- अन्य प्रमुख शहरों के विपरीत कोलकाता में 2019 से 2021 के बीच, मार्च से मई तक, वायु गुणवत्ता में दिखा सुधार
- पिछले साल से कोविड की मार झेल रहे देश में अगर कुछ अच्छा हुआ तो वो था आसमान का कुछ साफ़ होना और प्रदूषण के स्तर के कम होने का आभास।
वहीं दूसरी ओर, तीन महीनों के लिए दिल्ली की औसत PM 2.5 सांद्रता 2019 में 95.6 ug/m3 से घटकर 2020 में 69 ug/m3 हो गई, लेकिन यह 2021 में जल्द ही वापस 95 ug/m3 हो गई। इसी तरह, कोलकाता की PM 2.5 सांद्रता 41.8 से झूल कर 2019 में ug/m3 से 2020 में 27.9 ug/m3 और 2021 में 37.3 ug/m3 हो गई। जबकि 2020 में पूर्ण लॉकडाउन था, 2021 के लॉकडाउन के दौरान पश्चिम बंगाल में राज्य चुनाव और कोविड -19 के मामलों में वृद्धि की वजह से स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग के कारण लोगों की उच्च आवाजाही देखी गई। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 2019 से लगातार तीन महीनों तक PM 2.5 की सांद्रता में कमी देखी गई, लेकिन यह फिर भी जायज़ सीमा से ऊपर बना रहा। मार्च, अप्रैल और मई के महीनों के लिए 2019 में यहाँ औसत PM 2.5 सांद्रता 103 ug/m3 थी, जो 2020 में 92 ug/m3 और आगे 2021 में 79.6 ug/m3 तक कम हो गई। CSIR-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च के मुख्य वैज्ञानिक, पर्यावरण टॉक्सिकालॉजी (विष विज्ञान), डॉ जी.सी. किस्कू, ने कहा, "2020 और 2021 के दौरान आंशिक / पूर्ण लॉकडाउन ने वाहनों की आवाजाही को कम कर दिया और तत्पश्चात् जीवाश्म ईंधन की खपत को कम कर दिया। लॉकडाउन अवधि के दौरान औद्योगिक प्रतिष्ठानों के बंद होने से भी इसमें मदद हुई। लेकिन इस वर्ष स्तर अभी भी अपेक्षाकृत रूप से अधिक हैं। अच्छी बात यह है कि 2017 के बाद से PM 10 के स्तरों में कमी आई है, हालांकि, पिछले वर्ष के मॉनिटरिंग डाटा की तुलना में इस साल सभी स्थानों पर PM 2.5, PM 10, SO2 और NO2 के देखे गए स्तर अपेक्षाकृत अधिक पाए गए।" डॉ किस्कू ने हाल ही में लखनऊ की वायु गुणवत्ता के आकलन पर एक रिपोर्ट भी जारी की है।
विशेषज्ञों का मानना है कि लॉकडाउन के परिणामस्वरूप प्रदूषण के स्तर से किसी भी तरह की राहत की सांस नहीं ली जाए सकती। “वायु प्रदूषण में लॉकडाउन से संबंधित कमी न तो सुसंगत है और न ही एक समान है। इस प्रकार मानवजनित गतिविधियों का योगदान उच्च प्रदूषण स्तर का पूरी तरह से स्पष्टीकरण नहीं करता है। हमें विशेष रूप से महानगरीय शहरों में उच्च प्रदूषक स्तरों के निरंतर स्वास्थ्य ख़तरों के बारे में सतर्क रहना चाहिए। और यह सतर्कता कम करने का सही समय नहीं है,” सोसाइटी फॉर इंडोर एनवायरनमेंट के अध्यक्ष, डॉ अरुण शर्मा, ने कहा। 2020 में अभूतपूर्व राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बाद से, विशेषज्ञों ने दावा किया है कि इसने उन्हें भारत में प्रदूषण के स्तर को समझने का एक अनूठा अवसर दिया, जब प्रदूषण के अधिकांश स्रोत ग़ैरहाज़िर रहे। 2020 में, भारत में आठ प्राथमिक प्रदूषण स्रोतों में से चार लॉकडाउन अवधि के दौरान पूरी तरह से बंद हो गए थे - अर्थात् निर्माण और औद्योगिक गतिविधि, ईंट भट्टे और वाहन। इस बीच, कम क्षमता पर कोयले से चलने वाले थर्मल पावर प्लांट के साथ घरेलू उत्सर्जन, ओपन बर्निंग (खुले में जलएना), डीज़ल जेनरेटर और धूल जैसे स्रोत चालू रहे। 2021 का लॉकडाउन उतना पूर्ण नहीं था, हालांकि इसने दो वर्षों के बीच तुलनात्मक विश्लेषण की अनुमति प्रदान की । प्रोफेसर एस.के. ढाका, राजधानी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, ने यह भी कहा, “लॉकडाउन ने ऐेसे वातावरण में बैकग्राउंड प्रदूषण की जांच करने का अवसर प्रदान किया है जब 2020 में सब कुछ शट डाउन (बंद) हो गया था; वातावरण काफ़ी साफ़ था लेकिन हम CPCB द्वारा निर्धारित 40 ug/m3 की अवस्था तक नहीं पहुंच सके। हमें भारत में प्राकृतिक परिस्थितियों को फिर से परिभाषित करने की आवश्यकता है, जिसके लिए उत्तर भारत के स्वच्छ वातावरण में अब भी पार्टिकुलेट मैटर की सांद्रता 50-60 ug/m3 से अधिक है।"
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