सीएम योगी आदित्यनाथ के सख्त रवैये व फरमान से माफियाओं की काली कमाई से खड़े महल जमीनदोज हो रहे है। लेकिन उन्हीं माफियाओं के संरक्षण में फलफूल रहे बिल्डर मालामाल हो रहे है। विकास प्राधिकरण की मिलीभगत से माफियाओं के गठजोड़ से पले बढ़े बिल्डर शहर की चाहे सरकारी जमीन हो या विवादित खाली पड़ी जमीन को सस्ते दरों में खरीदकर लाखों-करोड़ों में फ्लैट बनाकर बेच रहे है।फिरहाल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सख्त निर्देश पर तमाम शहरों में अवैध इमारतें जमीनदोज रही हैं। नदियों, तालाबों, नालियों, सड़कों और सरकारी जमीनों पर बने बिल्डिंगों को गिराया जा रहा है। लेकिन इस फरमान से विकास प्राधिकरण के अफसरों और बिल्डरों की चांदी कट रही है। माफियाओं के संरक्षण में बिल्डर विकास प्राधिकारण के अफसरों को मोटी रकम देकर शहर की विवादित जमीनों को सस्ते दरों पर खरीदकर बिल्डिंगे बनाकर लाखों-करोड़ों में बेच रहे है। सूत्रों की माने तो बिल्डर लोगों को इस बात का भय दिखाते है कि अमूक ऐरिया की जमीन विकास प्राधिकरण अधिग्रहित करने वाला है। इसके बाद प्राधिकरण के अधिकारी व कर्मचारी उस इलाके में फीता लगाते है। फिर शुरु हो जाता है ब्लैकमेलिंग का खेल। कुछ तो डर कर तो कुछ विवादित जमीनों को बिल्डरो के हाथों बेच देते है।
हाल यह है कि बीते तीन सालों में जमीनों के दाम दुगुने-तीगने नहीं बल्कि चैगुने हो गए है। और परिणाम यह है कि प्राधिकरण में कुंडली मार कर बैठे अधिकारियों, कर्मचारियों और बिल्डरों का काला धंधा सूरसा के मुंह की भांति फैल रहा है। या यूं कहे कायदे-कानून से नक्शे के अनुसार मकान बनाने वाला अपने आप को ‘ठगा’ महसूस करता है, जबकि बिना नक्शा पास कराए बड़ी-बड़ी बिलिं्डग खड़ी कर देने वाले बिल्डर या खास रुतबा वाले अपने अवैध कोठी-बंगले या फिर बिलिं्डग को वैध करा लेते है। और इसी लालच की वजह से समाज में भूमाफिया पैदा होते हैं। उनके संरक्षण में बिल्डर होते है, जो भ्रष्टाचार की नींव खोदता है और उस पर मिलीभगत वाला फ्लैट बनाता है। अपने घर की उम्मीद में ज़रूरतमंद लोग ऐसे महंगे फ्लैट खरीदते हैं। ये बेईमानी की ऐसी गंगा है, जिसमें देश का हर नागरिक डुबकी लगा रहा है। भ्रष्टाचार की नींव पर बना हुआ फ्लैट, भ्रष्टाचार के पैसे से खरीदा भी जाता है।
भूमाफिया अपना फायदा देखते रहे, लोग अपने लिए सस्ता घर देखते रहे, वीडीए प्रशासन रिश्वतखोरी करता रहा और सरकारें अपना वोटबैंक देखती रहीं। और नतीजा ये हुआ कि ये अवैध कॉलोनियां बस गईं और सरकार सोती रही। अदालतों ने जब सरकारों और सिस्टम को जगाया तो इन कॉलोनियों को अवैध से वैध बनाने की तैयारी भी होने लगी। मतलब साफ है एक ओर जहां सीएम योगी प्रदेश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने का दावा करते हैं, वहीं दूसरी ओर विकास प्राधिकरण दलालों का अड्डा बनता जा रहा है। यह वही प्राधिकरण है, जिसके ऊपर सरकार ने कई ड्रीम प्रोजेक्ट का जिम्मा सौंप रखा है। यहां खुलेआम घूस ली जाती है और यदि आपने घूस दे दी तो आपका महीनों में होने वाला काम महज कुछ घंटों में हो जाएगा। वहीं, यदि आप नियम और कानून से चले तो एक दिन में होने वाला काम भी महीनों लटका रहेगा। प्राधिकरण में यदि आपको नक्शा भी पास कराना है तो बिना लिए-दिए काम नहीं होगा। कागज में शुल्क, डेवलेपमेंट चार्ज और चालान का पैसा तो दिखाया जाता है लेकिन बाकी उनके जेब में चला जाता है।
वाराणसी विकास प्राधिकरण की स्थापना उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा शहर में निर्माण एवं अवसंरचना विकास हेतु 1073 में की गयी थी। तब से यह गोरखधंध यहां धड़ल्ले से चल रहा है। बिना नक्शा और लेआउट पास कराए अवैध तरीके से कॉलोनियां विकसित की जा रही है। इतनी बड़ी संख्या में अवैध कॉलोनियां खड़ी होने के पीछे विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत के संभव नहीं है। यानी यह सब अवैध ढंग से कालोनियों को विकसित करने और रुपयों के खेल तंत्र का परिणाम है। खास यह है कि कुछ बिल्डरों ने सरकारी जमीन पर प्लाट बना कर बेच दिये। जबकि भूमि और भवनों का आबंटन विकास प्राधिकरण द्वारा किया जाना चाहिये, बिल्डरों को सीधे भूमि खरीदने की अनुमति नहीं होनी चाहिये और भूमि का अर्जन तथा आबंटन भी विकास प्राधिकरण द्वारा किया जाना चाहिए। ल्ेकिन भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी नौकरशाही कोई सुधार नहीं होने देती। अगर ये सुधार हो गये होते तो यह धोखाधड़ी न होती। तमाम अधिकारियों ने भी इसमें प्लाट लिये हैं। इसके अलावा यह ध्यान रखना चाहिए कि मास्टर प्लान के अनुसार विकास तभी संभव है और मास्टर प्लान तभी सार्थक होगा जब गैर-कृषि कार्य हेतु समस्त भूमि-अर्जन और तदुपरांत मास्टर प्लान के अनुसार भूमि का आबंटन केवल विकास प्राधिकरण द्वारा किया जाये।
इसके अलावा मकानों की कालाबाजारी और मुनाफाखोरी रोकने, मकानों के क्रय-विक्रय में काले धन को समाप्त करने तथा धनवानों द्वारा कई-कई मकान खरीद कर बाद में अनाप-शनाप मुनाफे पर बिक्री को समाप्त करने के लिए यह भी आवश्यक है कि प्राइवेट बिल्डरों द्वारा निर्मित भवन/फ्लैट भी विकास प्राधिकरण द्वारा आबंटित किए जायें और भुगतान भी प्राधिकरण के माध्यम से हो। एक अनुमान के मुताबिक 50 फीसदी बिल्डिग ही शमन के योग्य हैं। बाकी बिलिं्डग का शमन नहीं हो सकता। क्योंकि वह भू-उपयोग के विपरीत बनी हैं। जो शमन के मानक पर नहीं थी उनके खिलाफ कार्रवाई की बात कही गयी। लेकिन कुछ नहीं हुआ। हाल यह है कि हजारों आवासीय भूखण्डों पर दुकानें, शोरूम, रेस्टोरेंट, अस्पताल व स्टोर चल रहे हैं। किसी को भी नहीं तोड़ा गया। पैसा फेंको तमाशा देखो वाली स्थिति है इस प्राधिकरण में। वैसे तो उत्तर प्रदेश के लगभग समस्त प्राधिकरणों का हाल एक जैसा है लेकिन वाराणसी के मामले में थोड़ा अलग है। पर्यटक नगरी होने के कारण यहां लाखों के भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि करोड़ों के भ्रष्टाचार से जुडे़ मामले प्रकाश में आते रहे हैं। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कुछ इस तरह से विकास प्राधिकरण ने बाहुबली और धनबली बिल्डरों को अनुचित लाभ पहुंचाया। इस अनुचित लाभ दिए जाने से विकास प्राधिकरण को करोड़ों रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। यहां बताना जरूरी है कि पूर्व में प्राधिकरण की ओर से सख्त निर्देश जारी किए गए थे कि बिल्डर भू-उपयोग परिवर्तन शुल्क जमा करने के बाद ही कृषि योग्य भूमि को आवासीय में बदल सकता है, जिसे बाद में बिल्डरों को लाभ पहुंचाने की गरज से मनचाही छूट दी गयी।
यानी बनारस भ्रष्ट बिल्डरों का गढ़ बन गया और बिल्डरों ने प्राधिकरण में घूस लेने के लिए हमेशा तैयार रहने वाले अफसरों तथा मुलाजिमों के साथ मिलकर अपने ग्राहकों को लूटने का खेल जारी रखा। बिल्डरों पर यह भी आरोप है कि वह खरीदारों से तय रेट से अधिक पैसों की मांग करते हैं। साइज बढ़ाने का नाम पर लूट ग्रेटर नोएडा वेस्ट (नोएडा एक्सटेंशन) के खरीदारों ने फ्लैट का दायरा (साइज) बढ़ाने के नाम पर होने वाली लूट को उत्तर प्रदेश अपार्टमेंट एक्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन बताया है। उत्तर प्रदेश अपार्टमेंट एक्ट में स्पष्ट है कि बगैर खरीदार की सहमति के बिल्डर फ्लैट का दायरा बढ़ा या घटा नहीं सकता है। ग्रेटर नोएडा वेस्ट में नेफोवा ने बिल्डरों की मनमानी में प्राधिकरण अधिकारियों पर मिलीभगत का आरोप लगाया है। कब्जा देने की तारीख के कई साल बाद जब बिल्डर निर्माण पूरा कर लेता है, तब वह खरीदारों से फ्लैट का दायरा (साइज) बढ़ाए जाने की जानकारी देकर अतिरिक्त शुल्क की मांग करता है। अतिरिक्त शुल्क नहीं देने वाले खरीदारों को बुकिंग निरस्त करने से लेकर भारी जुर्माना लगाकर प्रताड़ित किया जा रहा है।
बिल्डर को निर्माण शुरू कराने से पहले बनने वाली इमारत का मानचित्र (नक्शा) पहले से मंजूर करना पड़ता है। तब कैसे बिल्डर निर्माण पूरा होने पर फ्लैट का दायरा बढ़ जाने का दावा कर सकता है। यहां तक कि बिल्डर महज ढांचा (स्ट्रक्चर) खड़ा करने के बाद ही कागजों में ’सुपर एरिया’ बढ़ाने का दावा कर अतिरिक्त शुल्क की मांग कर रहे हैं। वास्तव में फ्लैट का दायरा उतना ही रहता है, अलबत्ता प्राधिकरण अधिकारियों की मिलीभगत के कारण बिल्डर बुक कराए फ्लैट का सुपर एरिया बढ़ जाने का दावा कर अतिरिक्त शुल्क के नाम पर खरीदारों को प्रताड़ित करते हैं। इन तमाम सवालों पर कई मर्तबा प्राधिकरण अधिकारियों से की गई अपील बेअसर रही है। इस वजह से बिल्डर कंपनियां बदस्तूर फ्लैट का दायरा बढ़ जाने के नाम पर अमूमन हर खरीदार से मोटी रकम ऐंठ रहे हैं। अतिरिक्त शुल्क देने से इनकार करने वाले खरीदारों पर लाखों रुपये का जुर्माना लगाया जा रहा है। फंस चुके खरीदारों को प्रताड़ित करने के लिए बिल्डर कंपनी अतिरिक्त शुल्क बुकिंग कराने वाली कीमत के बजाए मौजूदा बाजार कीमत के आधार पर वसूल रही हैं।
--सरेश गांधी--
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