महंत विशंभरनाथ मिश्र सहित काशी के 8 विभूतियां अकादमी सम्मान होंगे सम्मानित - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

महंत विशंभरनाथ मिश्र सहित काशी के 8 विभूतियां अकादमी सम्मान होंगे सम्मानित

  • तुलसीघाट स्थित महंत के आवास पर बधाई देने वालों का तांता लगा ,कहा, अकादमी द्वारा दिये गए समस्त पुरस्कारों से युवा कलाकारों को बढ़ावा मिलेगा 

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वाराणसी। उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी पुरस्कारों में काशी एक बार फिर अपनी जगह बनाई है। 17 पुरस्कारों में आठ विभूतियां काशी के ही है। इसमें शहनाई वादक फतेह अली खां, बनारस से रंगमंच के प्रख्यात अभिनेता व नाटककार डा. अष्टभुजा मिश्रा और कुवरजी अग्रवाल, तबला वादक पं. विनोद लेले, ख्यात युवा कथक नर्तक विशाल कृष्ण, निर्देशक व अभिनेता विपुल कृष्ण नागर और संगीत कला उन्नयन के क्षेत्र में काशिराज अनंत नारायण सिंह और संकट मोचन मंदिर के महंत विशंभरनाथ मिश्र को अकादमी सम्मान के लिए चयनित किया गया है।


संकट मोचन मंदिर के महंत प्रोफेसर विशंभरनाथ मिश्र के नाम की घोषणा होते ही तुलसीघाट स्थित उनके आवास पर बधाई देने वालों का तांता लगा रहा। प्रो. मिश्र ने इसके लिए अकादमी व प्रदेश सरकार को आभार व्यक्त किया है। उन्होंने कहा है कि अकादमी द्वारा दिये गए समस्त पुरस्कारों से युवा कलाकारों को बढ़ावा मिलेगा। इससे काशी, प्रदेश और देश का महत्व बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि लाकडाउन के कारण कलाकारों की आर्थिक स्थिति अत्यंत खराब हो गयी है। सरकार कलाकरों को आर्थिक् मदद कर कला को प्रोत्साहित करें। संकट मोचन मंदिर के महंत परिवार की ओर से तुलसीघाट पर 46 वर्षों से  ध्रुपद मेले का आयोजन महाराज विद्या मंदिर न्यास और ध्रुपद समिति करती है। न्यास के अध्यक्ष कुंवर अंनत नारायण सिंह और प्रो. मिश्र ध्रुपद समिति के संरक्षक हैं। संकट मोचन मंदिर में हनुमान जयंती के उपलक्ष्य में विगत 96 वर्षों से संगीत समारोह का आयोजन महंत परिवार की ओर से मंदिर परिसर में होता आ रहा है।


संगीत कला उन्नयन के सम्मान के लिए चयनित बनारस के दसवें महाराजा अनंत नारायण सिंह का नाम काफी खास है। उनके करीबियों  दुर्ग से जुड़े लोगों ने बताया कि अपने पुरखों की भांति आज भी वह बनारस की समस्त परंपराओं का पालन करते हैं। कई पीढिय़ों के बाद रामनगर दुर्ग में शहनाई बजी और इनका जन्म हुआ। ये एकमात्र राजा हैं जिनको गोद नहीं लिया गया था। पिता विभूति सिंह नारायण सिंह ने इस परंपरा को खत्म किया था। पिता की परंपराओं को अभी तक बचा कर रखा है। नाग-नथ्थैया और नाक-कट्टैया समेत कई मेलाओं में भी जाते हैं। प्राथमिक शिक्षा दुर्ग स्थित कुंवर रामयत्न संस्कृत पाठशाला से हुई। पंडित राजराजेश्वर शास्त्री द्रविड़ से शिक्षा ली है। संस्कृत और वेद की। इसके बाद वह बीएचयू के वाणिज्य संकाय से अपनी उच्च शिक्षा पूरी की। उन्हें काशी विद्यापीठ के डाक्टरेट की उपाधि से नवाजा चुका है।

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