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शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2021

विशेष : इस स्वतंत्रता का विरोध क्यों?

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कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन को 2 महीने से भी ज्यादा समय हो गया है लेकिन मुद्दा अब भी जस का तस है। उधर किसान कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े हुए हैं वहीं दूसरी तरफ सरकार किसानों से बातचीत के जरिए मुद्दे को सुलझाने में जुटी है। विडंबना की बात ये है कि, किसान आंदोलन करने में इतने जी जान से जुट चुके हैं कि अब उन्हें सही भी गलत की तरह लग रहा है या सरल शब्दों में यूं कहे कि अपनी हठधर्मिता के कारण मैदान छोड़ने को राजी नहीं हैं। अहम बात ये है कि, किसान को सबसे पहले इन कृषि कानूनों को भलीभांति समझना होगा क्योंकि किसी चीज को समझे बिना आप किसी भी मुद्दे पर अपनी राय नहीं बना सकते हैं। या यूं कहें कि, किसान खुद अपनी स्वतंत्रता खुद से खत्म करने पर जुटा हुआ है। अगर वो कानूनों को ढंग से समझे तो शायद उनके दिमाग का ये भ्रम खत्म हो जाएगा। जब भी कोई कानून बनता है तो सरकार उसे लोगों के हित के लिए ही बनाती है।  प्रधानमंत्री मोदी ने 2016 में बरेली से एक संबोधन दिया था जिसमें उन्होंने इस बात की तरफ संकेत किया था कि वो किसानों की आय दोगुना करने के लिए प्रयासरत हैं जब कृषि कानून बनाया गया तो उसे किसानों के हित में ही रखकर बनाया गया, हां उसमें कुछ संशोधन की जरूरत अवश्य है लेकिन रद्द किया जाना ठीक नहीं है। किसान अगर कृषि कानूनों को समझेंगे तो उन्हें पता चलेगा कि उन्हें इस कानून के तहत कई विकल्प दिए जा रहे हैं जिससे वो एपीएमसी के अलावा भी अन्य कई जगहों पर चाहे वो वेयरहाउस हो या फिर कोल्ड स्टोरेज हो या ऑनलाइन सुविधा उन्हें ये स्वतंत्रता दी गई है कि वो अपनी फसल को कहीं भी इच्छानुसार बेच सके। लेकिन ध्यान देने वाली बात यहां ये है कि, जब किसान मंडी तक पहुंचता है तो वो ज्यादातर ऑलिगोपॉली का शिकार हो जाते हैं और उसके चलते वो औने पौने दामों पर अपनी फसल को बेच देता है। ऐसे ऑलिगोपॉली से बचने के लिए या ऐसे अल्पतंत्र से बचने के लिए किसानों को अब ये सुविधाएं नए कृषि कानून में दी गई हैं कि वो अपनी इच्छानुसार जहां चाहे अपनी फसल बेच सकते हैं राज्य के अंदर भी और राज्य के बाहर भी। पहले किसान अपनी फसल सिर्फ सीमित जगहों पर ही बेच सकते थे लेकिन अब उन्हें सरकार ने ये छूट दी है कि वो कहीं भी जाकर फसल को बेच सकते हैं। उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि कोई किसान मंडी गया वहां उसने 6 रूपये में अपना 1 किलो आलू बेच दिया और वो आलू आम जनता तक पहुंचते पहुंचते हो गया 40 रूपये किलो का तो इस स्थिति में किसान भी ठगा गया और आम जनता भी। इस स्थिति से बचने के लिए नए कृषि कानून लाये गये हैं जिससे किसान खुद को ठगा हुआ महसूस न करे। अब जो लोग ये कहते हैं कि, इससे मंडिया खत्म हो जाएंगी तो स्वाभाविक सी बात ये है कि कुछ बदलाव आने से चीजों पर असर जरूर पड़ता है लेकिन मंडी खत्म होने जैसी कोई भी बात इस कानून में नहीं है। लेकिन यहां दर्द उन लोगों को है जो सालों से इन मंडियों में अपनी पैठ बनाते आये हैं जिनका लाभ अब सरकार छीन रही है और दूसरी बात यहां ध्यान देने वाली ये है कि ये जो किसान कृषि कानून का विरोध कर रहे हैं वो ज्यादातर गेहूं व धान के किसान है लेकिन नया कृषि कानून सिर्फ गेहूं व धान तक सीमित नहीं है इसमें गेहूं,धान के अलावा डेयरी, दाल, पशुपालन आदि चीजों पर भी ध्यान दिया गया है। वहीं किसानों के विरोध की एक बात और देखी जाए तो किसानों का कहना है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत उनकी जमीन छीन ली जाएगी लेकिन कृषि कानून में ऐसा कुछ नहीं है, उसमें लिखा है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत किसानों की जमीन पर अतिक्रमण करने जैसी अगर कोई भी बात होगी तो ऐसी चीजों को खारिज कर दिया जायेगा। वहीं इस कानून में मूल्य निर्धारण को लेकर जो किसानों के मन में शंका डाली गई है उसका समाधान भी सरकार करने को तैयार है। इस बीच अगर किसान किसी विवाद में फंस जाता है या उसके साथ कोई धोखाधड़ी होती है तो वह सीधा एसडीएम के पास जा सकता है एसडीएम 30 दिन के भीतर मसले का निपटारा कर देगा। अगर यहां भी बात न बनी तो वह कलेक्टर के पास जा सकता है और कलेक्टर को भी 30 दिनों के भीतर समस्या का हल निकालना होगा। लेकिन संशोधन की गुंजाइश यहां भी है, क्योंकि ज्यादातर एसडीएम व कलेक्टर राज्य सरकार के नुमांइदे होते हैं तो इस स्थिति में सरकार को जरूरत है कि वो इसमें संशोधन कर कृषि प्राधिकरण या फास्ट ट्रैक कोर्ट को बनाये। अभी सरकार व किसान दोनों की जो स्थिति है उसपर ये बात सटीक बैठती है कि, किसान खेत में अच्छे लगते हैं अगर किसान सड़क पर आ जाए तो ये सरकार की नाकामयाबी होगी। इसीलिए जरूरत है कि अब सरकार व किसान दोनों ही आपसी बातचीत के जरिए इस मुद्दे का निपटारा जल्द से जल्द करें और किसान अपनी स्वतंत्रता की पहचान खुद करें।



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--ज्योति मिश्रा--

मेल : Jmishra231@gmail.com

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