- * पांपलोना के युद्ध में घायल होने के 500 वीं वर्ष की जंयती
- * येसु समाज के संस्थापक हैं संत इग्नासियुस लोयोला
- * मानवाधिकार कार्यकर्ता शहीद फादर स्टेन स्वामी थे येसु समाजी
पटना. येसु समाज के संस्थापक हैं संत इग्नासियुस लोयोला. सन् 1521 में फ्रांसीसियों के साथ युद्ध में गंभीर रूप से घायल हो गया थे.पांपलोना के युद्ध में घायल होने के 500 वीं वर्ष की जंयती के अवसर पर संपूर्ण संसार में धार्मिक कार्यक्रम हो रहा है.इसी कड़ी में कुर्जी, दीघा में स्थित कुर्जी पल्ली में आज वृहस्पतिवार शाम 7.00 बजे से 7.30 तक संत इग्नासियुस लोयोला के आदर में नौ दिवसीय प्रार्थना शुरू की गयी है.जो 22 जुलाई से 30 जुलाई तक प्रत्येक दिन संध्या 7.00 बजे से 7.30 तक ज़ूम हिटिंग पर प्रसारित की जायेगी. बता दें कि येसु समाज के ही हैं संत पापा फ्रांसिस. मानवाधिकार कार्यकर्ता शहीद फादर स्टेन स्वामी भी हैं येसु समाजी.जो आजीवन परहित के ही कार्य करते-करते यूएपीए के शिकार होकर न्यायिक हिरासत में दम तोड़ दिये.आज पूरे संसार में शहीद फादर की चर्चा हो रही है.उनको भी येसु समाजी होने का गर्व था.यह बताया गया कि संत इग्नासियुस का यह वचन सभी येसु समाजियों के लिए है. यह समस्त मनुष्यों के जीवन में सकारात्मक बदलाव और आध्यात्मिकता का बीज बोने वाला है.उन्होंने कहा है कि मनुष्य को इससे क्या लाभ, जब वह सारा संसार कमा ले, लेकिन अपनी आत्मा गंवा दे.पूरे संसार के जेसुइट संत इग्नासियुस लोयोला के इन्हीं वाक्यों को अपनी समर्पित सेवा में जीवंत कर रहे हैं.
संत इग्नासियुस लोयोला का जन्म 23 अक्टूबर 1491 में हुआ था, जो उत्तरी स्पेन में एक संपन्न कुलीन परिवार के 12 बच्चों में से एक था. वे बारह बच्चों में सबसे छोटे थे. उन्होंने फर्डिनेंड और इसाबेला की स्पेनिश अदालत में एक दरबारी लड़के के रूप में भी कार्य किया. इग्नासियुस ने एक सैन्य शिक्षा प्राप्त की थी और एक सैनिक के रूप में उन्होंने 1517 में सेना में प्रवेश किया और कई अभियानों में सेवा की. 20 मई 1521 को पांपलोना की घेराबंदी में एक तोप के गोले से उनके पैर में घाव हो गया था, एक चोट जिसने उन्हें आजीवन आंशिक रूप से अपंग बना दिया था. बाद में उनके पैर का ऑपरेशन हुआ.ऑपरेशन के बाद उनका पैर ऊपर-नीचे होने पर उन्होंने चिकित्सकों को पुन: ऑपरेशन करने को कहा, ताकि वे फिर से लोगों के साथ खेल सकें.दोबारा ऑपरेशन के बाद इग्नासियुस स्वास्थ्य लाभ के लिए एक गुफा में शरण लिया.इस दौरान उन्होंने राजा महाराजा और संतों की जीवनी पर पुस्तकों का अध्ययन किया.अध्ययन से उनके दिलों में यह तीव्र जिज्ञासा हुई कि जब दूसरे संत बन सकते हैं तो मैं क्यों नहीं संत बन सकता.स्वस्थ होने के दौरान ही, इग्नासियुस लोयोला ने एक रूपांतरण का अनुभव किया. येसु और संतों के जीवन को पढ़कर इग्नासियुस खुश हुआ और महान कार्य करने की इच्छा जगाई. इग्नासियुस ने महसूस किया कि ये भावनाएँ उसके लिए ईश्वर की दिशा का सुराग थीं. इस महत्वपूर्ण और बड़े बदलाव के लिए उन्होंने खुद को शिक्षित करने की ठानी.32 वर्ष की आयु में स्पेन के बार्सिलोना में शिक्षा प्राप्त करने गए.इग्नासियों ने यहां अपने मित्रों में भी गरीबी, शुद्धता आज्ञाकारिता में बढ़ने का उत्साह बढ़ाया.45 वर्ष की आयु में मास्टर डिग्री हासिल की.1529 में शिक्षा के माध्यम से समाज लोगों में व्यापक बदलाव लाने के लिए येसु समाज की स्थापना की. 1548 में अपनी धार्मिकता को एक पुस्तक में बांधा और 1554 में येसु समाज का संविधान लिखा. येसु समाज के सदस्य शिक्षा, समाज-सेवा तथा अन्य मानव कल्याण के कार्य में सराहनीय कार्य करते आ रहे हैं. इग्नासियुस की मृत्यु 31 जुलाई 1556 को रोम, इटली में बुखार से हुई और 12 मार्च 1622 को संत पिता ग्रेगरी पंद्रहवें द्वारा संत घोषित किए गए.इग्नासियुस लोयोला ने येसु ख्रीस्त के जीवन और कार्य से प्रेरणा ली.अपनी जीवनशैली और धार्मिकता में ख्रीस्त को अपनाया.आप भी कर सकते हैं.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें