दुनिया की सबसे पहली मलेरिया वैक्सीन के बारे में जाने
संयुक्त राष्ट्र की सर्वोच स्वास्थ्य एजेन्सी, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने, इस मलेरिया वैक्सीन (“आटीएस,एस”) को ऑक्टोबर 2021 में मोहर लगा के सभी देशों को वैश्विक मलेरिया उन्मूलन के लिए एक और प्रभावकारी माध्यम दिया है। यह मलेरिया वैक्सीन दुनिया के उन देशों या क्षेत्रों में अधिक कारगर रहेगी जहां यह रोग, मलेरिया कीटाणु "प्लैज़्मोडीयम फ़ेलकीपेरम" के कारण होता है। इस कीटाणु के कारण सबसे जानलेवा मलेरिया होने का ख़तरा रहता है, और यही कीटाणु अधिकांश अफ्रीकी मलेरिया के लिए भी ज़िम्मेदार है। भारत में अधिकांश मलेरिया इस कीटाणु से तो नहीं होती परंतु अनेक प्रदेशों में यह जानलेवा मलेरिया वाले कीटाणु का प्रकोप है। इस मलेरिया वैक्सीन का शोध शुरू हुए 30 साल से भी अधिक समय हो चुका है। इसके शोध के दौरान, जिन बच्चों को वैक्सीन लगी थी उनमें से बहुत ही कम बच्चों पर अत्यंत गम्भीर दुष्प्रभाव पड़ने की आशंका थी - पर यह स्थापित नहीं था कि यह दुष्प्रभाव वैक्सीन के कारण हुए या किसी अन्य कारण से। यह भी एक कारण था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2015 में वैक्सीन शोधकर्ताओं से एक पाइलट शोध करने को कहा जो 2019 में 3 अफ्रीकी देशों में शुरू हुआ - अप्रैल 2019 में यह मलावी में शुरू हुआ, मई 2019 में घाना में और सितम्बर 2019 में कीन्या में शुरू हुआ। इस शोध में 8 लाख से अधिक बच्चों को यह वैक्सीन लगी - पहली 3 खुराक 5-9 महीने की उम्र में लगी और 4वीं खुराक 2 साल की उम्र में लगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, चौथी खुराक लगे या नहीं इसका प्रमाण अभी पुख़्ता नहीं है इसीलिए शोध जारी है कि 4वीं खुराक का लाभ है या नहीं। 2019 से हुए पाइलट शोध में जिसमें 8 लाख से अधिक बच्चों का टीकाकरण हुआ, यह सिद्ध हुआ कि इस टीके के कोई गम्भीर दुष्प्रभाव नहीं हैं। बल्कि इस टीके से मलेरिया से बच्चों का बचाव हुआ है।
30+ साल से हो रहे मलेरिया टीके शोध के मुख्य नतीजे:
जिन बच्चों को टीका नहीं लगा उनकी तुलना में टीकाकरण करवाए हुए बच्चों में मलेरिया से बचाव होता है
- हर 10 मलेरिया ग्रस्त होने वाले बच्चों में से 4 को टीके के कारण मलेरिया नहीं हुआ
- हर 10 मलेरिया से मृत होने वाले बच्चों में से 3 की जान टीके के कारण बची
- हर 10 गम्भीर मलेरिया "अनीमिया" झेलने वाले बच्चों में से 6 का बचाव टीके ने किया। यह इस लिए भी महत्वपूर्ण बात है क्योंकि मलेरिया से मृत होने वाले बच्चों में से अधिकांश मलेरिया "अनीमिया" के कारण मृत होते हैं
इसके अलावा भी इस मलेरिया वैक्सीन के अनेक लाभ मिले। मलेरिया अनीमिया के कारण ही अधिकांश बच्चे अस्पताल में भर्ती होते हैं और रक्त चढ़ाने की ज़रूरत भी पड़ती है। चूँकि वैक्सीन के कारण मलेरिया अनीमिया का दर घटी इसीलिए मलेरिया के कारण अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या में गिरावट आयी और रक्त चढ़ाने की ज़रूरत भी कम हुई। पर यह बात समझना ज़रूरी है कि यह टीका अकेले पर्याप्त नहीं है बल्कि बाक़ी सभी प्रभावकारी मलेरिया नियंत्रण और रोकधाम के जो तरीक़े हैं उनके साथ समोचित ढंग से बिना-विलम्ब लागू होना चाहिए। अफ़्रीका में हुए पाइलट शोध के अनुसार, जिन ८ लाख बच्चों तक वैक्सीन पहुँची उनमें से दो-तिहाई बच्चे, कीटनाशक युक्त मच्छरदानी के भीतर नहीं सो रहे थे। यह महत्व की बात है कि मलेरिया टीका उन बच्चों तक पहुँचा जिन तक कीटनाशक युक्त मच्छरदानी नहीं पहुँच पा रही थी। यह सवाल भी उठता है कि जरूरतमंद बच्चों तक मलेरिया नियंत्रण के पुराने प्रभावकारी तरीक़े क्यों नहीं पहुँच पा रहे थे? इन अफ्रीकी देशों में हुए शोध में यह भी देखा गया कि मलेरिया टीका लगने से कहीं अन्य मलेरिया नियंत्रण और रोकधाम के तरीक़ों के उपयोग में कमी तो नहीं आती और यह सिद्ध हुआ कि टीके के बाद भी, जो लोग मच्छरदानी का उपयोग कर रहे थे वह करते रहे और अन्य मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम भी सुचारु रूप से चलते रहे।
दुनिया के लिए जीएसके के साथ मिलकर भारत की बाइओटेक (biotech) कम्पनी बनाएगी यह टीका
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मलेरिया टीके को जारी करते हुए कहा कि दुनिया के सभी बाइओ-टेक उद्योग से अनुरोध किया गया था कि वह जीएसके (जिस कम्पनी का यह टीका है) के साथ मिल कर इसको निर्मित और वितरण के लिए अर्ज़ी दें। विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक और अन्य विशेषज्ञों ने कहा कि विश्व में सिर्फ़ भारत की बाइओ-टेक कम्पनी ही चयनित हुई है जो जीएसके के साथ इस टीके को बनाएगी और दुनिया में वितरित करेगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह भी कहा कि प्रारम्भिक प्रयास हो रहे हैं कि इस नए मलेरिया वैक्सीन को ख़रीदने के लिए धनराशि एकत्रित हो पर यह सवाल महत्वपूर्ण है कि जब वैज्ञानिक उपलब्धि प्राप्त होती है तो जरूरतमंद तक पहुँचने में अनावश्यक विलम्ब होता है। हर पाँच में से चार कोविड वैक्सीन टीके अमीर देशों में लगे हैं - इस ग़ैर बराबरी को नज़रंदाज़ नहीं कर सकते। मलेरिया वैक्सीन को जरूरतमंद बच्चों तक पहुँचाने के लिए, बिना विलम्ब, आवश्यक सभी कदम उठाने चाहिए। पैसे के अभाव हो या हर देश की अपनी अंदरूनी प्रक्रिया जिसके तहत नयी वैक्सीन को संस्तुति आदि मिलती है - यह कहीं अनावश्यक विलम्ब न करे। यदि मलेरिया उन्मूलन का सपना साकार करना है तो हर प्रभावकारी मलेरिया नियंत्रण, रोकधाम, जाँच-इलाज सेवाएँ आदि सभी जरूरतमंद तक बिना विलम्ब दुनिया भर में पहुँचे वरना न सिर्फ़ मलेरिया उन्मूलन में हम असफल होंगे बल्कि अन्य सतत विकास लक्ष्यों पर भी पिछड़ेंगे।
बॉबी रमाकांत - सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस)
(विश्व स्वास्थ्य संगठन महानिदेशक द्वारा २००८ में पुरस्कृत, बॉबी रमाकांत, सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस), आशा परिवार और सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) से जुड़े हैं।
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