पटना : राजद प्रदेश कार्यालय में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस को सम्बोधित करते हुए पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता चित्तरंजन गगन, मृत्युंजय तिवारी, एजाज अहमद, रितु जायसवाल एवं प्रशांत कुमार मंडल ने बिहार के एनडीए सरकार पर शिक्षा को रसातल में पहुँचा देने का आरोप लगाया है। सोलह सालों के शासन में शिक्षा की स्थिति वहाँ पहुँच गई है जहाँ से पटरी पर लाने में वर्षों लग जायेंगे। इतने दिनों से केवल राजद के खिलाफ दुष्प्रचार कर लोगों को गुमराह किया गया, जबकि हकीकत काफी चौंकाने वाली है। सरकार की सारी घोषणायें केवल कागजी, दिखावटी और बनावटी है। इससे बुरा और क्या हो सकता है कि राजद शासनकाल में जिन विद्यालयों को खोला गया था एनडीए सरकार उसे बंद कर रही है। राजद प्रवक्ताओं ने कहा कि शिक्षा को सर्वसुलभ बनाने के उद्देश्य से राजद शासनकाल में महादलित, दलित, पिछड़ी, अतिपिछड़ी एवं अल्पसंख्यक बस्तियों में एक किलोमीटर के दायरे में कुल 20340 प्राथमिक विद्यालय खोले गए, जिसमें 12,619 विद्यालयों का भवन राजद शासनकाल में हीं बना दिए गये थे। शेष 7721 नवसृजित प्राथमिक विद्यालयों में मात्र 632 विधालयों का भवन हीं एनडीए के 16 वर्षों के शासनकाल में बन पाया है। अभी भी 7089 विद्यालय भवनहीन हैं जिन्हें 16 वर्षों के शासनकाल में एनडीए की सरकार नहीं बनवा पाई। इनमें से कुछ विद्यालयों को दूसरे विद्यालयों के साथ टैग कर दिया गया है, कुछ को बंद कर दिया गया है और शेष बचे को भी बंद करने जा रही है।
आज राज्य के कुल 42,573 प्राथमिक विद्यालयों में 20340 प्राथमिक विद्यालय केवल राजद शासनकाल में खुले हैं । एनडीए की सरकार अपने 16 वर्षों के शासनकाल में एक भी प्राथमिक विद्यालय नहीं खोल सकी बल्कि राजद शासनकाल मे खुले विद्यालय को भी बंद कर रही है। इसी प्रकार राजद शासनकाल में 19,604 प्राथमिक विद्यालय को मध्य विद्यालय में उत्क्रमित किया गया और आवश्यकतानुसार उसे आधारभूत संरचना के साथ हीं शिक्षक उपलब्ध कराए गए। विद्यालयों की संख्या बढ़ने के साथ हीं शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए राजद सरकार द्वारा नियमित 6,88,157 शिक्षकों के अतिरिक्त 1,96 ,000 शिक्षा-मित्रों की नियुक्ती की गई। सरकारी विद्यालयों में शिक्षा का स्तर बेहतर बनाने के उद्देश्य से बीपीएससी के माध्यम से शिक्षक नियुक्ती की प्रक्रिया शुरू की गई।राजद शासनकाल में नियमित रूप से रिक्तियों के विरुद्ध नियुक्ति की प्रक्रिया चलती रहती थी। एनडीए सरकार में शिक्षक के अवकाश ग्रहण करने के साथ हीं उनके पद को मृत मान लिया गया है। इसलिए अब नियमित वेतनमान और सेवाशर्त पर शिक्षकों की नियुक्ती नहीं होती। फिर भी पूर्व स्वीकृत पदों के आधार पर अभी 3,15,778 शिक्षकों के पद रिक्त हैं। काफी जद्दोजहद और वर्षों के संघर्ष के बाद 94000 प्राथमिक और 30200 माध्यमिक शिक्षकों की नियुक्ती प्रक्रिया चल रही है। इसके बाद अभी भी लाखों रिक्तियों के बावजूद एसटीईटी, टीईटी और सीटीईटी उत्तीर्ण शिक्षक अभ्यर्थी दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। शिक्षा के प्रति सरकार की मंशा यदि ठीक है तो एक अधिसूचना के द्वारा टीईटी, एसटीईटी, सीटीईटी उत्तीर्ण सभी शिक्षक अभ्यर्थियों को एक साथ नियुक्ति का आदेश जारी करे। पर सरकार इसे जानबूझकर टाल रही है। परीक्षा पास करने के बाद दो साल से फिजीकल टीचर नियुक्ती के लिए चक्कर काट रहे हैं। उर्दू ,बंगला स्पेशल टीईटी उत्तीर्ण अभ्यर्थी वर्षों से नियुक्ती की प्रतीक्षा मे है।
नयी शिक्षा नीति के अनुसार 30 छात्र पर एक शिक्षक होना चाहिए। पर 8004 विधालयों में छात्र-शिक्षक अनुपात 100 से ज्यादा है। 3276 विद्यालयों में केवल एक शिक्षक हैं वहीं 12507 विद्यालयों में केवल दो शिक्षक हैं। राजद प्रवक्ताओं ने कहा कि एनडीए के सोलह वर्षों के शासनकाल में उच्च शिक्षा की स्थिति तो और भी ज्यादा खराब हो गई है। राजद शासनकाल मे जेपी विश्वविद्यालय छपरा, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय आरा , बीएन मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा, मौलाना मजहरूल हक विश्वविद्यालय पटना, सिद्धु-कान्हु विश्वविद्यालय दुमका और विनोवा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग की स्थापना की गई । राज्य के बंटवारे के बाद दो विश्वविद्यालय झारखंड में चला गया। एनडीए शासनकाल में जो पाटलिपुत्र, पूर्णिया और मुंगेर मे सामान्य विश्वविद्यालय खोले गए हैं , वह अबतक आधा-अधुरा हीं है। डेपुटेशन पर नियुक्त कर्मी हीं विश्वविद्यालय चला रहे हैं। वर्षो से इन विश्वविद्यालयों में शिक्षकों एवं शिक्षकेतर कर्मचरियों की भारी कमी है। कई विषयों मे एक भी शिक्षक नहीं है। राजद शासनकाल में विश्वविद्यालय सेवा आयोग और महाविद्यालय सेवा आयोग द्वारा रिक्तियों के विरूद्ध नियमित नियुक्ती होती रहती थी । एनडीए की सरकार बनने पर उक्त दोनों आयोगों को भंग कर दिया गया। अभी कुछ दिन पहले राज्य विश्वविद्यालय आयोग का फिर गठन किया गया है। जिसके द्वारा अभी तक मात्र अंगिका के 3 एसीसटेंट प्रोफेसर की बहाली की गई है।
पटना विश्वविद्यालय में 274 , पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय में 462, डॉ बीआरए विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर में 603, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय आरा में 428 , तिलका माँझी विश्वविद्यालय भागलपुर में 284, मुंगेर विश्वविद्यालय में 245, एलएनएम विश्वविद्यालय दरभंगा में 856, जेपी विश्वविद्यालय छपरा में 319 , बीएन मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा में 377, पूर्णिया विश्वविद्यालय में 213 और मगध विश्वविद्यालय गया में 381 एसीसटेंट प्रोफेसर के पद रिक्त हैं । इसी प्रकार बड़े पैमाने पर एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के पद रिक्त हैं। नेशनल स्टैटिक्स ऑफिस (एनएसओ) के अनुसार राष्ट्रीय साक्षरता दर 77.7 प्रतिशत है वहीं बिहार का साक्षरता दर 70. 9 प्रतिशत है। 2004 में बिहार का साक्षरता दर देश के छः राज्यों आन्ध्रप्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना,झारखंड, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ से ज्यादा था वहीं अब केवल आन्ध्रप्रदेश हीं साक्षरता दर में बिहार से पीछे रह गया है। एनडीए सरकार द्वारा सभी पंचायतों मे एक-एक मध्य विद्यालय को उच्च माध्यमिक विद्यालय मे उत्क्रमित करने की घोषणा की गई है। पर उन विद्यालयों में न तो आधारभूत संरचना है और न शिक्षक हैं। 216 मॉडल विद्यालयों में अभी तक 81 का निर्माण हीं नहीं हुआ है। जिनका निर्माण हो भी गया है, वहाँ केवल भवन खड़ा कर छोड़ दिया गया है। राजद प्रवक्ताओं ने कहा कि भाजपा और जदयू के नेता राजद शासनकाल की नकारात्मक चर्चा करते हुए राजद काल में स्थापित छः विश्वविद्यालय, 20340 प्राथमिक विद्यालय और 19604 मध्य विद्यालय की चर्चा करने में शर्म महसूस करते हैं। सरकार की प्राथमिकता केवल सुर्खियाँ बटोरने वाली घोषणायें करने भर से है, जिसकी वजह से शिक्षा का बुनियाद हीं बिल्कुल खोखला हो चुका है।
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