- अनुदान व लोन योजना स्थायी रोजगार का विकल्प नहीं हो सकता, स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं के कर्जे क्यों नही हुए माफ?
- भाजपा-जदयू शासन में बिहार के उद्योग हुए बर्बाद, जहां मिल सकता था रोजगार.
पटना 19 जून, भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने बिहार सरकार द्वारा युवा व महिलाओं को पंाच लाख अनुदान व पांच लाख लोन देने की घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि विगत बिहार विधानसभा चुनाव में जनता से भाजपा-जदयू द्वारा किए गए 19 लाख स्थायी रोजगार का यह विकल्प नहीं हो सकता है. भाजपा-जदयू सरकार अपने चरित्र के मुताबिक बिहार के युवाओं से एक बार फिर विश्वासघात कर रही है. सम्मानजनक व स्थायी रोजगार को लेकर हमारी लड़ाई जारी रहेगी. माले राज्य सचिव ने आगे कहा कि बड़े ताम-झाम के साथ नीतीश कुमार इस योजना की चर्चा कर रहे हैं, लेकिन पहले वे ये बताएं कि अबतक स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं का कर्जा माफ क्यों नहीं हुआ है, जबकि कई राज्य सरकारों ने यह कर्जा माफ कर दिया है. स्वयं सहायता समूह की महिलायें सरकार से कलस्टर बनाने की लगातार मांग करते रही हैं, ताकि वे अपने उत्पादों को बेच सकें, लेकिन सरकार ने आज तक ऐसा नहीं किया. अब जो यह 10 लाख का (अनुदान व लोन) दिया जा रहा है, इसकी क्या गारंटी है कि इस पैसे से युवा-महिलाओं द्वारा शुरू किए गए किसी उद्यम से उत्पादित सामनों की सरकार खरीद की गारंटी करेगी? बिहार में ऐसा डोमेस्टिक मार्केट भी नहीं है जहां वे अपने उत्पादों को बेच सकें.
आज राज्य में बेरोजगारी चरम पर है और लाॅकडाउन व महंगाई ने लोगों की कमर तोड़ दी है. ऐसी स्थिति में भूख एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आई है. स्वयं सहायता समूहों के मामले में हमने देखा है कि बड़ी संख्या में महिलाएं कर्जे के पैसे से कोई उ़द्यम शुरू करने की बजाए गरीबी के कारण उसी पैसे से अपने परिवार का पेट चलाने को बाध्य हुईं. अभी चैतरफा घोर संकट की स्थिति में यह संभव है कि कोई उद्यम शुरू करने की बजाए उस पैसे का इस्तेमाल पहले पेट पालने में हो. युवाओं को जो 5 लाख का लोन दिया जा रहा है, उसपर एक प्रतिशत का ब्याज भी है. तब इस पैसे को लौटाना उनके लिए असंभव हो जाएगा. इसलिए, हमारी मांग है कि सरकार सभी जरूरतमंदों के लिए सबसे पहले एक न्यूनतम गुजारा भत्ता का प्रावधान करे ताकि वे अपना पेट पाल सकें. माले राज्य सचिव ने आगे कहा कि दरअसल भाजपा-जदयू शासन में एक-एक कर सारे उद्योग बंद ही होते गए, ऐसे में युवओं को रोजगार कहां मिलेगा? खेती का हाल चैपट ही है. किसान धान हो या गेहूं अपना अनाज औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर होते हैं. चीनी मिलें भी लगातार हो रही हैं. सरकार के पास बिहार में उद्योगों को बढ़ावा देने का न तो ब्लूप्रिंट है और न इच्छाशक्ति. विडंबना यह कि उद्योग के नाम पर खाद्य पदार्थों से भ्एथेनाॅल बनाने का खेल शुरू हो चुका है. खाद्य पदार्थों का गलत इस्तेमाल राज्य में खाद्य असुरक्षा को ही बढ़ाएगा. यदि सरकार उद्योग ही नहीं लगाएगी तो लोगों को रोजगार कहां से मिलेगा? इसलिए, भाकपा-माले मांग करती है कि बिहार में कृषि आधारित उद्योगों के विकास पर सरकार जोर दे ताकि बड़े पैमाने पर युवाओं-महिलाओं को रोजगार मिल सके, लाखों खाली पड़े पदों पर तत्काल स्थायी बहाली करे, आशा-रसोइया व सभी स्कीम वर्करों को न्यूनतम मानदेय तथा स्वयं सहायता समूह के कर्जों को माफ कर उनके उत्पादों की बिक्री हेतु सरकार कलस्टरों का निर्माण करवाए. हम बिहार सरकार को 19 लाख स्थायी रोजगार के वादे से पीछे नहीं भागने देंगे.
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