- स्वास्थ्य सिस्टम सरकार के हाथ में होना चाहिए, ऊपर से नीचे तक इस व्यवस्था को सरकार तत्काल ठीक करे.
- सिंचाई के सवाल पर भ्रम फैलाना बंद करे, कृषि कार्य के लिए मुफ्त में बिजली दे.
- 19 लाख स्थायी रोजगार के वादे से पीछे नहीं भाग सकती है सरकार.
पटना 21 जून, आज छज्जूबाग स्थित भाकपा-माले विधायक दल कार्यालय में माले विधायक दल की बैठक संपन्न हुई. बैठक में विधायक दल के प्रभारी राजाराम सिंह, विधायक दल के नेता महबूब आलम, उपनेता सत्यदेव राम, सचेतक अरूण सिंह सहित संदीप सौरभ, महानंद सिंह, बीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता, मनोज मंजिल, अजीत कुशवाहा, अमरजीत कुशवाहा और रामबलि सिंह यादव ने भाग लिया. माले विधायक दल ने कहा है कि कोविड मृतक परिजनों को 4 लाख रु. मुआवजा से केंद्र सरकार का इंकार बेहद निंदनीय है. कोविड व लाॅकडाउन से बड़ी आपदा और कुछ नहीं हो सकती है. अभी जब लाखों लोगों का रोजगार खत्म हो गया है, सरकार को तत्परता से सभी मृतक परिजनों को यह मुआवजा देना चाहिए. हमारी मांग है कि कोविड काल में मारे गए सभी मृतक परिजनों को यह मुआवजा मिलना चाहिए. सरकार काॅरपोरेट घरानों पर टैक्स लगाकर इस मुआवजे की व्यवस्था करे. कोविड ने बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी है. इस त्रासदी ने इस सच्चाई को सामने ला दिया है कि स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह सरकारी नियंत्रण में होना चाहिए. माले विधायक दल की मांग है कि ऊपर से लेकर नीचे तक की स्वास्थ्य व्यवस्था को सरकार अविलंब ठीक करे.
नीतीश कुमार द्वारा बहुप्रचारित हर खेत को पानी का नारा जनता के बीच भ्रम फैलाने वाला है. दरअसल, सरकार अपनी जवाबदेही से भाग रही है. हमारी मांग है कि सरकार कृषि कार्य के लिए मुफ्त में बिजली की व्यवस्था करे. कदवन जलाशय सहित सभी परियोजनायें ठप्प पड़ी हुई हैं. सोन नहर प्रणाली दम तोड़ने के कगार पर है. बक्सर में मलई परियोजना भी लंबे अर्से से लंबित है. यदि इन परियोजनाओं को चालू कर दिया जाता, सोन नहर प्रणाली का आधुनिकीकरण हो जाता, तो सिंचाई की यह दिक्कत आज होती ही नहीं. विधायक दल ने कहा कि भाजपा-जदयू सरकार 19 लाख स्थायी रोजगार के वादे से पीछे नहीं भाग सकती है. चुनाव के समय में किया गया वादा उसे निभाना होगा. लेकिन हम देख रहे हैं कि उसकी जगह सरकार अनुदान व लोन की बात कहकर मुद्दे को भटकाना चाहती है. अनुदान और लोन स्थायी रोजगार का विकल्प नहीं हो सकते हैं. बिहार सरकार विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं को रिजर्वेशन दे रही है. यह ठीक है, लेकिन वह यह बताए कि आशा-आंगनबाड़ी-रसोइया और अन्य महिला स्कीम वर्करों को सरकार न्यूनतम मानदेय भी क्यों नहीं दे रही है? क्या बिना उचित मानदेय के महिलाओं की इस बड़ी आबादी का सशक्तीकरण हो सकता है? इन महिलाओं को बेहद अमानवीय स्थिति में काम के लिए मजबूर किया जाता है. उन्हें किसी भी प्रकार की सुरक्षा हासिल नहीं है. आज आशा कार्यकर्ता बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ बनी हुई हैं, लेकिन सरकार उनके जीविकोपार्जन के लिए न्यूनतम राशि भी नहीं देती. सरकार ने यास चक्रवात को प्राकृतिक आपदा घोषित किया था. इस आपदा ने किसानों को बहुत नुकसान पहुंचाया. गरीबों की झोपड़ियंा ढह गई. भाकपा-माले विधायक दल पीड़ित किसानों के लिए 25000 रु. प्रति एकड़ मुआवजा देने तथा सभी जरूरतमंदों का आवास निर्माण की मांग करता है. माले विधायकों ने अपनी पहलकदमी पर अपने विकास राशि के पैसे से एंबुलेंस की व्यव्स्था करने की मांग सरकार से की. लेकिन सरकार विधायकों के संबंधित विधानसभा क्षेत्रों में चलाने की बजाए उसे एनजीओ के हवाले कर रही है. आखिर सरकार इन एंबुलेंसों को खुद क्यों नहीं चलाना चाहती है? माले विधायक दल की मांग है कि सरकार पर्याप्त संख्या में ड्राइवर की बहाली करे, अन्य जरूरतों को पूरी करे और विधायक के क्षेत्र में ही एंबुलेंस चलवाने की गारंटी करे. उत्तर बिहार का अधिकांश इलाका लगातार बारिश की वजह से जलजमाव से घिर गया है, ऐसी स्थिति में धान को बिचड़ा नहीं डाला जा सकता है. सरकार से मांग है कि विशेष व्यवस्था करके बिचड़ा लगाने का प्रबंध करे.
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