दलितों-पिछड़ों-अतिपिछड़ों के वाजिब हक के लिए जाति गणना जरूरी : माले - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 25 सितंबर 2021

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दलितों-पिछड़ों-अतिपिछड़ों के वाजिब हक के लिए जाति गणना जरूरी : माले

  • जाति गणना न कराने का केंद्र सरकार द्वारा दिया गया तर्क बोगस 

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पटना 25 सितंबर, भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार द्वारा जाति गणना न कराए जाने के पक्ष में दिए गए तर्क को बोगस करार दिया है. कहा कि आरक्षण को तर्कसम्मत बनाने तथा दलितों-पिछड़ों व अतिपिछड़ों के वाजिब हक के लिए जाति गणना जरूरी है. लेकिन चूंकि भाजपा का पूरा हमला दलित-पिछड़ों के आरक्षण पर ही है, इसलिए वह जाति गणना नहीं कराना चाहती और बोगस तर्क दे रही है. उन्होंने कहा कि यह विडंबना ही है कि आज भी हम 1931 की जाति गणना के आधार पर ही जाति समूहों का निर्धारण करते आ रहे हैं, जबकि इस बीच काफी बदलाव आ चुका है. यदि जाति आधारित गणना की जाए और नए आंकड़ें सामने आएं तो निश्चित रूप से दलित-पिछड़े समूहों के लिए आरक्षण का दायरा बढ़ाना होगा, जो अभी 50 प्रतिशत पर अटका हुआ है. कहा कि केंद्र सरकार 2011 के सामाजिक-आर्थिक गणना में रह गई विसंगतियों को आधार बनाकर जाति गणना से इंकार कर रही है. विसंगतियों को दूर करना सरकार का काम है. प्रशासनिक जटिलता व कठिननाई की आड़ में जाति गणना से भागना दरअसल कुछ और नहीं बल्कि भाजपा की दलित-पिछड़ा विरोधी विचारधारा को साबित करता है. इस मसले पर बिहार की सभी पार्टियों के नेताओं ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी. प्रधानमंत्री ने आश्वासन भी दिया था, लेकिन सरकार अब ठीक उलटा काम कर रही है. हम प्रधानमंत्री के साथ हुई बैठक में शामिल सभी दलों व उनके प्रतिनिधियों से कंेद्र सरकार के इस रवैये का विरोध करने का निवेदन करते हैं. नौकरियों व शिक्षण संस्थानों में आरक्षण को लेकर कमजोर जातियों की स्थिति देखने के लिए बनाई गई रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट भी अब तक नहीं आई है, जबकि 2017 में गठित इस कमीशन को बनाने के बाद अब तक 11 बार एक्सटेंशन दिया जा चुका है. जाहिर है कि भाजपा इस देश में दलित-पिछड़ों की सही संख्या सामने न आने देकर उनके आरक्षण के अधिकार को खत्म करने में लगी है.

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