उन्होंने पुस्तक के संपादक प्रोफेसर विजय अग्रवाल को बधाई देते हुए कहा कि सतीश जी के ऊपर देश के इतने महत्वपूर्ण लेखकों के विचारों को संग्रहीत कर ग्रंथ का संपादन कर स्तुत्य कार्य किया गया है। प्रसिद्ध आलोचक डॉ राजेंद्र कुमार ने कहा कि समाज में जो आता है उसका जाना तय है लोग मरण शील होते हैं लेकिन कुछ लोग इस स्मरण शील होते हैं। सतीश में आत्मसम्मान भी था और अपनत्व भी। इसीलिए वे मान , अपमान से परे होकर संबंधों का निर्वहन करते थे। सतीश अग्रवाल जी की स्मृति में इतने लेखों का आना और लोगों का उन्हें याद करना यह सिद्ध करता है कि सतीश का व्यक्तित्व अनूठा था। वह हमारे बीच सदेह तो नहीं है लेकिन काल उन्हें मार भी नही सकता। वे स्मृतियों में सदैव जीवित रहेंगे। डॉ राजेंद्र कुमार ने यह अपेक्षा की कि साहित्य भंडार जिन मूल्यों के लिए अब तक कार्यरत रहा सतीश जी की आने वाली पीढ़ियां उन मूल्यों को लेकर आगे बढ़ेगी और हम सब का सहयोग उन्हें मिलता रहेगा। कार्यक्रम में श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए सुप्रसिद्ध गीतकार यश मालवीय ने कहा की सतीश जी भले ही सदेह हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी उपस्थिति सदैव महसूस की जाती रही है। वह एक ऐसे व्यक्ति थे जो हमारे विचारों से कभी ओझल नहीं हो सकते । उनके अंदर एक ठेठ इलाहाबादी पन था और अपने व्यवहार से वह हर एक का दिल जीत लिया करते थे, ऐसे व्यक्तित्व विरले ही होते हैं। उन्होंने सतीश जी को समर्पित अपने एक गीत को भी प्रस्तुत किया। अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष और नई पीढ़ी के वरिष्ठ कवि प्रोफेसर दिनेश कुशवाह ने सतीश अग्रवाल जी को याद करते हुए अपने अंतरंग संस्मरण प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा की मुसीबत में सतीश अग्रवाल एक ऐसे उद्धारक की भांति खड़े होते थे जिन पर सर्वस्व निछावर करने का मन होता है। उनके मानवीय संबंध और संवेदना के स्तर को मैं प्रणाम करता हूं।
आलोचक प्रोफेसर संतोष भदौरिया ने कहा की सतीश जी से जो भी मिलता था वह उनका अपना हो कर रह जाता था । उन्होंने साहित्य भंडार को राष्ट्रीय पहचान दी और देश के शीर्षस्थ रचनाकार साहित्य भंडार से अपनी रचनाओं को प्रकाशित करने के लिए लालायित रहते थे। सतीश जी का व्यक्तित्व इतना विशाल था कि वह नए और पुरानी रचनाकारों को एक साथ लेकर चल सके। आज के दौर में जब प्रकाशक और लेखक के संबंधित विकट हो चुके हैं सतीश जी के व्यक्तित्व को रेखांकित करते हुए यह कहने का मन हो रहा कि काश भारत का हर प्रकाशक उनके जैसा होता । कार्यक्रम के प्रारंभ में पुस्तक के प्रधान संपादक और हिंदी के वरिष्ठ कवि प्रोफेसर विजय अग्रवाल ने ग्रंथ की योजना पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि स्वतःस्फूर्त तरीके से जो लेख आए हैं उन्हें संग्रहीत किया गया है। निश्चित रूप से यह ग्रंथ सतीश जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को बखूबी रेखांकित कर सका है। उन्होंने प्रकाशित रचनाकारों की सूची भी प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ आनंद श्रीवास्तव ने मीरा फाउंडेशन और सतीश अग्रवाल जी के साहित्यिक अवदान की चर्चा की । उन्होंने कहा कि आने वाले समय में निश्चित रूप से मीरा फाउंडेशन उन तमाम विचारों को आगे बढ़ाता रहेगा जो स्वर्गीय सतीश अग्रवाल जीने मेरा फाउंडेशन के लिए तय कर रखा है । प्रारंभ में श्री विभोर अग्रवाल श्री राकेश अग्रवाल श्रीमती वर्षा अग्रवाल आदि ने मंचित अतिथियों का स्वागत किया दीप प्रज्वलन और सतीश जी के चित्र पर माल्यार्पण के साथ कार्यक्रम प्रारंभ हुआ और अंत में आभार प्रदर्शन मीरा फाउंडेशन की डॉक्टर शांति चौधरी द्वारा किया गया। डॉ शांति चौधरी ने भी सतीश अग्रवाल जी के व्यावहारिक पक्ष की चर्चा की जो उन्हें एक संवेदनशील मनुष्य के रूप में प्रतिष्ठित करते थे। इस अवसर पर सतीश जी के जीवन पर आधारित छाया चित्रों का भी प्रदर्शन किया गया।कार्यक्रम का प्रारंभ डॉक्टर ज्योति जायसवाल, सहायक प्राध्यापक आर्य कन्या डिग्री कॉलेज द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से किया गया । कार्यक्रम में सर्व श्री श्याम विद्यार्थी, अनीता गोपेश, हरिश्चंद्र पांडे ,मोतीलाल, संजय पुरुषार्थी, सरोज सिंह ,आभा त्रिपाठी, कुमार वीरेंद्र, राधेश्याम अग्रवाल, जयकृष्ण राय तुषार, जनार्दन, अंशुमान, विनम्र सेन, बाबा अभय अवस्थी आदि उपस्थित थे।
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