बिहार के मशरक, पानापुर, तरैया, रिविलगंज, मांझी, दरभंगा और छपरा का लगभग एक ही हाल था. यहां बाढ़ की वजह से हर साल औसतन 16-25 जिले प्रभावित होते हैं. पिछले पांच साल के सर्वे के अनुसार 136 प्रखंडों के लगभग साढ़े चार हजार गांव हर साल बाढ़ की मार झेलते हैं. अनुमानतः 95 लाख लोग इसके शिकार होते हैं और सैंकड़ों लोग डूबने से अपनी जान गंवा देते हैं. लेकिन सरकारी प्रक्रिया की सुस्ती का आलम यह है कि आपदा प्रबंधन विभाग, बिहार सरकार को जब तक गांव के मुखिया मदद के लिए इन बाढ़ ग्रस्त लोगों की सूची बनाकर देते हैं, तब तक बाढ़ का पानी उतर चुका होता है.
छपरा शहर के मुख्यालय से सटा ऐसा ही एक गांव है 'नेवाजी टोला धर्मशाला'. यह गांव शहर के निचले इलाके में स्थित है. यहां सावन और भादो का समय लोगों के लिए बहुत कष्टकारी होता है. यह वह समय है जब बाढ़ और बारिश एक साथ जनमानस के जीवन को प्रभावित करते हैं. पूरा इलाका डूबने की वजह से लोग सड़क किनारे तिरपाल लगाकर ज़िंदगी जीने को मजबूर होते हैं. यहां बाढ़ की स्थिति कभी-कभी इतनी बदतर हो जाती है कि घर के अंदर घुटने से ऊपर पानी बहता रहता है और लोगों को चौकी के ऊपर दूसरी चौकी लगाकर रहना पड़ता है. स्त्री हो या पुरुष, नाव की डेंगी पर बैठकर शौच करते हैं. जो महिलाओं और किशोरियों के लिए सबसे असहज स्थिति होती है.
इस संबंध में स्थानीय निवासी अशोक कुमार बताते हैं कि बाढ़ के समय कभी उनके पास खाने के लिए अनाज नहीं होता, तो कभी जलावन के लिए लकड़ी नहीं होती है. ऐसे में वह लोग एक ही समय का खाना खाते हैं. रात में इस उम्मीद से खाली पेट सो जाते कि शायद कल का दिन बेहतर हो. बाढ़ और बारिश के कारण बचे हुए अनाज और लकड़ी भी भींगकर बर्बाद हो जाते हैं. अशोक एक निपुण गोताखोर हैं. वह बाढ़ के समय लोगों की अनमोल जिंदगी बचाने का सराहनीय कार्य करते हैं. इसके साथ ही वह एक निपुण कलाकार भी हैं. बाढ़ के बाद की स्थिति के बारे में वह कहते हैं, "एक कलाकार के पास उसकी कला ही सबसे बड़ी धरोहर होती है. लेकिन पानी से मेरी पेंटिंग्स भी खराब हो जाती है। इसका मुझे सबसे ज्यादा दुःख होता है. बाकी सामान की बात करें तो लगभग 50 प्रतिशत समान ही हम वापस ले जा पाते हैं. एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में कुछ टूट जाते हैं तो कुछ पानी से बर्बाद हो जाते हैं. इतना ही नहीं, हमारे कई सामान चोरी भी हो जाते हैं" एक रिपोर्ट के अनुसार बाढ़ के दौरान हर साल 130 करोड़ के आस पास निजी संपत्ति का नुकसान होता है. इस वर्ष बाढ़ से लगभग 3,763 करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ है.
बाढ़ से हर साल होने वाली तबाही की चर्चा करते हुए 70 वर्षीय बुज़ुर्ग कहती हैं, "हमलोगों को बाढ़ की मार झेलते हुए 40-50 साल हो गए हैं. पहले हमारा गांव 'नेवजी टोला' कहलाता था, जो 2003 के आस-पास आई बाढ़ में विलीन हो गया. फिर यहां (नेवाजी टोला धर्मशाला गांव) आएं. यहां भी 4-5 साल हो गए, मगर हाल वही है. इतने सालों में कोई अंतर नहीं आया. मुखिया, सरपंच कोई भी मदद को आगे नहीं आता. कुछ समाजसेवी आते हैं, जो तिरपाल, चूड़ा, गुड़ देते, फोटो लेते, न्यूज बनवाते और चले जाते हैं। कोई हमारी बुनियादी समस्या का हल नहीं निकालता है. महिलाओं के लिए शौच या नहाने की कोई व्यवस्था नहीं होती। सरकार या कोई भी समाजसेवी यह नहीं सोचता कि गांव में इतनी महिलाएं हैं, लड़कियां हैं, उनके लिए एक सार्वजनिक शौचालय लगवा दें"
अर्चना किशोर
छपरा, बिहार
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