बिहार : धर्मातरण पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका को खारिज - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 14 अप्रैल 2021

बिहार : धर्मातरण पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका को खारिज

  • जबतक डॉ.भीमराव अम्बेडकर और अन्य द्वारा लिखित संविधान रहेगी तबतक मौलिक अधिकारों का हनन नहीं होगी..

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पटना. देश में कोई भी वयस्क अपने मन मुताबिक धर्म को अपना सकता है और उसे ऐसा करने की पूरी आजादी है. धर्मातरण पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कही है.अधिवक्ता और बीजेपी लीडर अश्विनी उपाध्याय ने अपनी अर्जी में शीर्ष अदालत से काला जादू, अंधविश्वास और धोखाधड़ी से धर्मांतरण कराने पर बैन लगाने की मांग की थी.अदालत ने इस याचिका को खारिज कर दिया और उपाध्यय को फटकार भी लगाई.कोर्ट ने कहा, '18 साल से अधिक आयु के व्यक्ति को धर्म चुनने से रोकने की हम कोई वजह नहीं मानते.' इसके साथ ही अदालत ने कहा कि यह पीआईएल पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन जैसी हो गई है, जिसका मकसद लोकप्रियता हासिल करना है. देश में जबरन धर्मांतरण, काला जादू के मामलों का उदाहरण देते हुए अश्विनी उपाध्याय ने यह मांग की थी.यही नहीं उन्होंने 1995 के सरला मुद्गल केस का भी जिक्र किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को धर्मांतरण रोधी कानून लाने पर विचार करने को कहा था. सरला मुद्गल केस में सुप्रीम कोर्ट के उद्धरण का उपाध्याय ने जिक्र किया.इस फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा था, ‘इस कानून में यह प्रावधान किया जा सकता है कि जो भी व्यक्ति अपना धर्म बदलता है, वह पहली पत्नी को तलाक दिए बिना दूसरा विवाह नहीं कर सकता.यह प्रावधान सभी लोगों पर लागू होना चाहिए, भले ही वे हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, जैन या बौद्ध कोई भी हों. इसके अलावा मेंटनेंस और उत्तराधिकार को लेकर भी कानून बनाया जाना चाहिए.’ उच्चतम न्यायालय ने 9 अप्रैल को कहा कि लोग अपने धर्म का चयन करने के लिए स्वतंत्र हैं और उसे ऐसा करने की पूरी आजादी है. धर्मातरण पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कही है.अधिवक्ता और बीजेपी लीडर अश्विनी उपाध्याय ने अपनी अर्जी में शीर्ष अदालत से काला जादू, अंधविश्वास और धोखाधड़ी से धर्मांतरण कराने पर बैन लगाने की मांग की थी। न्यायमूर्ति रोहिंटन एफ. नरीमन के नेतृत्व वाली बेंच ने कहा कि लोगों को धर्म के प्रचार, अभ्यास और प्रचार के लिए संविधान के तहत एक अधिकार है. उन्होंने इस याचिका को खारिज कर दिया और उपाध्यय को फटकार भी लगाई. कोर्ट ने कहा, ʺ18 साल से अधिक आयु के व्यक्ति को धर्म चुनने से रोकने की हम कोई वजह नहीं मानते.ʺ इसके साथ ही अदालत ने कहा कि यह पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन (पीआईएल) जैसी हो गई है, जिसका मकसद लोकप्रियता हासिल करना है. शीर्ष अदालत ने संविधान का जिक्र करते हुए कहा कि अनुच्छेद 25 में प्रचार की बात कही गई है, जो धर्म की आजादी देता है.सुप्रीम कोर्ट की ओर से सुनवाई से इनकार के बाद उपाध्याय ने अपनी अर्जी को वापस ले लिया. उपाध्याय का कहना है कि वह इस संबंध में कानून मंत्रालय और विधि आयोग के समक्ष अपनी बात रखेंगे.अधिवक्ता ने अपनी अर्जी में सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि वह केंद्र और राज्य सरकारों को अनुसूचित जाति/जनजाति के सामूहिक धर्मांतरण को रोकने के लिए आदेश जारी करे. इसके अलावा, याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 46 के तहत संघीय और राज्य सरकार अनुसूचित जाति/जनजाति के सामाजिक अन्याय और शोषण के अन्य रूपों से बचाने के लिए बाध्य है.याचिका में मांग की गई थी कि धर्मांतरण विरोधी कानूनों के पालन के लिए एक कमिटी के गठन का आदेश दिया जाना चाहिए, जिसका काम धोखाधड़ी से धर्मांतरण के मामलों की निगरानी करना होगा.


इस संदर्भ में पटना महाधर्मप्रांत के प्रवक्ता अमल राज ने 'जनादेश' से बातचीत में कहा कि न्यायमूर्ति रोहिंटन एफ. नरीमन के नेतृत्व वाली बेंच ने जो कहा है कि लोगों को धर्म के प्रचार, अभ्यास और प्रचार के लिए संविधान के तहत एक अधिकार है.उसे बरकरार रखा है, जो स्वागतयुक्त है.उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि 18 साल के बाद हर कोई अपने धर्म का चयन करने के लिए स्वतंत्र है.बहुत अच्छा फैसला है. सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी की पसंद को रोकने के लिए मैं कौन हूं जो एक प्रमुख विचार है. सामाजिक कार्यकर्ता एस के लौरेंस कहते हैं कि  जबतक भारत देश धर्म निरपेक्ष राष्ट्र रहेगा,जबतक वर्तमान संविधान में छेड़ छाड़ किये बगैर इसके तहत सही कार्य तथा सही निर्णय लिया जाता रहेगा,जबतक दबाव में आए बिना सुप्रीम कोर्ट सही फैसला करता रहेगा तथा जबतक सरकार सभी धर्म के प्रति समान विचारधारा तथा सम्मान रखती रहेगी,तबतक स्वेच्छा से धार्मिक स्वतंत्रता की आजादी रहेगी.सुप्रीम कोर्ट द्वारा सही निर्णय लिये जाने के लिये धन्यवाद.भारत देश में रहने वाला हर वयस्क नागरिक अपनी इच्छा से,बगैर किसी दबाव के,किसी भी धर्म को मानने के लिये स्वतंत्र है।हमारी सरकार तथा न्यायालयों को उन लोगों पर भी उचित कार्यवाही करनी चाहिये,जो निर्दोष अल्पसंख्यकों पर लालच देकर धर्मांतरण करने का झूठा तथा मनगढंत इल्जाम लगाकर परेशान करने,उनसे मारपीट करने तथा थानों में झूठी शिकायत कर सजा दिलवाने का कार्य करते हैं.मन दुखी होता है यह देखकर की देश में सत्ताधारी या कई राजनैतिक पार्टियों में शामिल कई अल्पसंख्यक नेता या पदाधिकारिगण अल्पसंख्यकों के पक्ष में न्याय के लिये आवाज़ उठाने या कार्य करने के बजाय खामोश रहते हैं. वैसे तो सबको यह पता ही है कि डॉ. भीमराव अम्बेडकर भारत की संविधान सभा की उस समिति के सभापति थे, जिसने संविधान के दूसरे प्रारूप को तैयार किया. पहला प्रारूप संविधानिक परामर्शदाता बी. एन राऊ द्वारा तैयार किया गया था. डॉ. अम्बेडकर ने संवैधानिक प्रावधानों और शब्दों को अर्थ देने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. लेकिन उल्लेखनीय बात यह है कि अपनी स्तर पर भारत के संविधान पर वे पहले से काम कर रहे थे. उन्होंने वर्ष 1945 में अनुसूचित जाति फेडरेशन (जिसका निर्माण खुद उन्होंने 1940 के दशक की शुरुआत में किया था) के लिए स्टेट्स एंड माइनोरिटीज़ (राज्य और अल्पसंख्यक/अल्पमत) नामक दस्तावेज तैयार किया था. संविधान के रूप में ही लिखे गए इस दस्तावेज का मुख्य मकसद अनुसूचित जाति समुदाय के लिए सुरक्षा तंत्र के विकल्प प्रस्तुत करना था.

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