रोजगार का संकट कोई नया नहीं है बल्कि यह मुद्दा हमेशा से सामाजिक रूप से शिखर पर ही रहा है। रोजगार की कमी और पैसों के अभाव में लोग अपनी जड़ें छोड़कर पलायन करने पर मजबूर हो जाते हैं। कुछ ऐसी ही घटना राजस्थान के उगरियावास गांव की भी है। इस गांव की आबादी करीब 4000 है। लेकिन दुखद बात यह है कि गांव में रोजगार का कोई बड़ा साधन नहीं है, जिस कारण लोग सुबह ट्रेन पकड़कर जयपुर शहर जाते हैं और वहां दिनभर काम करने के बाद शाम के वक्त अपने को गांव लौट आते हैं। जिस कारण गांव वालों के दिल में डर बरकरार रहता था कि कहीं उनका रोजगार गांव में कोरोना के वायरस को बढ़ाने का कारण न बन जाए। गांव वालों से बातचीत में पता चला कि गांव में संक्रमण को रोकने की कोई भी मुकम्मल तैयारी नहीं थी। वहां के लोगों ने बताया कि जब उन्हें कोरोना वायरस की जानकारी मिली तो वह काफी डर गए थे लेकिन उन कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने कहा कि हमारे गांव में कोरोना वायरस का डर नहीं है।
वहीं युवाओं का तर्क था कि भले ही जयपुर में कोरोना वायरस का संक्रमण है, मगर रोजगार के लिए हम जयपुर जाना छोड़ नहीं सकते हैं। हमारे लिए इसके अलावा कोई पैसे कमाने का दूसरा जरिया नहीं है। गांव के लोगों की बातों से साफ है कि लोग रोजगार के कारण ही घर और अपनी जमीन से दूर होते हैं, अगर उनके गांव में ही रोजगार के साधन बना दिए जाएं तो बड़ी संख्या में पलायन रुक सकता है। इसके लिए गांवों में कारखाने लगाएं जा सकते हैं ताकि मजदूरी करने के लिए भी दूसरे शहर या राज्य ना जाना पड़े। शहरों की तरह गांवों में भी स्कूलों को उच्च मानक का बनाने की आवश्यकता है, ताकि शिक्षा की खातिर बच्चों का पलायन रुके। सबसे जरूरी बात कि गांवों में अस्पतालों को नए पैमाने पर निरीक्षण करते हुए उसे दोबारा नए तरीके से खड़ा किया जाना चाहिए ताकि गांव में ही रह कर ग्रामीणों को स्वास्थ्य से जुड़ी सभी सुविधाएं उपलब्ध हो सके। इससे शहर के अस्पतालों पर भी बोझ कम पड़ेगा। ग्रामीण दुर्गा लाल ने बताया कि हमने अखबारों में पढ़ा था कि सर्दी-खांसी है तो डॉक्टर के पास जाना चाहिए और 2 मीटर की दूरी बनाकर रखनी चाहिए मगर गांव के स्वास्थ्य केंद्र में सुविधाओं का अभाव है। जिसकी वजह से शहर के अस्पतालों का रुख करना पड़ता है। ग्रामीणों के अनुसार गांव में प्राथमिक चिकित्सा केंद्र तो है, जहां तैनात डॉक्टर गांव वालों को कोरोना वायरस से बचने के उपाय तो बताती है, लेकिन किसी प्रकार की बीमारी होने पर दवाएं उपलब्ध नहीं है। ऐसे में लोग दवा के नाम पर आयुर्वेदिक और देसी इलाज करवाने पर मजबूर हैं।
वास्तव में भारत को कृषि प्रधान और गांव का देश कहा जाता है। ऐसे में अगर भारत के गांव सुरक्षित नहीं रहेंगे तो भारत ही सुरक्षित नहीं रह पाएगा। कोरोना के इस खतरनाक दौर में यदि हम गांव को सुरक्षित और स्वस्थ रखने में नाकाम रहे तो इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। देश ने कोरोना की दूसरी लहर की भयानक त्रासदी को देखा है। जिसमें ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था की चरमराई सूरतेहाल सामने आई है। बड़ी संख्य में देश के ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना से निपटने के इंतज़ाम की पोल खुल गई है। ऐसे में तीसरी लहर और उससे होने वाली किसी भी तबाही को समय से पहले रोकने की आवश्यकता है। ज़रूरत है समय रहते इससे सबक लेने और गांव गांव की स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त करने की।
इसके साथ साथ सबसे बड़ी ज़रूरत गांव में रोज़गार उत्पन्न करने की है, ताकि युवाओं के पलायन को रोका जा सके। ग्रामीण युवाओं के हुनर से गांव की तकदीर को बदलना मुमकिन है। ज़रूरत केवल इच्छाशक्ति की है। केंद्र से लेकर तमाम राज्य सरकारें युवाओं के हुनर को निखारने के लिए कई प्रकार की योजनाएं चला रही हैं। यदि उन योजनाओं को ईमानदारी से धरातल पर उतारा जाये और युवाओं को उससे जोड़ा जाये तो न केवल पलायन जैसी समस्या पर काबू पाया जा सकता है बल्कि इससे कोरोना और उसकी जैसी फैलने वाली अन्य घातक बिमारियों को भी आसानी से रोका जा सकता है। गांव में हुनर की कमी नहीं है, कमी है तो उस हुनर को पहचानने और उसे रोज़गार से जोड़ने की। यही वो मंत्र है जो पलायन जैसी समस्या को रोक सकता है।
रांची, झारखंड
(चरखा फीचर)
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