डॉ वीरेंद्र झा की "मेघ भरल इजोरिया" की पंक्ति--"मेघ भरल इजोरिया रातिक चान ठीक ओहने लगै'छ जेना नवकनियाँ अचानक भैंसुर के देखि झट हरियरका आँचर सँ अपन उजरा मुखमंडल के झाँपि लैत हो"- में लोगों ने मिथिला की नारियों के मर्यादापालन और चाँद तथा नवोढ़ा के मुखमंडल के साम्य के बिम्ब का मनमोहक दृश्य पाया। गणेशचन्द्र झा जी की बिम्बों की बहुतायत भरी कविता की पंक्ति--"भरि आँगन रौद मे ओरियाओनक छाँह के की मोजर; जेहने भेने तेहने बिन भेने" --ने लोगों के दिलों को खूब गुदगुदाया। प्रलेस के प्रधान सचिव और संचालनकर्ता अरविन्द प्रसाद की "#भारतदर्शन" कविता द्वारा लोगों ने न केवल भारत के दर्शनलाभ की सुखानुभूति की. कुमारी जगमन्ती ने उपस्थित कवियों का स्वागत किया और सेवानिवृत्त बी.एस.एन.एल पदाधिकारी डॉ.राजेन्द्र पासवान ने दिनकर जी की रश्मिरथी के अनेक उद्धरणों के साथ सबका धन्यवाद ज्ञापन किया। कविगोष्ठी का समापन प्रलेस के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहतरमजावेद अली साहब, राजस्थान प्रलेस के महासचिव आदरणीय ईश मधु तलवार तथा बक्सर बिहारवासी गजलकार,पत्रकार और अधिवक्ता हरदिलअजीज *कुमार नयन के हाल ही में हुए निधन पर श्रद्धांजलि समर्पण के साथ हुआ।
मधुबनी : आज अपराह्न में मधुबनी ज़िला प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से केंद्रीय पुस्तकालय मधुबनी में गणेशचन्द्र झा की अध्यक्षता में कविगोष्ठी आयोजित हुई। गोष्ठी का आरंभ रामप्रिय पांडेय की "ऐ तिरंगे, तुझे बार-बार नमन है" शीर्षक कविता से हुई जिसकी पंक्तियों --"सदियों की तपस्या से फूल (तिरंगा झंडा)यह खिला है।तेरे केसरिया में तो मेरा रक्त ही मिला है।"--ने उपस्थित लोगों को रोमांचित कर दिया। झौली पासवान की "शिक्षा का बाज़ारीकरण" कविता में सरकार द्वारा दी गई सहूलियतों के बावजूद उसकी गुणवत्ता में विकास पर लगे हुए ग्रहण पर गहरी चिन्ता को लोगों ने नोट किया। रामविलास साहु जी की "आँसू" शीर्षक कविता में एक मरे कौए की मृत्यु पर कौओं के भारी जमावड़े के विपरीत किसी सड़क दुर्घटना में घायल/मृत व्यक्ति को देखकर आँखेँ बचाकर निकल चलनेवाले लोगों पर व्यंग्य ने मनुष्य की संवेदनशीलता पर प्रश्नचिन्ह उपस्थित कर दिया। डॉ विजयशंकर पासवान की सामाजिक विषमता पर व्यंग्यवाण संधान करती "मनुक्खक पहचान" शीर्षक कविता की पंक्तियाँ--"मनुक्ख मात्र मनुक्ख होइत अछि ,ऊँच की नीच की?" --ने लोगों को सिर हिलाकर स्वीकृति देने को प्रेरित किया। सुभेषचंद्र झा जी की कविता-"मुनचुन राय चुनाव लड़ता!":---शीर्षक कविता में मुनचुन राय द्वारा अपनेराय सरनेम के इस्तेमाल द्वारा विभिन्न जातियों से अपने को उनका स्वजातीय बताकर वोट बटोरने की कला को लोगों ने वास्तविकता की कसौटी पर सही करार दिया।डॉ रामदयाल यादव की कविता की पंक्तियों--" दूसरों को याद करते खुद को न भूल जाना, *"गुड-मॉर्निंग" की फेर में "सुप्रभात" न भूल जाना। "हिन्दीदिवस" मनाकर हिंदी को न भुलाना।।"-- को लोगों ने अति प्रेरणादायी बताया।
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