- · उर्दू आलोचना की एक बहुप्रशंसित पुस्तक।
- · आधुनिक उर्दू कविता की खूबियों को जानने और उससे संबंधित मसलों को समझने के लिए यह एक जरूरी किताब है।
- · इसमें उर्दू की आधुनिक कविता के संदर्भ में भारतीय उपमहाद्वीप की सामाजिक, सांस्कृतिक राजनीतिक परंपरा के हवाले से प्रगतिवाद, आधुनिकता और उत्तर आधुनिकता पर विचार किया गया है और इस पर जोर दिया गया है कि हमारा जीवन हमारे समय के पश्चिमी जीवन और सोच समझ की कार्बन कॉपी नहीं है।
- · आधुनिक उर्दू शायरों की रचनाओं से रू-ब-रू होने का एक दुर्लभ मौका भी यह किताब देती है।
नई दिल्ली : उर्दू भाषा के दिग्गज साहित्यालोचक, शायर और नाटककार शमीम हनफ़ी ( 1938 - 06 मई 2021) की यह किताब आधुनिक उर्दू कविता के बारे में उनके आकलन को पेश करने वाली प्रतिनिधि कृति मानी जा सकती है। समकालीन साहित्य और उससे जुड़े मसले शमीम साहब के सोच और दिलचस्पी का ख़ास विषय रहे। वह इस संबंध में, उर्दू साहित्य को आधार बनाकर, लगातार लिखकर अपना नजरिया रखते रहे। आधुनिक उर्दू कविता पर विचार करते हुए उन्होंने उन्नीसवीं सदी और बीसवीं सदी के बहुत से शायरों को अपने आलोचनात्मक अध्ययन के दायरे में शामिल किया। इस तरह ग़ालिब, जिन्हें वे उर्दू का आख़िरी क्लासिकी और पहला आधुनिक शायर मानते हैं, से लेकर आज तक की शायरी उनके आलोचनात्मक अध्ययन का विषय बनी। पिछले पचास-साठ बरसों के अपने लेखकीय जीवन में उन्होंने इस विषय पर कम से कम साठ-सत्तर निबंध लिखे। उनमें से अधिकतर उर्दू में छपी उनकी दो आलोचना पुस्तकों ‘हमसफ़रों के दरमियां’ और ‘हमनफ़सों की बज़्म में’ संकलित हैं. उर्दू साहित्य, खासकर आधुनिक उर्दू कविता की जमीन और विशेषताओं को जानने परखने के संदर्भ में इन किताबों को निर्विवाद रूप से श्रेष्ठ माना जा चुका है. भारतीय उपमहाद्वीप के साहित्यिक-सांस्कृतिक स्वरूप को ध्यान में रखकर देखें तो उसके विकास और परिवर्तनों से सूक्ष्मता से परिचित होने के लिए भी ये किताबें एक अहम जरिया हैं. शमीम साहब की इन्हीं दोनों किताबों से चुने गए निबंधों का सुचिंतित संचयन है प्रस्तुत हिन्दी किताब। इसमें इक़बाल, फ़ैज़, राशिद, मीराजी, अख्तरुल ईमान, अली सरदार जाफ़री, फ़िराक़ गोरखपुरी, अमीक़ हनफ़ी, क़ाज़ी सलीम, किश्वर नाहीद, कुमार पाशी, बलराज कोमल, मनमोहन तल्ख़, महमूद अयाज़, मुनीर नियाज़ी, शहरयार, बाक़र मेहदी और मुहम्मद अलवी के बहने समूची आधुनिक उर्दू कविता का विश्लेषण देखा जा सकता है ।
शमीम साहब ने जिस नजरिये से इन शायरों और उनकी शायरी पर विचार किया है, वह पारम्परिक प्रगतिवाद, आधुनिकतावाद और उत्तर-आधुनिकतावाद की बहु प्रचारित मान्यताओं को जस का तस अपनाकर नहीं बनी है । उन्होंने जोर देकर कहा है कि 'हमारी अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक परम्परा के सन्दर्भ में ही हमारे अपने प्रगतिवाद, आधुनिकतावाद और उत्तर-आधुनिकता की रूपरेखा तैयार की जानी चाहिए.' उन्होंने कहा है कि वे भारतीय जनजीवन को उसके समय के पश्चिमी जीवन और सोच-समझ की नकल नहीं मानते. उनका स्पष्ट कहना है कि जिस तरह हमारा सौन्दर्यशास्त्र या सौन्दर्य संस्कृति अलग है उसी तरह हमारा प्रगतिवाद और आधुनिकता भी अलग है। इसलिए अपने आधुनिक शायरों के कृतित्व को परखने की कसौटी भी अलग होगी। उन्होंने शायरों के स्वभाव, चरित्र, चेतना और रूप-रंग की भिन्नता को रेखांकित करते हुए प्रस्तावित किया है कि उर्दू कविता के संदर्भ में आधुनिकतावाद को इसी भिन्नता और बहुलता का प्रतीक होना चाहिए। इस किताब से न केवल आधुनिक उर्दू कविता की आलोचनात्मक जानकारी मिलती है बल्कि इसके अनेक शायरों की शायरी पढ़ने का आनंद भी मिलता है। राजकमल प्रकाशन से रज़ा पुस्तक माला के तहत प्रकाशित यह किताब अभी एस. गिरिधर की चर्चित किताब ' साधारण लोग असाधारण शिक्षक : भारत के असल नायक' के साथ विशेष छूट पर उपलब्ध है।
पुस्तक: हमसफ़रों के दरमियां
लेखक : शमीम हनफ़ी
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
अनुवादक : शुभम मिश्र
प्रकाशित भाषा – हिंदी
मूल भाषा : उर्दू
बाईंडिंग : हार्डबाउंड - 795/- पेपरबैक – 299/-
आईएसबीएन : एचबी : 978-93-88753-77-7
आईएसबीएन: पीबी : 978-93-88753-78-4
पृष्ठ संख्या : 248
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