कोविड रिस्पॉन्स टीम’ द्वारा आयोजित हम जीतेंगे— पाज़िटीविटी अनलिमिटेड’ व्याख्यानमाला में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने कोरोना रोगियों और कमजोर परिवारों की सेवा में आज की सबसे बड़ी आवश्यकता बताई है। उन्होंने स्वयंसेवकों से आह्वान किया है कि वे स्वयं को सजग, सक्रिय व स्वस्थ रखते हुए धैर्य व अनुशासन के साथ सेवा कार्यों में जुटे। कोरोना के रोगियों को अस्पतालों में बिस्तर, ऑक्सीजन आदि उपलब्ध हों, इसके प्रयास करने चाहिए। सेवा कार्यों में लगे संगठनों को सहयोग करना चाहिए।अपने आस—पास के उन परिवारों की चिंता करनी चाहिए जिन पर आर्थिक संकट है। सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने विश्वास व्यक्त किया है कि दृढ़ संकल्प, सतत प्रयास व धैर्य के साथ भारतीय समाज कोरोना पर निश्चित ही विजय प्राप्त करेगा। उन्होंने कहा कि यह समय गुण-दोषों के बारे में चर्चा करने का नहीं है बल्कि इस समय समाज के सभी वर्गों को एक साथ मिलकर सामूहिक प्रयास करने होंगे ताकि इस संकट से हम पार पा सकें। हम जीतेंगे— पाज़िटीविटी अनलिमिटेड व्याख्यानमाला के पांचवें व अंतिम दिन अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि सब लोग परस्पर एक टीम बन कर काम करेंगे तो सामूहिकता के बल पर हम अपनी और समाज की गति बढ़ा सकते हैं। इस समय अपने सारे मतभेद भुलाकर हमें एक साथ मिलकर काम करना होगा। भागवत ने कहा कि इससे अर्थव्यवस्था, रोजगार, शिक्षा आदि पर गहरा प्रभाव पड़ा है। आने वाले दिनों में अर्थव्यवस्था पर और असर पड़ सकता है, इसलिए इसकी तैयारी हमें अभी से करनी होगी। भविष्य की इन चुनौतियों की चर्चा से घबराना नहीं है बल्कि ये चर्चा इसलिए जरूरी है ताकि हम आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए समय रहते तैयारी कर सकें। उन्होंने कहा कि घर पर खाली न बैठें, कुछ नया सीखें, परिवारों में संवाद बढ़ाएं। यश—अपयश को पचा कर लगातार आगे बढ़ने की हिम्मत रखनी होगी। भारत एक प्राचीन राष्ट्र है तथा इस पर पूर्व में कई विपत्तियां आईं। लेकिन हर बार हमने उन पर विजय प्राप्त की है, इस बार भी हम विजय प्राप्त करेंगे। इसके लिए हमें अपने शरीर से कोरोना को बाहर रखना है तथा मन को सकारात्मक रखना है। इन कठिन परिस्थितियों में निराशा की नहीं बल्कि इससे लड़कर जीतने का संकल्प लेने की जरूरत है। ऐसी बाधाओं को लांघ कर मानवता पहले भी आगे बढ़ी है और अब भी आगे बढ़ती रहेगी।
रविवार, 16 मई 2021
कोरोना रोगियों और परिवारों की सेवा सबसे बड़ी आवश्यकता : मोहन भागवत
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