- सुंदर गाँव के संकल्प से साकार होगा ग्राम स्वराज का सपना
भोपाल। महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज की अवधारणा समाज को शासनिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था में सहभागी बनाने पर जोर देती है। ग्राम स्वराज की परिकल्पना एक ऐसी व्यवस्था है जो राजनैतिक अव्यवस्था, भ्रष्टाचार, अराजकता, असमानता, भेदभाव तथा तानाशाही जैसी समस्याओं का पूर्ण रूप से समाधान करती है। इस परिकल्पना को आदर्श लोकतंत्र भी कहा जा सकता है। यह तभी संभव है जब ग्रामीण स्तर पर सुंदर गाँव बनाने को लेकर लोगों में जागरूकता आएगी। महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के सपने को साकार करने के लिए एकता परिषद और सर्वोदय समाज द्वारा गाँव-गाँव सुंदर गाँव बनाने को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाई जा रही है। समाज में न्याय और शांति स्थापित करने के उद्देश्य से एकता परिषद और सर्वोदय समाज द्वारा 12 दिवसीय “न्याय और शान्ति पदयात्रा - 2021”, 21 सितम्बर को अन्तराष्ट्रीय शान्ति दिवस के मौके पर शुरू की गई है। एकता परिषद के राष्ट्रीय महासचिव अनीष कुमार कहते हैं, “सुंदर गाँव का मतलब यह है कि गाँव की बेहतरी के लिए किस चीज को अपनाना है और किस चीज का बहिष्कार करना है, इसे हम सबको समझने की जरूरत है। उदाहरण के लिए शराब समाज के लिए हानिकारक होता है तो इसका बहिष्कार करना है और वृक्षारोपण समाज के लिए अच्छा होता है तो हमें इसे अपनाना है। साफ शब्दों में कहें तो सुंदर गाँव में नकारात्मक चीजों का बहिष्कार करना और सकारात्मक चीजों को अपनाना है और यही सुंदर गाँव गांधी जी के ग्राम स्वराज की अवधारणा को भी पूरा करता है।” डिंडोरी जिले से पदयात्रा में शामिल शोभा तिवारी के अनुसार, “दुनिया में सुंदरता के नाम पर साज-सज्जा और सजावट समझा जाता है। सजावट का मतलब समानों को बाहर से लाकर किसी भी चीज को सजाना समझा जाता है। गाँव को सुंदर बनाने के लिए बाहर से लाए गए समानों से सजावट करने की आवश्यकता नहीं थी, लेकिन फिर भी ऐसा किया गया। सुंदरता के नाम पर गाँव के मौलिकता को ही समाप्त कर दिया गया। हमारा सुंदर गाँव का संकल्प गाँव के मौलिकता को पुनः स्थापित कर इसे बनाए रखना है।”
सीहोर जिले से जिला समन्वयक राकेश रतन कहते हैं, “सुंदर गाँव में गाँव की आर्थिक संबलता भी शामिल होती है। स्थानीय स्तर पर रोजगार का सृजन कर गाँव के साथ-साथ गाँव के लोगों को भी आर्थिक संबलता प्रदान करने की जरूरत है। गाँव में रोजगार के कई माध्यम हैं जैसे पशुपालन, खेती, पारंपरिक हस्तकलाएं, जड़ी-बूटी से औषधि का निर्माण करना, आदि। उन्होंने आगे कहा कि स्थानीय रोजगार के तमाम माध्यमों को आज हाशिये पर डाल दिया गया है। हमारी कोशिश है कि स्थानीय रोजगार के ऐसे माध्यमों को पुनः मुख्यधारा में लाकर फिर से गाँव को आत्मनिर्भर और संबल बनाना। इसके लिए हमलोग पदयात्रा में स्थानीय लोगों को जागरूक और प्रोत्साहित कर रहे हैं।” विदिशा से पदयात्री टीकाराम कहते हैं, “जब गाँव में सभी के पास रोजगार होगा, गुजर-बसर करने के लिए जमीन होगी, गाँव से शहर की ओर रोजगार की तलाश में जाने वाले लोगों का पलायन रुकेगा तभी तो महात्मा गांधी का सपना ग्राम स्वराज साकार होगा। यह तब संभव है जब हम गांधी जी के ग्राम स्वारज की संकल्पना से प्रेरित होकर सुंदर गाँव की कल्पना करते हैं। इसी कड़ी में हम पदयात्रा के दौरान इन सभी मुद्दों पर ग्रामीणों से चर्चा कर रहे हैं और सुंदर गाँव बनाने को लेकर ग्रामीणों को प्रेरित कर रहे हैं।” उल्लेखनीय है कि एकता परिषद और सर्वोदय समाज द्वारा आयोजित पदयात्रा देश के 105 जिलों के साथ-साथ विश्व के 25 देशों में आयोजित की जा रही है। वहीं मध्यप्रदेश में यह पदयात्रा 27 जिलों में चल रही है। यात्रा के दौरान लगभग पांच हजार पदयात्री पैदल चल रहे हैं और लगभग दस हजार किलोमीटर की दूरी तय की जाएगी। इस ऐतिहासिक पदयात्रा का समापन 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के मौके पर की जाएगी। 2 अक्टूबर को दुनिया में अन्तराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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