे.
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