दुनिया में मृत्यु के सबसे बड़े कारणों में से 10वें नंबर पर है सड़क दुर्घटना, जिसके कारणवश 13 लाख से अधिक लोग हर साल मृत होते हैं और 5 करोड़ से अधिक लोग ज़ख़्मी होते हैं, या शारीरिक/ मानसिक विकृति के साथ जीने को मजबूर होते हैं. सार्वजनक आवागमन या परिवहन ज़रूरी है और मौलिक अधिकार है, पर इसकी कीमत हमें अपने हाथ-पैर तुड़वा के या जान गवां के देने की क्या ज़रूरत है? भारत सरकार 18 जनवरी से 17 फरवरी 2021 तक, राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा माह मना रही है और अनेक जागरूकता कार्यक्रम हो रहे हैं. भारत सरकार भी यही कह रही है कि सड़क दुर्घटना से पूर्ण बचाव मुमकिन है, और लोगों को सड़क दुर्घटना के कारण अनावश्यक आर्थिक, शारीरिक और भावनात्मक पीड़ा और त्रासदी झेलनी पड़ती है. सरकार का कहना यह भी है कि सड़क सुरक्षित होनी ज़रूरी हैं क्योंकि यह कैसे स्वीकार किया जा सकता है कि आवागमन की स्वतंत्रता की कीमत हमें अपने हाथ-पांव तुड़वा के या जान गवां के देनी पड़े? यह अनावश्यक त्रासदी है क्योंकि सड़क दुर्घटना से बचाव मुमकिन है. पिछले अनेक सालों से दुनिया के देश, सड़क सुरक्षा पर कार्य कर रहे हैं परन्तु अपेक्षित नतीजा नहीं निकल रहा है क्योंकि दुर्घटना भी अनेक जगह बढ़ोतरी पर हैं और मृत्यु दर भी. दुनिया की सभी सरकारों ने पूरा दशक 2010-2020 को सड़क सुरक्षा अभियान को समर्पित किया था.
उत्तर प्रदेश सरकार के एक विज्ञापन के अनुसार, 400 लोग हर रोज़ प्रदेश में सड़क दुर्घटना के कारणवश मृत होते हैं. सरकार के अनुसार, इसका मुख्य कारण है सड़क यातायात नियमों की जानकारी का अभाव. इसमें कोई दो राय हो ही नहीं सकती कि सभी यातायात नियमों का, सभी को, हर समय सख्ती से अनुपालन करना चाहिए. पर बड़ा सवाल यह भी है कि क्या यातायात नियमों के पालन करने से सड़क आवागमन सबके लिए सुरक्षित हो जायेगा, खासकर कि वह लोग जो बिना-मोटर वाले वाहन का उपयोग करते हैं या पैदल चलते हैं, सड़क पर ही रोज़गार करते हैं या रहने को मजबूर हैं? दुनिया की सरकारें मानती हैं कि सड़क दुर्घटना का सबसे बड़ा कारण तेज़-गति से मोटर-वाले वाहन चलाना है. पर यह क्यों नहीं बता रही कि जब अत्याधिक गति-सीमा निर्धारित है तो मोटर वाले वाहन को कौन अनुमति देता है कि इनका निर्माण ऐसा हो कि इनकी अत्याधिक गति-सीमा, सरकार द्वारा निर्धारित गति-सीमा से अनेक गुणा अधिक रहे? उदाहरण के तौर पर, यदि 80किमी प्रति घंटा की अत्याधिक गति-सीमा निर्धारित है, तो मोटर वाहन में क्यों यह प्रावधान है कि उनको इसके ऊपर चलाया जा सके? अधिकाँश सड़क दुर्घटना, जो अति-तेज़ गति से मोटर वाले वाहन चलाने से होती हैं, उनमें सिर्फ वाहन सवार लोग ही नहीं ज़ख़्मी होते हैं या मृत होते हैं. सड़क दुर्घटना में ज़ख़्मी होने वाले या मृत होने वाले लोगों में साइकिल या रिक्शा सवार, पैदल चलने वाले लोग, सड़क पर रोज़गार करने वाले लोग, रहने वाले लोग, आदि भी होते हैं. सड़क तो सबकी है तो सिर्फ मुठ्ठी भर कार सवार लोगों की सुविधा देख कर ही क्यों नियम और सड़क-इंतज़ाम और सुरक्षा-इंतज़ाम बनाया जा रहा है?
मैं, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रहता हूँ और आवागमन के लिए साइकिल का ही उपयोग करता हूँ. पिछले सालों में मैंने चियांग मई (उत्तरी थाईलैंड) और अमरीका के बोस्टन शहर में भी आवागमन के लिए साइकिल का उपयोग किया है. मेरा अपना अनुभव यह है कि सुरक्षित सड़क की जो परिभाषा बाज़ार में उद्योग हमें समझाता है वैसी सड़कें मेरे लिए सबसे असुरक्षित हैं. उदाहरण के तौर पर चौड़े हाईवे/ एक्सप्रेसवे या बड़ी-बड़ी सड़कें. इन्हीं 'आदर्श' जैसी आधुनिक नए ज़माने वाली सड़कों पर, जानलेवा और हृदय-विदारक दुर्घटनाएं अक्सर होती हैं. जबकि जो सड़कें पुराने ज़माने वाली मानी जाएँगी जैसे कि पुराने शहर की सड़कें और गलियां आदि, वह साइकिल और सभी के लिए इसलिए सुरक्षित हैं क्योंकि वहां पर जानलेवा दुर्घटना होने का खतरा ही कम है. सवाल यह है कि सड़क सुरक्षा और सुरक्षित सड़क और आवागमन की परिभाषा हमें मोटर वाले वाहन को मद्देनज़र रख कर क्यों गढ़नी है? क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि मोटर वाले वाहन और उससे सम्बंधित उद्योग धनाढ्य है? उद्योग का बढ़ाना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए या फिर हर इंसान के लिए सड़कें और यातायात परिवहन/ आवागमन को सुरक्षित और आरामदायक करना प्राथमिकता होनी चाहिए?
- बॉबी रमाकांत -
सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस)
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