- इसबार की बाढ़-जलजमाव से बाग-बगीचे, सब्जी की खेती और पशुधन को भारी नुकसान, हरित पट्टी के सामने बड़ा खतरा
- 30 हजार करोड़ रुपये के केंद्रीय पैकेज की मांग करे राज्य सरकार, बाढ़ राहत में कोताही बरत रही है सरकार
- सभी प्रभावित गांव-पंचायतों को राहत और किसानों को प्रति एकड़ 25 हजार रुपये का मुआवजा मिले!
पटना, भाकपा-माले पोलित ब्यूरो के सदस्य व अखिल भारतीय खेत व ग्रामीण मजदूर सभा के महासचिव काॅ. धीरेन्द्र झा ने आज बयान जारी करके कहा है कि बिहार में लगातार बाढ़ और जलजमाव से इस बार भारी तबाही हुई है. विगत दस वर्षों का बारिश का रिकाॅर्ड टूट गया है. इसके बरक्स सरकार का आकलन वास्तविकता से कोसों दूर है. सरकार बाढ़ से हुई भयानक तबाही के मंजर को छुपाने का काम रही है. बिहार सरकार ने बाढ़ राहत के लिए केंद्रीय सरकार से जो मांग की है, वह बहुत तुच्छ है. बाढ़ से तबाही के आलम को देखते हुए बिहार सरकार को कम से कम 30 हजार करोड़ रु. की मांग की जानी चाहिए. विडंबना यह है कि बिहार में ‘डबल इंजन’ की सरकार आज तक बिहार को बाढ़ से मुक्ति नहीं दिला सकी है. केंद्रीय पैकेज के नाम पर भी हर बार छलावा ही किया जाता रहा है. माले नेता ने कहा कि इस बार की बाढ़ व जलजमाव से बाग-बगीचे, सब्जी की खेती और पशुधन का भारी नुकसान हुआ है. सरकार प्रति एकड़ 25 हजार रु. फसल क्षति का मुआवजा दे और सभी गांवों में इसका ठीक से आकलन कराए. इस बार एक ओर जहां बाढ़ ने भारी तबाही मचा रखी है, राज्य सरकार का राहत अभियान उतना ही कमजोर चल रहा है. प्रभावित इलाकों में एक दो दिन चलाकर राहत शिविरें बंद कर दी गई हैं. भाकपा-माले बाढ़ राहत आंदोलन के दौरान जनता पर लादे गए सभी मुकदमों की वापसी की मांग करती है. जलसंसाधन मंत्री द्वारा बाढ़ पीड़ितों के प्रति दिया गया बयान बेहद आपत्तिजनक है, इसके लिए उन्हें राज्य की जनता से माफी मांगनी चाहिए. दरभंगा के डीएम द्वारा यह बयान दिया जाना कि चार दिनों तक चूल्हा डूबा रहने पर ही बाढ़ राहत मिलेगा, बेहद आपत्तिजनक है. बाढ़ और जलजमाव से परेशान मजदूर-किसान पूरे बिहार में आंदोलन चला रहे हैं. आगामी 13 सितंबर को इस कड़ी में समस्तीपुर समाहरणालय पर प्रदर्शन किया जाएगा.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें