बक्सर की पर्यावरणविद और शिक्षिका उषा मिश्रा ने कहा कि महिलाओं को पर्यावरण संरक्षण में लाने के लिए बेहतर योजना बनाने की आवश्यकता हैं। इस कोरोना महामारी के समय जिन जिन लोगों ने अपने स्वजनों को खोया हैं,उनसे प्रत्यक्ष संपर्क कर, उन्हें पेड़ो के महत्व को समझाया जा सकता हैं,जो जागरूकता अभियान के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध होगा। वहीं, 'हमारी महिला टोली' दिल्ली की अध्यक्ष ज्योति डंगवाल ने कहा कि कोई भी सामाजिक परिवर्तन महिलाओं के भागीदार के बिना संभव ही नहीं हैं। पर्यावरण संरक्षण की शुरुआत से ही उनका जुड़ना आवश्यक हैं। हमें जन्मदिन या कोई विशेष दिन पौधरोपण जैसे कार्य शुरू कर संरक्षण में प्रथम कदम बढ़ा सकते हैं।आज के समय में पौधा लगाना आसान है लेकिन उसका संरक्षण करना बहुत ही मुश्किल हैं, इसलिए हमें उतने ही पौधे लगाने चाहिए जिसको हम देखभाल कर सके। खण्डवा, मध्यप्रदेश काजल इंदौरी ने कहा कि यह सच है कि आज भी पर्यावरण संरक्षण में महिलाओं का योगदान बहुत ही कम हैं, वे अपने पारिवारिक जिम्मेदारियों के दबाओ के कारण इस क्षेत्र में खुल कर नहीं आ पाती हैं,साथ ही आज की युवा पीढ़ी भी पर्यावरण के महत्व को अभी तक ठीक से समझ नहीं पाई हैं,वे फ़ोटो खिंचाने तक ही सीमित हैं। जबकि संरक्षण के लिए समाज के प्रत्येक तबका को आगे आना होगा। हम लोग "एक व्यक्ति, एक पौधा" और जागरूकता अभियान चला कर समाज को इससे जोड़ सकते हैं।
गौरैया संरक्षक सह परिचर्चा के संयोजक संजय कुमार ने कहा कि पर्यावरण का संरक्षण आज जरूरत बन गई है जिस तरह से प्रकृति के साथ छेड़छाड़ हो रहा है उसके परिणाम भी भयावह होते जा रहे हैं। पर्यावरण के आवरण लगातार बदतर हालात में पहुंच रहे हैं। हिमाचल प्रदेश की हाल की घटना चिंतित करने वाली। इसलिये पर्यावरण के संरक्षण के लिए महिलाओं के साथ साथ समाज के व्यक्ति को आगे आना होगा। मौके पर पीपल नीम तुलसी अभियान, पटना के संस्थापक डॉ धर्मेन्द्र कुमार ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण में महिलाएं आगे आ रही है, लेकिन उनकी संख्या अभी अन्य की तुलना में काफी कम हैं, महिलाओं को अपने घर की चारदीवारियों से बाहर लाने की आवश्यकता हैं।। वहीं, पर्यावरण योद्धा के अध्यक्ष निशांत रंजन ने कहा कि महिलाएं पर्यावरण संरक्षण में तेजी से आगे आ रही हैं, उनकी संख्या अभी कम जरूर है, लेकिन शिक्षा के विकास के साथ ही वे आगे बढ़ रही हैं। महिलाएं हमारी आधी आबादी हैं,उनको छोड़ कर किसी भी प्रकार का सामाजिक परिवर्तन नहीं किया जा सकता हैं। महिलाओं में पुरूषों की तुलना में ज्यादा सहनशक्ति,समर्पण और दृढ़संकल्प की भावना अधिक होती हैं, वे पुरुषों से बेहतर संरक्षण में योगदान दे सकती हैं। प्लास्टिक जैसे समस्याओं के आज तक हमलोग सही निराकरण कर पाने में सक्षम नहीं हो पाये हैं। परिचर्चा की शुरुआत लखनऊ की कवियत्री जिज्ञासा सिंह की कविता "बच्चों के जीवन में वृक्षों का महत्व "गीत से हुई। कार्यकम का संचालन संजय कुमार और धन्यवाद ज्ञापन निशान्त रंजन किया। मौके पर बिहार सहित देखभर के पर्यावरण विद और प्रेमी जुड़े थे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें