बिहार विधान परिषद के पूर्व सभापति पंडित तारा कांत झा जिनकी आज पुण्यतिथि है वह एक महामानव थे। बिहार विधान परिषद का मै वर्ष 2008 में सदस्य चुना गया और मेरे कार्यकाल में पंडित तारा कांत झा जी बिहार विधान परिषद के सभापति बने इस अवधि में मैं लगातार उनके संपर्क में रहा तथा उनकी कार्य कुशलता को नजदीक से देखने का मौका मिला। सभापति के रूप में वह लगातार बिहार विशेषकर मिथिलांचल के विकास के लिए प्रयास करते रहे।। 2 ऐतिहासिक कार्यों की चर्चा यहां आवश्यक है एक तो उन्होंने बिहार विधान परिषद के शताब्दी समारोह का जिस भव्यता से आयोजन किया वह सदा स्मरणीय रहेगा। देश के तत्कालीन राष्ट्रपति स्व० अब्दुल कलाम साहब तक इस समारोह में भाग लेने पटना पहुंचे। शताब्दी वर्ष के अंतर्गत दुर्लभ 27 ग्रंथों का प्रकाशन विधान परिषद द्वारा किया जाना। इन ग्रंथों में वैसे कई ग्रंथ है जो विलुप्त हो रहे थे और इनका दोबारा प्रकाशन करा कर पं तारा कांत झा ने इतिहास की रक्षा की। बटुकेश्वर दास जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी पर भी इन्होंने पुस्तक प्रकाशित कराई। विधान परिषद का इतिहास, सदस्यों का प्रोफाइल, इत्यादि का प्रकाशन भी उन्हीं के समय में हुआ। सदन में सदस्यों द्वारा उठाए गए सवालों के आधार पर उन्होंने सदस्यों का रिपोर्ट कार्ड भी जारी किया जो देश के विभिन्न समाचार पत्रों ने प्रमुखता से प्रकाशित किया। मेरा नाम भी सर्वोत्कृष्ट प्रश्न कर्ता के रूप में जारी किया गया। विधान परिषद की स्थापना 20 जनवरी 1913 में हुई थी और इसके 100 वर्ष पूरा होने पर पटना कॉलेज में शताब्दी समारोह का विधिवत उद्घाटन पंडित झा ज़ी ने करवाया था।। परिषद स्थित कबीर वाटिका में पंडित झा ने एक विशाल स्मृति स्तंभ भी इस अवसर पर निर्मित करवाया जिसमें सभी सदस्यों का नाम गोदा गया है। मिथिला और मैथिली के प्रति उनका लगाओ सर्व विदित है। महान व्यक्तियों की स्मृति में राजकीय समारोह का प्रावधान है लेकिन महान विभूति विद्यापति इस से वंचित थे। मैंने इस संबंध में विधान परिषद में संकल्प लाया और सभापति होते हुए भी तारा बाबू ने विद्यापति के महत्व को स्वयं रेखांकित कर सबों को आश्चर्य में डाल दिया और मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार को विद्यापति समारोह को राजकीय समारोह घोषित करना पड़ा। रामनवमी की छुट्टी बिहार में होती रही लेकिन जानकी नवमी की छुट्टी नहीं होती थी। तारा बाबू के पहल से बिहार में जानकी नवमी की छुट्टी घोषित की गई। इतना ही नहीं मिथिला पेंटिंग का प्रशिक्षण केंद्र भी इन्हीं के प्रयास से मधुबनी के सैराठ गांव के निकट स्थापित हुआ। मिथिलांचल के सर्वांगीण विकास के लिए इन्होंने सरकार को कई योजनाएं सौंपी थी जिनमें कुछ का क्रियान्वयन हुआ बाकी ठंडे बक्से में पड़ा हुआ है। मिथिला एवं मैथिली के लिए इन्होंने एक अभियान उन दिनों चलाया था जब वो सभापति नहीं थे। मिथिलांचल के हर गांव कि उन्होंने पैदल यात्रा कर जन जागरण-चेतना जगाने का कार्य किया था। मधुबनी के शिवनगर गांव में जन्मे पंडित तारा कांत झा अपनी विलक्षण क्षमता के कारण ही पटना उच्च न्यायालय के प्रसिद्ध अधिवक्ता रहे एवं बिहार के महाधिवक्ता भी बनाए गए। मधुबनी शहर के मध्य में तारा बाबू के द्वारा बनवाए गए विद्यापति टावर सदा इनकी याद दिलाती रहेगी। पं तारा कांत झा को आज उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर हार्दिक श्रद्धांजलि एवं शत-शत नमन।।
मंगलवार, 11 मई 2021
स्मृति शेष!! : महामानव थे पंडित तारा कांत झा : प्रो० विनोद चौधरी
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