- काॅरपोरेटों पर टैक्स लगाने की बजाए आम लोगों को परेषान कर रही सरकार, अंतराष्ट्रीय मूल्य वृद्धि का तर्क बोगस
- पेट्रो पदार्थों के आयात पर मोदी सरकार की निर्भरता बढ़ी है.
पटना 22 फरवरी, भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि आज पेट्रोल का दाम 100 रु. की सीमा रेखा पार कर गया है. पहले से ही भयानक मंदी व कई तरह के संकटों का सामना कर रही देष की जनता के लिए यह असहनीय स्थिति है. पेट्रोल-डीजल व रसोई गैस में लगातार हो रही मूल्य वृद्धि ने आम लोगांे का जीना मुष्किल कर दिया है. महंगाई ने सारे रिकाॅर्ड तोड़ दिए हैं. इसके खिलाफ भाकपा-माले ने आगामी 23-24 फरवरी को राज्यव्यापी विरोध दिवस आयोजित करने का निर्णय किया है. तमाम जिला कमिटियों को निर्देषित किया गया है कि वे दो दिनों तक मोदी सरकार की इन जनविरोधी कार्रवाइयों के खिलाफ जनता को जागरूक करें, विरोध मार्च आयोजित करें और प्रधानमंत्री का पुतला दहन करें. उन्होंने कहा कि पेट्रोल के दाम में इस अभूतपूर्व वृद्धि के पीछे सरकार अंतराष्ट्रीय स्तर पर मूल्य वृद्धि का तर्क देती है, जो सरासर गलत है. कोरोना व लाॅकडाउन के समय अंतराष्ट्रीय स्तर पर पेट्रो पदार्थों की कीमत निगेटिव दर्ज की गई थी, लेकिन उस दौर में भी यहां पेट्रो पदार्थों की कीमत में कोई कमी नहीं आई थी. उस पूरे दौर में जनता की गाढ़ी कमाई लूटी गई.
2018 में अंतराष्ट्रीय स्तर पर 84 डाॅलर/बैरल पेट्रोल की कीमत थी, तब भारत में वह 80 रु. प्रति लिटर था. 2021 में अभी जब अंतराष्ट्रीय कीमत 61 डाॅलर /बैरल है, तो अपने यहां उसकी कीमत 100 रु. प्रति लिटर से भी अधिक हो गई है. इसके बनिस्पत 2008 में जब अंतराष्ट्रीय कीमत 147 डाॅलर बैरल थी, तो हमारे यहां पेट्रोल काफी कम यानि 45 रु. प्रति लिटर की दर से बेचा जा रहा था. जाहिर सी बात है कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत में बढ़ोतरी का तर्क पूरी तरह बोगस है. अभी सरकार पेट्रोल पर तकरीबन 60 और डीजल पर 54 प्रतिशत टैक्स लेती है. यह टैक्स लगातार बढ़ता ही जा रहा है. हमारी मांग है कि सरकार जनता पर लगाए गए टैक्स को कम करे और काॅरपोरटों पर टैक्स बढ़ाने का काम करे. आज खुद देश में कच्चे तेल के उत्पादन की मात्रा पहले से कहीं कम हो गई है. सरकारी कंपनी ओनजीसी के पास पैसा ही नहीं है कि वह कच्चे तेल का स्रोत ढूंढ सके. 2000-2001 में जहां भारत 75 प्रतिशत पेट्रो पदार्थ आयात करता था, वहीं 2016-19 में यह आयात बढ़कर 95 प्रतिशत हो गया. अभी 2021 में यह आयात 84 प्रतिशत है. जाहिर है कि राष्ट्रवादी होने का दंभ भरने वाली मोदी सरकार अपने देश में संसाधन ढूंढने व उसके विकास की बजाए पेट्रोलियम पदार्थों के आयात को बढ़ावा दे रही है और आयातित पेट्रो पदार्थों का इस्तेमाल जनता की गाढ़ी कमाई को लूटने में कर रही है. जिन राज्यों में चुनाव होता है, सरकार वहां दाम में कुछ कमी करके चुनाव जीतने का प्रयास करती है. अभी असम में पेट्रोल की कीमत 5 रु. कम कर दी गई है, क्योंकि वहां चुनाव होने वाला है.
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