कुल वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 76% के लिए अकेले G20 देश ज़िम्मेदार - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 12 जुलाई 2021

कुल वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 76% के लिए अकेले G20 देश ज़िम्मेदार

  • अकेले चीन वैश्विक उत्सर्जन के एक चौथाई से ज़्यादा के लिए ज़िम्मेदार, मगर सभी G20 देशों को निभानी होगी महत्वपूर्ण भूमिका

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क्योंकि दुनिया के कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 76 फीसद हिस्से के लिए अकेले G20 देश ज़िम्मेदार हैं, इसलिए अगर इन देशों के नेता मन बना लें तो दुनिया की सूरत बदल सकती है। गौर करने वाली बात है कि इस 76 फ़ीसद उत्सर्जन का लगभग आधा ही ऐसा है जो पेरिस समझौते के तहत की गयी उत्सर्जन में कटौती की महत्वाकांक्षी प्रतिज्ञाओं द्वारा कवर किया गया है। ऐसे में G20 नेता दुनिया को होने वाली COP26 के लिए सही राह पर ला सकते हैं और 1.5°C वाली महत्वाकांक्षा को जीवित रख सकते हैं। अब सवाल उठता है कि G20 नेता आखिर कर क्या सकते हैं। तो इस सवाल के जवाब में कुछ बुनियादी बातों पर नज़र डालना बनता है क्यूंकि जवाब यहीं मिलेंगे। अव्वल तो G20 देशों के नेता जलवायु कार्रवाई और एडाप्टेशन का समर्थन करने के लिए धनी देशों के $100 बिलियन प्रति वर्ष के वादे को पूरा करने के लिए काम कर सकते हैं। आगे, ऑस्ट्रेलिया जैसे कमजोर लक्ष्य वाले G20 राष्ट्र जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता समाप्त  करने की और कदम बढ़ाएं, इसका निर्यात ख़त्म करें, और नेट ज़ीरो के लिए प्रतिबद्ध हों। दुनिया का सबसे बड़ा उत्सर्जक चीन COP26 से पहले एक महत्वाकांक्षी नई उत्सर्जन प्रतिज्ञा के साथ इस दिशा में नेतृत्व कर सकता है।


G20 की मंत्रिस्तरीय बैठकें

इस सब में G20 की मंत्रिस्तरीय बैठकें बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यहाँ ये जानना ज़रूरी हो जाता है कि G20 की मंत्रिस्तरीय बैठकें होती क्या हैं और इनका उद्देश्य क्या है। G20 देशों के समूह की आने वाले महीनों में मंत्रिस्तरीय बैठकों की एक श्रृंखला निर्धारित है और G20 नेताओं की अक्टूबर के अंत में ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन – COP26 से ठीक पहले भी मिलेंगे।


COP26 में 1.5°C महत्वाकांक्षा को जीवित रखने के लिए G20 राष्ट्र क्यों मायने रखते हैं?

जब दुनिया जलवायु परिवर्तन से प्रेरित अभूतपूर्व और अत्यधिक तापमान का सामना कर रही है, COP26  का पेरिस समझौते की महत्वाकांक्षा को पहुंच के भीतर रखने का  – 1.5°C महत्वाकांक्षा को जीवित रखने के लिए – एक बड़ा काम है।


ग्लासगो में मिलने से पहले अधिकांश देशों ने अभी तक अपनी जलवायु कार्य योजनाओं की महत्वाकांक्षा को बढ़ाया नहीं है। उस महत्वाकांक्षा को पूरा करने का अर्थ है:

o   इस सदी के मध्य तक नेट ज़ीरो तक पहुंचने के लिए विज्ञान के अनुरूप उत्सर्जन में तेज़, गहरी कटौती की वास्तविक योजनाएं;

o   ग़रीब देशों को जलवायु प्रभावों से होने वाले नुकसान और क्षति के प्रति एडाप्ट होने और भुगतान करने में मदद करने के लिए वास्तविक धन; तथा

o   जीवाश्म ईंधन के उपयोग, वनों की कटाई और सबसे ख़तरनाक ग्रीनहाउस गैसों को समाप्त करने के लिए वास्तविक कार्रवाई।


G20 में ऐसे विकासशील राष्ट्र हैं जिन्होंने अभी तक अपने लक्ष्यों को नहीं बढ़ाया है, या उन्हें पर्याप्त रूप से नहीं बढ़ाया है। लेकिन उन्होंने, और कई अधिक ग़रीब देशों ने, इस बात पर ज़ोर दिया है कि उन्हें न केवल जलवायु कार्रवाई के लिए, बल्कि जलवायु प्रभावों के प्रति एडाप्ट होने के लिए भी धनी देशों से वित्तीय सहायता की आवश्यकता है। इसलिए धनवान राष्ट्रों से अपेक्षा की जाती है कि वे कदम बढ़ाएँ और 2020 तक 100 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष के अपने अतिदेय वादे को पूरा करें; ऐसा करने में विफलता न केवल विकासशील देशों की कार्य करने की क्षमता को आर्थिक रूप से सीमित करती है, बल्कि विश्वास को कम करने के जोखिम में भी डालती है, जिससे ग्लासगो में COP26 में किया जाने वाला काम बहुत मुश्किल हो जाएगा। चीन वैश्विक उत्सर्जन के एक चौथाई से ज़्यादा के लिए ज़िम्मेदार है। चीन ने 2060 तक नेट ज़ीरो को हासिल करने, 2030 तक उच्चतम उत्सर्जन तक पहुंचने और 2025 के बाद कोयले के उपयोग को कम करने के लिए प्रतिबद्धता दी है। लेकिन वे कोयले में निवेश करना जारी रखते हैं, और उनका उत्सर्जन अभी भी तेज़ी से बढ़ता जा रहा है। COP26 से पहले चीन से एक मज़बूत उत्सर्जन प्रतिज्ञा, दुनिया के सबसे बड़े उत्सर्जक के नेतृत्व का एक महत्वपूर्ण कार्य होगा, जो दूसरों को भी साथ लाने के लिए रहनुमाई करेगा।

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