जमुना किनारे इकबाल फारूकी और अज़हर हाशमी की शानदार जुगलबंदी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 22 फ़रवरी 2021

जमुना किनारे इकबाल फारूकी और अज़हर हाशमी की शानदार जुगलबंदी

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नई दिल्ली: कैफे कारवां और जिमिशा कम्युनिकेशन के बैनर तले करवान ए अदब की ये शानदार महफ़िल गुज़रे हुए उस वक्त में झांकने जैसा था जहां बैठक के बहाने अदब की महफ़िल जवान होती थी. हाल ही में दिल्ली के जामिया नगर इलाके में खुले कैफे कारवां के पहले चैप्टर में ग़ज़ल सिंगर इकबाल फारूकी और नौजवान शायर अज़हर हाशमी   श्रोताओं के दिल में उतरते नजर आए.  कारवां ए अदब के जरिए कैफे कारवां ने कला और संस्कृति की गंगा जमुनी तहजीब को इस ढंग से जिंदा रखने कि कोशिश की है जहां एक छोटी सी दुनिया सजाई जाए जिसमें उन लोगों को शामिल किया जाए जो कला के कद्रदान हैं. एक ऐसी कोशिश जहां कला और साहित्य का संगम हो सके शनिवार शाम को हुई इस महफ़िल की शुरुआत शायर अज़हर हाशमी की दिल छूने वाली कविताओं से हुई जिनकी शायरी में प्यार.. भाईचारा..एकता..अकेलापन और रिश्तों को बेहतरीन तानाबाना नजर आया. बिहार के मुंगेर के रहने वाले अज़हर हाशमी पेशे से इंजीनियर हैं लेकिन मुल्क के बड़े मुशायरों में इनकी पहचान एक शायर के तौर पर होती है. उनकी शायरी के कुछ और नमूने रेख़्ता की दीवारों में भी दर्ज हैं. अज़हर ने इस शाम इस महफ़िल को रौशन किया फिर चिराग़ की इस लौ को इकबाल फारूकी की मखमली आवाज ने एक नई रूह दे दी. दर्द और उम्मीद में डूबी ग़ज़ल सिंगर इकबाल की ग़ज़लों ने श्रोताओं को झूमने पर मजबूर किया तबला बजाने के देसी अंदाज और उनकी आवाज़ ढलती शाम में दीवानगी घोलती चली गई. पेशे से पत्रकार इकबाल फारूकी को उनके चाहने वाले जगजीत सिंह के नाम से भी पुकारते हैं. जगजीत सिंह की पढ़ी गई गजलें....याद नहीं क्या क्या देखा था...ज़िंदगी तूने लहू ले के दिया कुछ भी नहीं सुनने के बाद श्रोता अपने माजी में भटकते नज़र आए. मैं नशे में हूं गाने के बाद इकबाल ने श्रोताओं को वहां लाकर छोड़ दिया जहां ऐसी महफिलों का बेचैनी से इंतज़ार नजर आया कैफे कारवां को जन्म देने वाले असद अशरफ ने बताया कि ज़हन में एक ऐसी दुनिया सजाने की थी जहां थोड़ी सी जगह तहज़ीब की हो. जहां एक कोना कलाकार का हो जहां एक दरीचा पढ़ने और पढ़ाने वालों का हो जहां एक ऐसी दीवार हो जिसकी ओट में बैठकर सिर्फ दिल की बातें हों. असद ने बताया कि इस छोटी सी दुनिया के तमाम रंग उनकी जीवनसाथी अस्मा रफत ने भरें हैं जो कैफे कारवां की दूसरी सिपहसालार हैं. कैफे कारवां की छत और जमुना का  पुर सुकून नज़ारा...साथ में मनचाही और दिल चाही किताबों का ज़ख़ीरा उन लोगों लोगों के लिए किसी सपने की दुनिया में कुछ पल जीने जैसा था.

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