एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे अगर यह कह रहे हैं कि अंबानी से पैसे वसूलने के लिए यह सारी थ्योरी बनाई गई, जो ठीक नहीं है। पहले आतंकी बम रखते थे, अब पुलिस से रखवाया जा रहा है तो उसके अपने मतलब हैं। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि वझे को वापस सर्विस में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और गृहमंत्री के आदेश पर लाया गया था। पवार सच से भाग रहे हैं। जब तक देशमुख पद पर बरकरार हैं, मामले की निष्पक्ष जांच नहीं हो सकती। इसलिए उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए। परमबीर ने इन आरोपों की पुष्टि के लिए वॉट्सऐप चैट और एसएमएसचैट साथ में संलग्न किए हैं। वॉट्सऐप चैट में साफ पता चल रहा है कि कितने पैसे कब और और कैसे जमा करने हैं। सत्ता और पुलिस के गठजोड़ के जरिए देश को लूटने के आरोप तो पहले भी लगाए जाते रहे हैं।बोहरा कमेटी की रिपोर्ट में भी इस पर चिंता जाहिर की गई थी।इस गठजोड़ को तोड़ने के लिए भी एक नोडल कमेटी गठित हुई थी लेकिन उस कमेटी ने क्या कुछ किया,यह तो फलक पर दिखा नहीं। मुम्बई के पूर्व पुलिस आयुक्त ने संभवतः पहली बार सत्ता और पुलिस के गठजोड़ से होने वाली संगठित लूट पर मुंह खोला है।उसे बन्द करने के प्रयास भी तेज हो गए हैं। अगर वह पड़ पर रहते हुए इस तरह का साहस करते तो जनता की नजरों में उनकी इज्जत और बढ़ जाती लेकिन इस घटना ने महाराष्ट्र ही नहीं,देश भर के सत्ता प्रतिष्ठान को सोचने पर विवश कर दिया है कि उनकी कार्रवाई से नाराज अधिकारियों ने अगर परमबीर की तरह मुंह खोलने आरम्भ कर दिया तो उनका क्या होगा।वे इतना तो जानते ही हैं कि जो आदमी मुंह खोला सकता है,वह कल प्रमाण भी दे सकता है।जाहि निकारो गेह ते कस न भेद कहि देहि। एकाध मंत्री,अधिकारी को हटाने से ही बात नहीं बनने वाली,नेताओं,अधिकारियों और पुलिस के इस संगठित लूट तंत्र और संघावृत्ति को तोड़ना होगा अन्यथा यह देश यूं ही खोखला होता रहेगा। यह समस्या तब तक बनी रहेगी जब तक नेता मतलबपरस्तों को अपने मत देती रहेगी। एनसीपी के दागदार इतिहास किसी से छिपा नहीं हैं। तेलगी स्टाम्प घोटाला मामले में छगन भुजबल,सिंचाई घोटाला मामले में अजित पवार की संलिप्तता पहले ही सामने आ चुकी है,अन्ना हजारे के आंदोलन के चले भ्रष्टाचार में लिप्त राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कैमंत्रियों को इस्तीफा तक देना पड़ा था।यह सब जानते हुए भी जब उद्धव ठाकरे ने भाजपा का साथ छोड़ एनसीपी के दमन थाम था तो उससे इसी तरह के प्रतिफल की अपेक्षा थी।बबूल बोकर आम खाने का लोभ भला कौन पालता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस मामले की निष्पक्ष जांच होगी लेकिन जहां व्यवस्था के सभी कुओं में भ्रष्टाचार की भांग पड़ी हो,वहां देशहित सुरक्षित कैसे रहेगा,यह आज के दौर की सबसे बड़ी चिंताजनक बात है।क्या यह देश यूं ही लुटता रहेगा या कोई हल भी निकलेगा। भानुमती के पिटारे अब एक नहीं,कई हैं। हर चेहरे पर कई-कई नकाब हैं।जिनका खुलना और बेनकाब होना बहुत जरूरी है। ऐसा हुए बिना न राज खुलेंगे, न बात बनेगी।
-सियाराम पांडेय 'शांत'-
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