नयी दिल्ली, 16 अप्रैल, केन्द्रीय अण्वेषण ब्यूरो के पूर्व निदेशक रंजीत सिन्हा का शुक्रवार की सुबह निधन हो गया। वह 68 वर्ष के थे। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उनकी मृत्यु संभवत: कोविड-19 से जुड़ी हुई है। उन्होंने बताया कि सिन्हा के बृहस्पतिवार की रात कोरोना वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि हुई थी और शुक्रवार तड़के करीब साढ़े चार बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। बिहार कैडर के 1974 बैच के अधिकारी सिन्हा ने 21 साल की आयु में प्रतिष्ठित यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग) परीक्षा उत्तीर्ण की थी। सिन्हा 2012 में सीबीआई प्रमुख बने और दो साल इस पद पर रहे। केन्द्रीय जांच एजेंसी के 26वें निदेशक के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान ही सीबीआई को ‘पिंजरे में बंद पक्षी’ कहा जाने लगा था।
गौरतलब है कि सिन्हा ने तत्कालीन विधि मंत्री अश्वनी कुमार और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ अपनी बैठकों पर विस्तृत जानकारी देते हुए उच्चतम न्यायालय में नौ पन्नों का हलफनामा दायर किया था, इसी पर न्यायमूर्ति आर. एम. लोधा ने उक्त टिप्पणी की थी। इन्हीं बैठकों के दौरान न्यायालय को सौंपे गए कोयला घोटाले की जांच रिपोर्ट में बदलाव किया गया था। विवाद के बाद पत्रकारों के सवालों के जवाब में सिन्हा ने कहा था, ‘‘उच्चतम न्यायालय जो कुछ भी कर रहा है, वह सही है।’’ कार्यकाल के लगभग समाप्ति के समय एक और विवाद उनसे जुड़ा। 2014 में एक तथा-कथित विजिटर्स डायरी सामने आयी जिसमें कोयला और 2जी घोटाले से जुड़े लोगों के नाम थे। डायरी के मुताबिक ये लोग कथितरूप से अकसर सिन्हा के आवास पर जाते थे। एक जनहित याचिका में यह आरोप लगने के बाद कि सिन्हा ने अपने आवास पर आरोपियों से भेंट की थी उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई प्रमुख को खुद को 2जी घोटाले की जांच से अलग करने का निर्देश दिया था। न्यायालय ने सीबीआई के पूर्व विशेष निदेशक एम. एल. शर्मा से कहा था कि वे आरोपों की जांच करें। शर्मा की रिपोर्ट के आधार पर सीबीआई ने सिन्हा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की, जिसकी अभी भी जांच की जा रही है। अकसर विवादित टिप्प्णियां करने वाले सिन्हा ने भारत में स्पोर्टस एथिक्स पर कहा था, ‘‘अगर आप सट्टेबाजी पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते हैं तो, इसका मतलब यह कहने जैसा ही हुआ कि ‘अगर आप बलात्कार रोक नहीं सकते हैं तो इसका आनंद लें।’’ इस टिप्पणी ने खूब सुर्खियां बटोरी थीं। राहुल द्रविड़ जैसे वरिष्ठ खिलाड़ी की उपस्थिति में की गई टिप्पणी की नेताओं ने कटु आलोचना की थी और कहा था यह यह बलात्कार का महिमामंडन करने जैसा है। सिन्हा ने अगले दिन कहा था कि अगर उनके ‘‘बिना विचार किए और अनायास की गई टिप्पणी’’ से किसी को ‘‘तकलीफ’’ हुई है तो वह माफी मांगते हैं। इससे पहले 1996 में पटना उच्च न्यायालय ने चारा घोटाला में लालू प्रसाद का बचाव करने में सिन्हा की भूमिका पर सवाल उठाए थे। अदालत के आदेश पर सिन्हा को जांच से हटा दिया गया था। सीबीआई ने अपने शोक संदेश में कहा, ‘‘केन्द्रीय अण्वेषण ब्यूरो के पूर्व निदेशक रंजीत सिन्हा के निधन की सूचना पाकर सीबीआई बहुत दुखी है। सीबीआई शोक संतप्त परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करता है और ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वह परिवार को यह दुख बर्दाश्त करने की शक्ति दे।’’ प्रभारी निदेशक प्रवीण सिन्हा ने एक बयान में कहा, ‘‘दुख की इस घड़ी में हमारी संवदेनाएं शोक संतप्त परिवार के साथ हैं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।’’
तमाम विवादों के बावजूद सिन्हा को आतंकवाद और नक्सलवाद संबंधी मुद्दों पर अच्छी पकड़ के लिए जाना जाता है। छत्रपति शिवाजी रेलवे स्टेशन के 26/11 मुंबई आतंकवादी हमले की जद में आने के बाद महानिदेशक के रूप में रेलवे संरक्षा बल को नया रुप देने के लिए भी सिन्हा का जाना जाता है। सिन्हा ने उस दौरान कमांडो यूनिट और त्वरित प्रतिक्रिया बलों के गठन, रेलवे स्टेशनों पर भी हवाई अड्डे की तरह सुरक्षा व्यवस्था करने, स्कैनर, कैम्रे आलगाने की सिफारिश की थी ताकि भविष्य में आतंकवादी हमले से बचा जा सके। रेलवे पुलिस प्रमुख के रूप में उन्होंने अपनी पूर्व मंत्री ममता बनर्जी को आरपीएफ कमांडो सुरक्षा मुहैया कराने से इंकार कर दिया था, जिसे लेकर उनकी सत्ता पक्ष से अनबन हो गयी। बनर्जी उस वक्त तक पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बन चुकी थीं और उसके बावजूद उन्होंने आरपीएफ की सुरक्षा रखी हुई थी। सिन्हा ने इसपर सवाल उठाते हुए कहा था कि आरपीएफ को वीवीआईपी सुरक्षा का जिम्मा नहीं मिला हुआ है। इसके बाद उन्हें आरपीएफ प्रमुख के पद से हटा दिया गया और चार महीने तक वह बिना किसी पद के रहे थे। पहले शुरुआती दिनों में सिन्हा रांची, मधुबनी और सहरसा जिलों में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के रूप में नियुक्त रहे और बाद में वह बिहार के नक्सल बेल्ट मगध रेंज के पुलिस उपमहानिदेशक बने। उन्होंने भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल (आईटीबीपी) का भी नेतृत्व किया था। आईटीबीपी ने एक बयान में कहा, ‘‘आईटीबीपी के महानिदेशक एवं सभी रैंक के कर्मी आईटीबीपी के पूर्व महानिदेशक रंजीत सिन्हा के दु:खद निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हैं। उन्होंने एक सितंबर, 2011 से 19 दिसंबर, 2012 तक महानिदेशक के रूप में और इससे पहले अतिरिक्त महानिदेशक के रूप में बल में सेवाएं दी थीं। उन्हें उनके पेशेवर कौशल एवं असाधारण नेतृत्व के लिए हमेशा याद किया जाएगा। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।’’ सिन्हा ने भारतीय लोक प्रशासन संस्थान से एमफिल की डिग्री ली थी। वह पढ़ने एवं लिखने के बहुत शौकीन थे और विभिन्न पत्रिकाओं में नीति संबंधी मामलों में नियमित रूप से लिखते थे। सिन्हा को उत्कृष्ट सेवा के लिए पुलिस पदक और विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पुलिस पदक से सम्मानित किया गया था।
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