वर्तमान में पीएम 2.5 एक बहुत महत्वपूर्ण वायु प्रदूषण है क्योंकि यह अपने बहुत छोटे आकार के कारण आसानी से ना केवल हमारे से हो तक पहुंच जाता है और हमारे स्वसन तंत्र को प्रभावित करता है बल्कि वहां से आगे बढ़ते हुए या हमारे रक्त संचालन तंत्र के द्वारा शरीर के अन्य अंगों तक पहुंच कर उन्हें भी प्रभावित करता है। नाइट्रोजन डाइऑक्साइड हमारे स्वसन तंत्र को प्रभावित करता है और इसका ज्यादा कंसंट्रेशन मनुष्य में अस्थमा का कारण बन सकता है साथ ही साथ यह सतही ओजोन का निर्माण भी करता है जो स्वास्थ समस्याओं के साथ-साथ अन्य पर्यावरण समस्याओं के लिए भी जिम्मेदार है। सल्फर डाइऑक्साइड हमारे श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है और साथ ही एंफिसेमा का कारक बनता है एवं हमारे फेफड़ों की क्षमता को प्रभावित करता है। कार्बन मोनोऑक्साइड की अधिक मात्रा हमारे लिए जहर की तरह होती है जिसे कारण हमारी मृत्यु भी हो सकती है क्योंकि कार्बन मोनोऑक्साइड की एफिनिटी हीमोग्लोबिन के साथ ऑक्सीजन की तुलना में कहीं ज्यादा है अतः जब या हमारे शरीर तक पहुंचता है तो धीरे-धीरे पूरे शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई को प्रभावित करता है जिसके कारण मृत्यु तक हो सकती है। ऐसी स्थिति में इन सभी प्रदूषकों के वातावरण में कंसंट्रेशन को कम करना ही अच्छे स्वास्थ्य को पाने का पहला कदम है। इन्हीं सब कारणों को ध्यान में रखते हुए संगठन ने नए वायु गुणवत्ता मानकों का निर्धारण किया है। इन मानकों के आधार पर अगर हम वर्तमान में वायु प्रदूषण की स्थिति की तुलना करें तो हम समझ पाएंगे के प्रदूषण की स्थिति कितनी भयावह है यह स्थिति विभिन्न प्रकार के स्वास्थ्य समस्याओं के जन्मदाता है भारत जैसे देशों के लिए और बड़ी समस्या है क्योंकि एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष लगभग 3% लोग स्वास्थ्य समस्याओं के कारण गरीबी रेखा से ऊपर नहीं उठ पाते। ऐसी स्थिति में बढ़ता वायु प्रदूषण भारत की जनता के लिए स्वास्थ्य समस्याओं के साथ आर्थिक विषमता एवं समस्याओं को भी बढ़ाता है।
अगर हम वर्तमान भारतीय वायु गुणवत्ता मानकों की तुलना डब्लू एच ओ के नए मानकों से करें तो हम पाते हैं कि हमारे मानक कहीं से भी स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी नहीं है। उदाहरण स्वरूप पीएम 2.5 का नया वार्षिक मानक औसत 5 माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब है जबकि भारत में 40 माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब है। ऐसे ही पीएम 10 के लिए डब्लू एच ओ का नया मानक औसत 15 माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब वार्षिक है जबकि भारतीय मानक 60 माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब है। इसी प्रकार नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का नया वार्षिक औसत मानक 10 माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब है जबकि वर्तमान भारतीय मानक 40 माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब है, (वास्तव में यहां नाइट्रोजन डाइऑक्साइड भारतीय मानक विश्व स्वास्थ संगठन के 2005 के मानक के अनुरूप है) इसी प्रकार यदि हम सल्फर डाइऑक्साइड के नए और भारतीय मानकों की तुलना करें तो हम पाते हैं कि नए मानक एक बिल्कुल ही नए स्तर को निरूपित करते हैं अर्थात विश्व स्वास्थ संगठन के नए मानकों की तुलना में भारतीय मानक कहीं नहीं ठहरते। इन मानकों के आधार पर भारत के भी वायु गुणवत्ता मानकों में परिवर्तन करने की आवश्यकता है अन्यथा हम अपने देश में वायु प्रदूषण कारण हो रही स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने में समय के अनुसार सक्षम नहीं हो पाएंगे। डब्ल्यूएचओ के नए मानक हमें यह बताते हैं के अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने के लिए हमें अपने वायु की गुणवत्ता को और बेहतर बनाना होगा और इसके लिए अगर समय रहते उचित कदम नहीं उठाएगा तो हमारा भविष्य अंधकार में हो सकता है।
लेखक परिचय:
धीप्रज्ञ द्विवेदी
( लेखक पर्यावरण विषय में स्नातकोत्तर एवं यूजीसी नेट क्वालिफाइड हैं, पर्यावरण विषय पर लगातार विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लिखते रहे हैं, प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए पर्यावरण विज्ञान पढ़ाते हैं। साथही स्वास्थ्य विषय पर काम करने वाली संस्था स्वस्थ भारत न्यास के संस्थापक न्यासी हैं एवं सभ्यता अध्ययन केंद्र से एक अध्ययन के रूप में जुड़े हुए हैं)
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