- कोविड से उबरते बिहार में लड़कियों की शिक्षा - बजट 2021-22 से अपेक्षाएं
स्वास्थ्य और आजीविका के क्षेत्रों में कोविड महामारी के व्यापक दुष्प्रभावों की तर्ज़ पर शिक्षा का क्षेत्र भी भीषण रूप से प्रभावित रहा है, जिससे समाज में विद्यमान विषमताएं और ज़्यादा गहराईं हैं। बिहार में 2.17 करोड़ से ज़्यादा विद्यार्थी, जिनमें 1.08 करोड़ से ज़्यादा लड़कियां शामिल हैं, पिछले 10 महीनों से भी ज़्यादा समय से स्कूल से बाहर रहे हैं और ऐसी प्रबल संभावना है कि इनमें से बहुत सारे बच्चे स्कूल में दुबारा न लौटें। महामारी की वजह से उत्पन्न आर्थिक बदहाली, स्कूलों का लम्बे समय से बंद होना और कम उम्र में विवाह किये जाने का सामाजिक दबाव इस अंदेशे की मुख्य वजहें हैं। लड़कियों की ज़िंदगी और अवसरों के मामले में महामारी के दुष्प्रभावों से निपट पाना बिहार के 2021-22 के शिक्षा बजट की प्रमुख प्राथमिकता होनी चाहिए।
मुख्य चुनौतियाँ और उनके निहितार्थ
बिहार के सामाजिक सन्दर्भ में लड़कियों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों की सबसे चौंकाने वाली झलक कम उम्र में विवाह के मामले में लड़कियों का विशाल अनुपात से मिलती है, जो 2019-20 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के अनुसार 40.8 प्रतिशत है, यानी पिछले चार सालों में इस सूचक में सिर्फ 1.7 प्रतिशत की ही गिरावट आई है। राज्य सरकार द्वारा हाल के वर्षों में संचालित किये गए कई बड़े कार्यक्रमों और मुहिमों, जिनमें बाल विवाह और दहेज़ प्रथा के उन्मूलन के लिए संचालित राज्य कार्ययोजना और मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना जैसी महत्वाकांक्षी योजनाएं शामिल हैं, के बावजूद सिर्फ 22.5 प्रतिशत लड़कियां ही माध्यमिक स्तर से आगे पढ़ने के लिए कदम बढ़ाती हैं। अनुसूचित जाति की लड़कियों के मामले में यह अनुपात सिर्फ 18.3 प्रतिशत है। इन चुनौतियों के मद्देनज़र आने वाले बजट में माध्यमिक स्तर पर शैक्षिक संसाधनों और अवसरों की बढ़ोत्तरी के लिए विशेष प्रावधान किये जाने की ज़रुरत है। दसवीं कक्षा के बाद छात्राओं की संख्या में होनी वाली छीजन के दर को कम करने के लिए माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर कक्षाओं की संख्या में ठोस इज़ाफ़ा किये जाने की ज़रुरत दिखती है, जिसके लिए भी पर्याप्त राशि मुहैया कराये जाने की ज़रुरत है। यू-डाइस 2016-17 के अनुसार वर्त्तमान में माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर प्रति स्कूल विद्यार्थियों की औसत संख्या क्रमशः 216 और 121 है। राज्य में वर्त्तमान में पेशागत रूप से दक्ष शिक्षकों की भारी कमी है। यू-डाइस 2016-17 के अनुसार बिहार के कुल 4,36,390 सरकारी शिक्षकों में, जिनमें नियमित, संविदा पर नियुक्त और अल्पकालिक शिक्षक शामिल हैं, सिर्फ 63.3 प्रतिशत शिक्षक ही पेशागत रूप से सुयोग्य हैं। शिक्षकों के कौशल संवर्धन तथा शिक्षकों की संख्या में आवश्यक इज़ाफे के लिए 2021-22 के शिक्षा बजट में पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराये जाने की ज़रुरत है। बिहार में उच्च प्राथमिक स्तर पर लगभग 43.99 प्रतिशत विद्यालयों में विद्यार्थी शिक्षक अनुपात 50 से भी ज़्यादा है, जिसपर तत्काल ध्यान दिए जाने की ज़रुरत है। 2020-21 में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के कल्याण के लिए बिहार के बजट का हिस्सा (क्रमशः 8.22 प्रतिशत और 0.63 प्रतिशत) उनके जनसांख्यिक अनुपात के मुक़ाबले काफी कम था, जिसे कम से कम लगभग दुगुना किये जाने की ज़रुरत है। विमुक्त, घुमन्तु व अर्ध-घुमन्तु जातियों के लिए सिर्फ 20 लाख रुपये ही छात्रवृत्ति के नाम पर आवंटित थी, जिसकी हिस्सेदारी भी अन्य पिछड़े वर्गों के साथ की जानी थी। इन सामाजिक वर्गों के हित में बजट में और ज़्यादा और विविध मदों पर ठोस आवंटनों की ज़रुरत है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक पहल
2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विद्यार्थियों की क्षमता में व्यापक विस्तार दिए जाने की दिशा में कई प्रस्ताव शामिल हैं, जिनपर अमल किये जाने के लिए पर्याप्त आवंटनों की ज़रुरत है. उदाहरण के लिए, 'पहिये का आरा और धुरी' मॉडल पर कौशल प्रयोगशालाओं की स्थापना के प्रस्ताव पर अमल करने के लिए बड़ी मात्रा में संसाधनों की ज़रुरत है. इसी तरह, माध्यमिक विद्यालयों की शिक्षा में रोज़गारोन्मुखी शिक्षा के समावेश के लिए औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों, पॉलिटेक्निकों और उद्योगों के साथ विद्यालयों की साझेदारी के प्रस्ताव को अमली जामा पहनाने के लिए विद्यालयों की निकटता में बड़ी संख्या में तकनीकी संस्थान खोले जाने की ज़रुरत है, ताकि माध्यमिक स्तर पर नामांकित विद्यार्थियों, खासकर छात्राओं को इसका लाभ मिल सके। साथ ही, राष्ट्रीय शिक्षा नीति में हर स्कूल के लिए आवश्यक शैक्षिक संसाधनों और सहूलियतों के साथ साथ पर्याप्त संख्या में परामर्शदाताओं, प्रशिक्षित सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित किये जाने की बात कही गयी है, जिसके लिए भी शिक्षा के बजट में ठोस इज़ाफा किये जाने की ज़रूरत है। उपरोक्त कारणों से राज्य का आने वाला शिक्षा बजट काफ़ी महत्वपूर्ण दिखता है। लड़कियों की शिक्षा के क्षेत्र में बिहार में हाल के दशकों में हासिल तरक्की में उलटाव न आ जाये, इसके लिए बजट में ठोस प्रावधानों की ज़रुरत है। चूंकि हाल में घोषित केंद्रीय बजट में बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र की हिस्सेदारी 2.18 प्रतिशत से घटकर 1.74 प्रतिशत हो गयी है, यह देखना दिलचस्प होगा कि बिहार का 2021-22 का आनेवाला शिक्षा बजट किस तरह से केंद्र सरकार के बजट में दिखी कटौती का जवाब देता है! बिहार में 'लड़कियों की शिक्षा और आने वाले शिक्षा बजट' के सन्दर्भ में मेरी एक सहकर्मी विजेता लक्ष्मी, जो प्रैक्सिस से ही जुड़ी हुई हैं, का एक लेख शेयर कर रहा हूँ, जिसमें मैंने (अनिन्दो बनर्जी )भी योगदान दिया है। इसे आर्यावर्त लाइव में प्रकाशित कर दें।
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