पटना। देश में सर्वाधिक बेरोजगारी दर बिहार की है। ऊंची डिग्रियां हासिल करने वाले 100 लोगों में से मात्र 6 लोगों को उनकी डिग्री के मुताबिक नौकरी मिल रही है। इसमें भी 4 को निजी क्षेत्र में नौकरी मिल रही है और मात्र दो आदमी को सरकारी नौकरी मिल रही है। सामान्य स्तर की पढ़ाई करने वाले 100 लोगों में से मात्र 8 लोगों को काम मिल पा रहा है। इन 8 लोगों में से 3 को ही सरकारी विभागों में नौकरी या नियोजन मिल पा रही है। बाकी 5 को निजी क्षेत्र की नौकरी मिल रही है। मनरेगा मजदूरों को तो सरकार भूल ही गई है। बिहार के मनरेगा मजदूरों को साल में 20 दिन काम मिल पा रहा है। बिहार में पढ़े-लिखे नवजवानों की एक बड़ी भीड़ रोजगार की तलाश में अवसाद का शिकार हो रही है। किसी भी राज्य के लिए यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। पढ़े-लिखे बिहारी नवजवानों को दूसरे राज्यों में ग़म और गालियां खानी पड़ रहीं हैं। बिहार से बाहर बिहारी श्रमिकों का अमानवीय शोषण हो रहा है। आज़ादी के बाद रोज़गार के मामलों में बिहार सर्वाधिक बुरे दौर से गुज़र रहा है।भाजपा-जदयू गठबंधन वाली सरकार जातिवाद और संप्रदायवाद के मकड़जाल में लोगों को उलझा कर राज्य का वर्तमान और भविष्य अंधेरे में धकेल रही है। अनुमान है कि राज्य सरकार के अलग-अलग विभागों में खाली पड़े पदों की संख्या 15 लाख से अधिक हो गई है। बिना कर्मचारियों के विभाग, बिना डॉक्टर के अस्पताल और बिना शिक्षक के स्कूल बिहार की पहचान बन गए हैं। जाति और आवास प्रमाण पत्र के लिए लोगों को महीनों दौड़-भाग करनी पड़ रही है। हर स्तर के अधिकारी स्टाफ की कमी का रोना रो रहे हैं। बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी के प्रवक्ता असित नाथ तिवारी का कहना है कि हमलोग सरकार से मांग की है कि वो या तो खाली पदों पर बहाली करे या फिर कुर्सी खाली करे।
शुक्रवार, 27 अगस्त 2021
बिहार : कांग्रेस की मांग है कि खाली पदों पर बहाली करे या फिर कुर्सी खाली कर दें
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