लेकिन वर्तमान समय पर नजर डाले तो अब लोगों की सोच में बदलाव आ गया है। सुविधाओं से संपन्न आधुनिक मशीनें लोगों को ज़्यादा पसंद आने लगी है। जबकि यह वही पहाड़ी क्षेत्र है जहां लोगों ने प्रकृति का साथ देते हुए क्रांतिकारी आंदोलन का नेतृत्व किया था। इस मामले में जनपद चमोली के मंडल घाटी के इतिहास की ओर नजर डाले तो इस क्षेत्र में चिपको आंदोलन हो या शराब के खिलाफ आंदोलन, यहां की महिलाओं ने पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर इन आंदोलनों में अपनी महत्वूर्ण भूमिका का निर्वहन किया था। उल्लेखनीय है कि विश्व प्रसिद्ध चिपको आंदोलन का जन्म जनपद चमोली के रैणी तथा मंडल घाटी से हुआ था। इस आंदोलन में यहां की महिलाओं, बुज़ुर्गों एवं बच्चों ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुये इस क्षेत्र से वन माफियाओं को खदेड़ दिया था। महिलाओं को अपने जंगलों से इतना प्यार था कि वह इसे अपना मायका मानते हुये पेड़ों से चिपक गई थीं। महिलाओ का साफ तौर पर कहना था कि यदि इन पेड़ों पर आरी चलानी है तो सबसे पहले उनपर चलानी होगी। यह चिंता सबके सामने थी कि यदि पेड़ कट जायेंगे तो इस क्षेत्र का अस्तित्व ही खत्म हो जायेगा। इस आंदोलन के लिये सभी लोगों ने एकजुट प्रयास करते हुये इस क्षेत्र की अपार संपदा को बचाये रखने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। इस आंदोलन से जुड़ी यादों को साझा करते हुए दशोली ब्लाक के मंडल घाटी स्थित कोटेश्वर गांव की 55 वर्षीय गंगा देवी का कहना है कि पहले जमाने में महिलाओं को जंगलो से बहुत प्रेम होता था। महिलायें जंगलों को अपना मायका मानती थी। जब लड़की की शादी की बात होती थी तो उसके मां पिता वहां आस पास जंगलों के बारे में पूछा करते थे कि आस पास ही जंगल होगा तो हमारी बेटी को कष्ट कम होगा। मीलों दूर जंगलों में घास के लिये न जाना पडे़ इसलिये पूछताछ मुददा बना रहता था।
कालांतर में इसी चिपको आंदोलन से सीख लेते हुए महिलाओं ने शराब के विरुद्ध आंदोलन चलाया है। इस क्षेत्र की महिलाएं सबसे अधिक शराब के बढ़ते नशे से परेशान थीं। आये दिन घर में शराब पीकर आने वाले अपने ही परिजनों से बेहद परेशान रहती थीं। यही नहीं कई महिलाओं और बच्चों ने इसके कारण यातनाएं भी सही हैं। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि उत्तराखंड में शराब जैस व्यवसाय से सबसे अधिक राजस्व प्राप्त होता है और इसी राजस्व से सरकार अपने खर्चों को पूरा करती है। गांवों, कस्बों तथा शहरी क्षेत्रों के आसपास बनने वाली कच्ची शराब से गांवों का माहौल निरन्तर खराब होता जा रहा था। सस्ती दरों पर कच्ची शराब मिलने से आसानी से गावों के लोगों तक इसकी पहुंच होने लगी थी। जिसके बाद एक बार फिर इस क्षेत्र की महिलाओं द्वारा क्षेत्र में कच्ची शराब बनाये जाने पर रोक लगाने के लिये एकजुट प्रयास किया गया था। इस आंदोलन की शुरूआत मंडल घाटी के देवलधार की महिलाओं द्वारा की गई थी। देवलधार की प्रधान सुमन देवी के नेतृत्व में कई महिलाओं ने नरोंधार मे सैकड़ों लीटर कच्ची शराब तथा उसे बनाने वाले पदार्थों को नष्ट कर दिया था। इसके बाद इस आंदोलन में क्षेत्र के लोगों का भरपूर सहयोग मिला और इसे तेज किये जाने के लिये रणनीति बनाई गई। इस आंदोलन में ग्वाड़, देवलधार, दोगड़ी कांडई, बैरागना, कुनकुली, मकरोली, भदाकोटी, खल्ला, मंडल, वणद्वारा, सिरोली, कोटेश्वर की महिलाओं ने बढ़चढ़ कर प्रतिभाग करते हुये आगे से इस क्षेत्र में कच्ची शराब बनाने के विरुद्ध व्यापक आंदोलन किये जाने का निर्णय लिया गया। यहां गढ़सेरा में आयोजित बैठक में महिलाओं का कहना था कि इस प्रकार से कच्ची शराब बनाकर इस क्षेत्र के नौजवानों, बच्चों तथा परिवार पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। जिससे कई परिवार उजड़ कर रह गये हैं। इसलिये इस क्षेत्र में इस प्रकार के व्यापार पर अंकुश लगाया जाना आवश्यक है।
इस आंदोलन को चमोली के तत्कालीन जिलाधिकारी डॉ. रंजीत सिंह ने सराहनीय कदम बताते हुए कहा कि क्षेत्र की जनता की एकजुटता के कारण इस प्रकार के अवैध व्यापार और धंधों को बंद किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ऐसे परिवारों को समाज के साथ मिलकर स्वयं को समृद्धशाली बनाने का प्रयास किया जाना चाहिये। उन्होंने भी आबकारी अधिकारी को क्षेत्र में बनने वाली कच्ची शराब के लिये व्यापक रूप से चेकिंग किये जाने के निर्देश जारी किये थे। महिलाओं के इस आंदोलन की सफलता यह रही कि इस आंदोलन के बाद अधिकतर सामाजिक कार्यो में महिलाओं ने शराब को परोसने वाले परिवारों से आर्थिक दंड का प्रावधान किया इससे कुछ हद तक ग्रामीण क्षेत्रों में शराब पर प्रतिबंध लगा। सबसे बड़ी सफलता महिलाओं यह मिली कि क्षेत्र में बन रही कच्ची शराब के कारण यहां युवा और बच्चें इसकी चुंगल में फंस कर अपना जीवन बर्बाद कर रहे थे। कच्ची शराब के अड्डे बंद होने के कारण अब युवा इससे दूर हैं। कोरोना महामारी के इस दौर में महिलाओं की भूमिका एक बार फिर से महत्वपूर्ण हो गई है। कोरोना के प्रकोप से न केवल उन्हें स्वयं बचना है बल्कि गांव को भी बचाना है। वहीं सरकार द्वारा कोरोना टीकाकरण को सफल बनाने में भी इन महिलाओं की भूमिका असरदार साबित हो सकती है। ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना टीका के खिलाफ फैली अफवाहों को दूर करने में महिलाओं की भूमिका को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता है। ज़रूरत है सरकार और स्थानीय जनप्रतिनिधियों को इस दिशा में पहल करने और ग्रामीण महिलाओं को इस काम में आगे लाने की। महिलाएं जब पेड़ बचा सकती हैं और शराब माफियाओं के खिलाफ सफल आंदोलन चला सकती हैं तो कोरोना टीकाकरण को भी सफल बना सकती हैं।
गोपेश्वर, उत्तराखंड
(चरखा फीचर)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें