संयुक्त सचिव व निदेशक की लैटरल एंट्री असंवैधानिक : तेजस्वी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 7 फ़रवरी 2021

संयुक्त सचिव व निदेशक की लैटरल एंट्री असंवैधानिक : तेजस्वी

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पटना, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने एनडीए सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि केंद्र की जेडीयू-बीजेपी एनडीए सरकार द्वारा संयुक्त सचिव व निदेशक के पद पर लैटरल एंट्री के द्वारा अपने चुनिंदा लोगों की भर्ती करना एक असंवैधानिक कदम है। एक ओर लाखों युवा UPSC परीक्षा पास करने के लिए सालों तक अपना दिन रात झोंककर मेहनत करते हैं तो दूसरी ओर ऐसे युवाओं की मेहनत और परीक्षा की कठिन प्रक्रिया को धता बताते हुए उन्हीं की सरकार पिछले दरवाजे से सत्ता के करीबी लोगों को सिस्टम का हिस्सा बना रही है! तेजस्वी ने कहा कि अगर लैटरल एंट्री के द्वारा संयुक्त सचिव या निदेशक बनाए जाने वाले अभ्यर्थी सचमुच योग्य हैं तो UPSC की परीक्षा की कसौटी पर उन्हें परखने में क्या आपत्ति है? सरकार ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में ऐसे अभ्यर्थियों को ‘योग्य, तत्पर और राष्ट्र निर्माण को इच्छुक नागरिक’ बताया है तो क्या ये अभ्यर्थी ‘राष्ट्र सेवा’ के लिए एक परीक्षा की तैयारी नहीं कर सकते? क्या सामान्य प्रक्रिया से उत्तीर्ण होने वाले अभ्यर्थियों की तत्परता, योग्यता या राष्ट्र निर्माण करने की इच्छा या लोक सेवा आयोग की प्रक्रिया को लेकर सरकार को शंका है? अगर सरकार के लिए ऐसे निजी क्षेत्र में कार्यरत लोगों की प्रतिभागिता सचमुच अपरिहार्य है तो क्या सारी योग्यता निजी क्षेत्र के लोगों में ही है? अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े वर्गों के लोगों को व्यवस्था से शनै शनै बाहर करने और आरक्षण को घटाने का इसे केंद्र सरकार का घृणित प्रयास क्यों नहीं माना जाए? यादव ने कहा कि निजी क्षेत्रों में कार्यरत नागरिकों के अनुभव का लाभ सरकार कई रूपों में ले सकती है! UID अथवा आधार इसका बेहतरीन उदाहरण है पर तय प्रक्रिया को अलग थलग कर उन्हें सीधे प्रशासन का सरकार द्वारा हिस्सा बना लेना गलत दिशा में उठाया हुआ एक अहंकारी कदम है, युवाओं के साथ अन्याय है, वंचित वर्गों के उत्थान को एक नए रूप में सीमित करने का हथकंडा है! उन्होंने कहा कि UPSC की परीक्षा प्रक्रिया के द्वारा बने प्रशासन के अधिकारी राष्ट्र के प्रति समर्पित और नागरिकों के प्रति उत्तरदायी होते हैं, पर लैटरल एंट्री के द्वारा व्यवस्था का हिस्सा बने लोग सरकार और सत्तारूढ़ दल के प्रति आभारी और उत्तरदायी होंगे! ना उन्हें संविधान की समझ होगी और ना उसके अवधारणा की! पूरी आशंका है कि सत्तारूढ़ दल अपनी विचारधारा और पार्टी के हित व प्रचार प्रसार को बढ़ावा देने के इच्छुक लोगों को ही इसके द्वारा चयनित करेगी। इस प्रक्रिया से आए लोग सरकार की निरंकुशता को अनुचित स्तर तक पहुँचा देंगे।

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