रोजाना सूरज के उजियारे के साथ घर की महिलाएं हाथ में पानी का बर्तन लिए एक किलोमीटर पैदल चलकर नदी किनारे पहुंचती हैं, फिर झरिया (नदी किनारे की ज़मीन) खोदकर प्यास बुझाने के लिए पानी निकालती हैं। वह पानी भी साफ नहीं रहता है, इसीलिए उसे घर ले जाकर पहले गन्दे पानी को छानती हैं और फिर पीने लायक बनाती हैं। यह स्थिति है छत्तीसगढ़ में दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा जिला स्थित पोंदुम ग्राम पंचायत के बुरकापारा क्षेत्र की। जो आज आजादी के सात दशक बाद भी पीने के साफ पानी के लिए तरस रहा है। यहां आज तक कोई भी सरकार ग्रामीण आदिवासियों के लिए स्वच्छ जल की व्यवस्था नहीं करा पाई है।
स्थिति यह है कि पानी की तलाश में गांव की 60-70 वर्षीय वृद्ध महिलाओं को भी अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी लाने नदी जाना पड़ता है। बुरकापारा की वार्ड पंच मंगों मण्डावी के साथ साथ अन्य महिलाएं आयते मण्डावी, बुधरी, लक्में और पायकों ने बताया कि हमारे क्षेत्र में एक भी हैंडपंप नहीं है। जो भी पानी के स्रोत हैं वह यहां से बहुत दूर हैं। महिलाओं ने बताया कि रोजाना लगभग एक किलोमीटर से ज्यादा दूर जाकर हम सभी पानी लाते हैं। नदी का पानी कभी थोड़ा साफ रहता है तो कभी बहुत गंदा, फिर भी हम मजबूरी में उसी पानी का उपयोग करते हैं। बुरकापारा निवासी एवं आंगनबाड़ी कार्यकर्ता लक्ष्मी मण्डावी कहती हैं कि हमें पानी की बहुत ही ज्यादा समस्या है। घर की हर जरूरतों के लिए नदी से ही पानी लाना पड़ता है और पानी लाने में ही हमारे दिन का आधा समय चला जाता है। उसके बाद ही आंगनबाड़ी का कार्य कर पाती हूं। इससे हमें शारीरिक के साथ साथ मानसिक थकान भी बहुत होती है और पीने के लिए स्वच्छ पानी नहीं मिलने से विभिन्न बिमारियों का खतरा भी बना रहता है।
इस संबंध में दंतेवाड़ा जिले के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के सहायक अभियंता देवेन्द्र आर्मो ने बताया कि पोदुंम के बुरकापारा क्षेत्र ड्राई जोन में आता है, इसलिए वहां बोर खनन सफल नहीं हो रहा है। हालंकि एक पुराने हैण्डपंप को फिर से शुरू करने का प्रयास किया जा रहा है। हमारी तकनीकी टीम ने वहां दौरा कर काम भी शुरू कर दिया है। इसके अलावा पाइपलाइन से पानी पहुंचाने की भी वहां कार्य योजना तैयार की गई है, जिस पर जल्द ही टेंडर की प्रक्रिया भी पूरी की जाएगी।
देश का कोई भी राज्य या गांव हो, 21वीं सदी में भी लोगों को पीने के लिए साफ पानी नहीं मिलना दुर्भाग्य है। ऐसे हालात को देखकर सरकार के सर्वांगीण विकास के दावे पर भी प्रश्नचिन्ह लग जाता है। भारत सरकार की जल जीवन मिशन वेबसाइट के अनुसार प्रदेश में 19 हजार से ज्यादा गांव हैं, जिनमें से 6 हजार से ज्यादा गांवों में पाइप लाइन वाटर कनेक्शन नहीं है। वहीं 61 फीसदी गांवों में ही कनेक्शन काम कर रहे हैं। रिपोर्ट की माने तो प्रदेश के तकरीबन 13 हजार 900 से ज्यादा गांवों में कनेक्शन 100 फीसदी नहीं है यानि वहां आधे लोगों तक ही पानी पहुच पाया है। पेयजल स्त्रोतों की गुणवत्ता को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर जारी आंकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ का स्थान 14वां है यानि 91.1 फीसदी घरों के पेयजल स्रोतों में सुधार हुआ है।
छत्तीसगढ़ में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में पेयजल व्यवस्था ज्यादा बेहतर नजर आता है जो कि 97 फीसदी तक है। वहीं इस मामले में राष्ट्रीय औसत 89.9 फीसदी है। इस आधार पर छत्तीसगढ़ का औसत राष्ट्रीय औसत से 2 फीसदी तक ज्यादा है। हांलकि जमीनी हकीकत देखें तो वह सरकार के आंकड़ों से मेल नहीं खाती है। जबकि केन्द्र सरकार की जल जीवन मिशन एवं राज्य सरकार की अमृत मिशन जैसी योजनाएं केवल पेयजल उपलब्ध कराने के उद्देश्य से ही चलाई जा रही हैं। बावजूद इसके छत्तीसगढ़ के दुर्गंम स्थानों पर रहने वाले ग्रामीणों को पीने के लिए साफ पानी का नहीं मिलना दावे और व्यवस्था दोनों को कटघरे में खड़ा करता है।
रायपुर, छत्तीसगढ़
(यह आलेख संजॉय घोष मीडिया अवार्ड 2020 के अंतर्गत लिखा गया है)
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