यहां हमने आईईए के महत्वाकांक्षी लक्ष्य और बिग ऑयल की जलवायु संबंधी योजनाओं के बीच अंतर का विश्लेषण किया है।
रिपोर्ट में ध्यान देने वाली कुछ ख़ास बातें हैं:
1. आईईए ने इस बात पर जोर दिया है कि नेटजीरो परिदृश्य को तात्कालिक कदमों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, न कि 2050 के लक्ष्यों पर। इसका मतलब यह है कि जीवाश्म ईंधन के मौजूदा उत्पादन को समाप्त करना होगा और तेल की खोज की जारी कवायद को रोकना होगा। मगर प्रमुख तेल कंपनियां इनमें से किसी भी काम के लिए संकल्पबद्ध नजर नहीं आतीं। इस बीच शेल जैसी कंपनियों ने तेल और गैस के जारी उत्पादन और उसके विस्तार को तार्किक बनाने के लिए कार्बन सिंक तैयार करने का सुझाव दिया है। उधर, बीपी भी आने वाले वर्षों में गैस और एलएनजी के उत्पादन में भारी बढ़ोत्तरी करने की फिराक में है। वहीं, अन्य कंपनियों ने कार्बन मापन की मौजूदा अपर्याप्त प्रणालियों के धुंधलके के पीछे छुपते हुए कार्बन के प्रति तटस्थ तेल और गैस के कारोबार के बारे में भ्रामक दावे करना शुरू कर दिया है।
2. प्रौद्योगिकी के अप्रामाणिक इस्तेमाल से संबंधित पूर्वानुमानों में नाटकीय रूप से कमी लाने की जरूरत है।
हालांकि आईईए का नेट जीरो परिदृश्य अभी सीसीएस के साथ कोयले के इस्तेमाल की चिंताजनक मात्रा को जाहिर करता है, मगर इसके सीसीएस सम्बन्धी पूर्वानुमान तुलनात्मक रूप से अन्य अनेक नेटजीरो परिदृश्य के मुकाबले ज्यादा रूढ़िवादी लगते हैं। यह सीसीएस की क्षमता की हकीकत के ज्यादा करीब है। सीसीएस एक ऐसी प्रौद्योगिकी है जो पिछले 20 वर्षों में ऊंची लागत और झूठी शुरुआत से घिरी है। अनेक तेल और गैस कंपनियां आने वाले वर्षों में सीसीएस की प्रगति पर भारी और गैर-जिम्मेदाराना शर्तें लगाने जा रही हैं। इससे उन्हें तेल और गैस के उत्पादन में जारी विस्तार को तर्कसंगत बनाने में मदद मिलेगी। इसका एक खतरनाक पहलू यह भी है कि अगर सीसीएस की प्रगति को लेकर उनकी दम्भपूर्ण शर्तें फलीभूत नहीं हुई तो दुनिया जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल के भंवर जाल में फंस जाएगी। पिछले 20 वर्षों के दौरान सीसीएस को विकसित करने पर अरबों डॉलर खर्च किए जा चुके हैं लेकिन यह अब भी किसी पैमाने पर उपयोगी नहीं बन सकी है। एक विश्वसनीय नेटजीरो परिदृश्य को उद्योगों पर लगाम कसने के लिए सीसीएस के इस्तेमाल का सख्ती से बहिष्कार करने की जरूरत है, न कि अप्रमाणित क्षमता के आधार पर योजना बनाने की।
3. उद्योग और नीतियों को अक्षय ऊर्जा की संभावनाओं को विस्तार देने पर केंद्रित करने की जरूरत
करीब दो दशक तक अक्षय ऊर्जा के विकास को कम करके आंकने वाले आईईए ने इसकी क्षमता को लेकर बड़े-बड़े अनुमान जाहिर किए हैं। उसका कहना है कि ओईसीडी वाले देशों को वर्ष 2035 तक और गैर ओईसीडी वाले देशों को वर्ष 2040 तक अपने पूरे ऊर्जा क्षेत्र का डीकार्बनाइजेशन करने की जरूरत है। हालांकि आईईए नेट जीरो परिदृश्य में अक्षय ऊर्जा की मजबूत पैठ का विवरण देते हुए कहता है कि सौर ऊर्जा बिजली की सल्तनत का नया बादशाह है। मगर साथ ही वह वर्ष 2030 तक इस सेक्टर में होने वाली 20% वार्षिक विकास दर में वर्ष 2030 से 2040 के बीच मात्र 3% ही बढ़ोत्तरी होती देख रहा है। यह समझ से बिल्कुल परे है और बीएनईएफ के विशेषज्ञ इस दावे से पूरी तरह असहमत हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था काफी हद तक अक्षय ऊर्जा पर चलाई जा सकती है और इस क्षेत्र के लगातार विकास होने से सीसीएस जैसी अप्रमाणित प्रौद्योगिकियों और बायो एनर्जी जैसी नकारात्मक परिणामों वाली प्रौद्योगिकियों की काफी कम जरूरत रह जाएगी। बायो एनर्जी मैं खाद्य सुरक्षा और जमीन को लेकर टकराव उत्पन्न करने की क्षमता है और इस बात की भी संभावना है कि वह कार्बन तटस्थ ना हो इसके विपरीत प्रमुख तेल उत्पादक कंपनियां अक्षय ऊर्जा अपनाने के लिए पर्याप्त बदलाव करने को लेकर इच्छुक नजर नहीं आतीं। इस वक्त तेल कंपनियों के स्वामित्व वाली या उनके द्वारा अनुबंधित इकाइयों में मात्र 0.5% अक्षय ऊर्जा क्षमता ही स्थापित है।
एम्बर थिंक टैंक के वैश्विक प्रमुख डेवी जोंस अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं, “सौर तथा वायु बिजली का इस्तेमाल करने से वैश्विक तापमान में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने का लक्ष्य हासिल करने का रास्ता साफ होगा। लेकिन सिर्फ कोयले से बनने वाली बिजली को चरणबद्ध ढंग से समाप्त करना ही काफी नहीं होगा, बल्कि दुनिया को गैस से बनने वाली बिजली से भी धीरे-धीरे छुटकारा पाना होगा। आईईए ने जाहिर किया है कि अक्षम हो चुके कोयला बिजली घरों को वर्ष 2030 तक बंद करने की जरूरत है। यह जलवायु संरक्षण के प्रति अनेक देशों की महत्वाकांक्षा की पूर्ति की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम होगा। आईईए का कहना है कि जीवाश्म ईंधन की नई आपूर्ति में निवेश करने की कोई जरूरत नहीं है। यह बयान जीवाश्म ईंधन उद्योग के लिए बहुत बड़ा झटका है। यह जीवाश्म ईंधन से संचालित आईईए के लिए पिछले 5 वर्षों के दौरान हुआ आमूलचूल बदलाव है।” आगे, इंपीरियल कॉलेज लंदन के ग्रैंथम इंस्टीट्यूट के रिसर्च डायरेक्टर और आईपीसीसी 1.5 डिग्री सेल्सियस स्पेशल रिपोर्ट के मुख्य लेखक जोए रोजेल्जो कहते हैं, “आईईए का नया नेट-जीरो उत्सर्जन परिदृश्य इस क्षेत्र के लिए सर्वाधिक महत्वकांक्षी नहीं है, लेकिन साथ ही साथ यह सबसे ज्यादा रूढ़िवादी भी नहीं है। यह सिर्फ एक सांकेतिक प्रयास से आगे का मामला है।" आईईए में आलोचना और चर्चा का केंद्र बनने वाले प्रमुख पहलुओं में इसके परिदृश्य में इस्तेमाल किए गए बायो एनर्जी और कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज सीसीएस के स्तरों को भी शामिल किया जाएगा। इसलिए नहीं, कि वह अनुचित होंगे बल्कि इसलिए क्योंकि वह अनिश्चित हैं और कुछ हद तक नीतिगत पसंद की नुमाइंदगी करते हैं। भविष्य किसी ठोस दायरे में बंद नहीं है लिहाजा ऐसे विचार-विमर्श, उन प्रौद्योगिकियों और उपायों के बारे में सामाजिक बातचीत का हिस्सा हैं, जिन्हें हम पसंद करते हैं।
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