गुवाहाटी। तथाकथित आधुनिक ऐलोपैथिक चिकित्सा पद्धति के झंडाबरदारों से यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि उनकी तथाकथित आधुनिक चिकित्सा पद्धति ने स्वस्थ मानव जाति को रुग्ण मानव जाति में तब्दील कर जो अन्याय किया है, उसका हर्जाना कौन देगा? एलोपैथी चिकित्सा एक बीमारी ठीक करती है तो शरीर में तीन नये रोग पैदा करती है, जिससे पूरी मानव जाति रुग्ण मानव जाति में परिणत हो गई है। पाश्चात्य चिकित्सा पद्धति पहले मनुष्य को बीमार करती है, फिर उसके इलाज के नाम पर पैसे लूटती है। जबकि हमारी धरती का सिस्टम इतना सुंदर है कि अगर लोग उसके अनुसार चले तो कभी बीमार पडऩे की नौबत ही न आये। प्रकृृति ने मनुष्य के शरीर का इस प्रकार निर्माण किया है कि मनुष्य जब नंगे पैर जमीन पर चलता है तो उसके दोनों पैरों के तलवों में मौजूद प्वाईंटों से पृथ्वी की ऊर्जा उसके पूरे शरीर को मिलती रहती है, जिससे उसका हर अंग स्वस्थ और सबल होता है और वो रोगों से बचा रहता है। चुम्बक चिकित्सा पद्धति इसी सिद्धांत पर काम करती है। एक छोटे से चुंबक को शरीर से छुआ कर अगर बीमारियों का इलाज किया जा सकता है तो हमारी विशाल धरती की ऊर्जा का उपयोग कर मनुष्य के शरीर को क्यों निरोगी नहीं रखा जा सकता है?
एलोपैथी चिकित्सा को अधिक कमाऊ बनाने के लिए मनुष्य को धरती से प्राप्त होने वाली ऊर्जा से वंचित करने की सुनियोजित मुहिम छेड़ी गई तथा जमीन में मौजूद वायरस या वेक्टेरिया से मनुष्य के रोग ग्रस्त होने की आशंका बताते हुए हर वक्त जूते-चप्पल पहनने की ताकीद की गई। जब से मनुष्य जूते-चप्पल पहनने लगा, तब से वह धरती की ऊर्जा से वंचित होकर ज्यादा से ज्यादा रोगों का शिकार होने लगा और इस प्रकार एलोपैथी चिकित्सा पद्धति की पौ-बारह हो गई। एलोपैथी चिकित्सा पद्धति के विकसित होने से पूर्व डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, जोड़ों का दर्द आदि रोगों के बारे में कभी सुनने को भी नहीं मिलता था, लेकिन जब से लोगों ने पाश्चात्य चिकित्सा पद्धति को अपनाया, तब से हर घर में इन रोगों का बोलबाला हो गया है।
जमीन पर नंगे पांव चलने वाले लोग औरों की तुलना में अधिक निरोगी होते हैं तथा उनकी हृदय गति, रक्त प्रवाह, पाचन तथा श्वसन सहित शरीर की सभी प्रक्रियाएं सामान्य रुप से चलने में मदद मिलती है। इस प्रयोग से उर्जा का स्तर बढऩे से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढऩे के साथ ही तनाव, हाईपरटेंशन, जोड़ों में दर्द, नींद न आना, हृदय संबंधी समस्या, ऑथ्राईटिस, अस्थमा, ऑस्टियोपोरोसिस आदि रोगों से भी बचाव होता है। जैन साधु जीवन भर नंगे पाँव जमीन पर चलते हैं, इसलिए वे 24 घंटों में सिर्फ एक बार खाद्य खाने और पानी पीने के बावजूद स्वस्थ और हृष्ट-पुष्ट रहते हैं। अमेरिका से प्रकाशित एक पत्रिका जॉर्नल ऑफ अल्टरनेटिव एण्ड काम्प्लीमेन्टरी मेडिसीन में छपे एक लेख में कहा गया है कि धरती के संपर्क में आने से मनुष्य के शरीर में मौजूद लाल रक्त कोशिकाओं की सतह पर इलेक्ट्रॉनिक चार्ज में वृद्धि होती है, जिससे नसों में रक्त का प्रवाह बढ़ता है, जो हृदय रोग सहित कई रोगों में लाभकारी होता है। स्विट्जरलैंड के प्रतिष्ठित वैज्ञानिक शोध संगठन एमडीपीआई द्वारा इंटरनेशनल जॅर्नल ऑफ एनवायरनमेंटल रिसर्च एण्ड पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित शोध के अनुसार मानव शरीर के धरती के संपर्क में आने से शरीर की विद्युत-चुंबकीय व्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ता है। हृदयगति और शरीर में ग्लूकोज के रेग्यूलेशन में सुधार आता है, जिससे हृदय रोगियों और डायबिटीज के मरीजों के लिए नंगे पांव चलना बेहद लाभकारी पाया गया है।
ज्यों-ज्यों लोग प्रकृृति से दूर होते जा रहे हैं, त्यों-त्यों समाज में रोगियों और समस्याओं की तादात भी बढ़ती जा रही है। अगर लोग रोज सुबह आधे घंटे भी जमीन पर नंगे पांव चलने लगें तो फिर दुनिया की आधी बीमारी इसी से ठीक हो सकती है। इससे न सिर्फ बेहतर नींद आती है, बल्कि ऑक्सीजन का स्तर बढऩे से दिन भर शरीर में स्फ़ूर्ति भी बनी रहती है। शरीर में किसी भी प्रकार का दर्द हो तो उसमें भी आराम मिलता है। किसी जमाने में सभी रोगों का इलाज मिट्टी (मृदा चिकित्सा) से किया जाता था। आदि मानव भूमि पर सोता था, नंगे पांव चलता था, यानि हर क्षण धरती के संपर्क में रहता था, इसलिए पुराने जमाने में लोग स्वस्थ जीवन जीते थे। लोगों को धरती की ऊर्जा से वंचित कर एलौपेथी चिकित्सा पद्धति जहां चांदी काटने का हथियार बन गई, वहीं स्वस्थ जीवन जीने की सुविधा के बावजूद मानव जाति सदाबहार रुग्णता का शिकार हो गई। अगर देश को एलोपैथी की लूटपाट से बचाना है तथा अवाम को स्वस्थ बनाना है, तो रोज सुबह आधे घंटे नंगे पांव जमीन पर चलने की मुहिम को आंदोलन का रूप देना होगा, तब न सिर्फ देश को एलोपैथी की लूट-पाट से बचाया जा सकेगा, अपितु एक स्वस्थ भारत का भी निर्माण किया जा सकेगा।
- राजकुमार झाँझरी, अध्यक्ष, रि-बिल्ड नॉर्थ ईस्ट, गुवाहाटी
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