2012 के प्रावधानों के पूर्वव्यापी पहलू के बारे में हस्तक्षेप करने से पहले सरकार यह चाहती थी कि इससे जुड़े विवाद तार्किक तरीके से हल हों। दो प्रमुख मध्यस्थता यानी वोडाफोन और केयर्न मामले में, भारत के खिलाफ क्रमशः सितंबर 2020 और दिसंबर 2020 में प्रतिकूल निर्णय सुनाए गए। एक अर्थ में, ऐसे निर्णयों की घोषणा इस प्रक्रिया की एक तार्किक परिणति थी। इसके अलावा, इन दोनों मामलों में इस तरह के आदेशों के तत्काल प्रभाव से कहीं ज्यादा इन आदेशों ने इस तरह के पूर्व व्यापी कराधान के बारे में निवेशकों के जेहन में प्रतिकूल भावनाओं को मजबूत किया। तभी से, सरकार इस तरह के सभी पुराने विवादों को पीछे छोड़ने और विशेष रूप से इस मुद्दे पर और सामान्य रूप से कर नीति के बारे में निवेशकों के जेहन में बैठी अनिश्चितता की भावना को दूर करने के लिए एक व्यापक समाधान पर काम कर रही है। कारगर रूप से मानसून सत्र इस तरह के समाधान को संसद में मंजूरी के लिए लाने का पहला अवसर था। अगर हम समाधान की बात करें, तो सरकार शुरू से ही इस बारे में स्पष्ट थी कि ऐसा कोई भी समाधान भारतीय कानून के भीतर होना चाहिए। यह समाधान मध्यस्थता के निर्णयों को मान्यता देने वाला नहीं हो सकता क्यों कि सरकार का यह रुख रहा है कि कर विधायन/विवादों जैसे संप्रभु मामलों को मध्यस्थता के अधीन नहीं किया जा सकता। इस तरह के विवादों को देश के कानूनी ढांचे के भीतर सुलझाना होगा, न कि इस के बाहर। और यह समाधान व्यापक भी होना चाहिए ताकि यह इस किस्म के पूर्व व्यापी कराधान (रेट्रोस्पेक्टिवटैक्सेशन) से जुड़े सभी मामलों पर लागू हो, चाहे कोई विवाद मध्यस्थताया किसी अन्य वजहों से कहीं भी लंबित हो। कई आलोचकों ने इस संशोधन के समय को लेकर सवाल उठाया है। यह कहा गया है कि इस संशोधन को विभिन्न न्यायिक क्षेत्राधिकारों द्वारा दिए गए निर्णयों को लागू करने के लिए केयर्न द्वारा हाल की कार्रवाइयों की वजह से लाया गया है। इससे ज्यादा सच्चाई से परे और कोई भी बात नहीं हो सकती। इस किस्म की मध्यस्थता और प्रवर्तन की कार्यवाही से अच्छी तरह परिचित हर व्यक्ति यह जानता है कि इस तरह की कार्यवाही के वास्तविक भुगतान, यदि कुछ हो, में बदलने से पहले गंगा नदी में बहुत अधिक पानी बहने यानी बहुत कुछ करने की जरूरत पड़ती है। केयर्न और वोडाफोन मामले में निर्णय को आने में लगभग पांच साल लग गए। अब इन निर्णयों को चुनौती दी गई है और इससे जुड़े अपील कई स्तरों पर लंबित हैं। प्रवर्तन से जुड़ी कार्यवाही भीइ सी किस्म की प्रक्रिया से गुजरेगी। इन सब में सालों लग जायेंगे। इस संशोधन को सरकार की आर्थिक और कर नीति के व्यापक संदर्भ में भी देखने की जरूरत है। खास कर पिछले एक साल से अधिक समय में कोविड-19 के दौरान, सरकार ने आत्मानिर्भर पैकेज के तहत विदेशी निवेश सहित ज्यादा से ज्यादा निवेश आकर्षित करने के लिए कई पहल की हैं। विनिर्माण, बुनियादी ढांचे और वित्तीय क्षेत्रों में परिवर्तनकारी सुधार किए गए हैं। 2021 के बजट, जिसे चौतरफा प्रशंसा मिली, ने आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और रोजगार पैदाकर ने के लिए निवेश को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। हम अब उस मोड़ पर हैं, जहां निवेश दूसरी जगहों से भाग कर भारत आना चाहता है। यह संशोधन निवेश को आकर्षित करने की सरकार की इस किस्म की समग्र नीति गत दिशा में पूरी तरह से फिट बैठता है। इस संशोधन के जरिए सरकार इस आशय का एक व्यापक संदेश दे रही है कि भारत निवेश के लिए एक आकर्षक गंतव्य है। निवेशक इस बात को लेकर सुरक्षित और आश्वस्त महसूस कर सकते हंर कि निवेश का माहौल स्थिर रहेगा और सरकार अपने सभी वादों को पूरा करेगी।
* तरुण बजाज *
• लेखक भारत सरकार के वित्त मंत्रालय में राजस्व सचिव हैं।
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