पटना 20 अक्टूबर, भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल और विधायक दल के नेता महबूब आलम ने संयुक्त बयान जारी करके कहा है कि बिहार विधानसभा का शताब्दी वर्ष का धूमधाम से मनाया जा रहा आयोजन 23 मार्च के ऐतिहासिक कलंक को नहीं मिटा सकता है, जब पूरी दुनिया ने विधानसभा के अंदर ही लोकतंत्र की हत्या का तमाशा देखा था. उस दिन सरकार व विधानसभा अध्यक्ष के इशारे पर न केवल विधायकों की बेहरहमी से पिटाई की गई बल्कि विधायिका जैसी संस्था की धज्जियां उड़ाई गईं थी. उस ऐतिहासिक कलंक को बिहार और पूरा देश कभी भूल नहीं सकता है. आज संसद से लेकर विधानसभा तक तथा सभी संस्थाओं की गरिमा को भाजपा सरेआम तार-तार कर रही है. संसद में तमाम लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का मजाक बनाते हुए जबरदस्ती तीन कृषि कानून पास करा लिए गए. विगत 10 महीनों से देश की सड़कों पर किसान आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन तानाशाह सरकारों को इससे कोई लेना देना नहीं है. 500 से अधिक किसानों की जान जा चुकी है, लेकिन सरकार लोकतंत्र के न्यूनतम प्रतिमानों का भी पालन नहीं कर रही है. विधायिका के सत्रों को सरकार ने जान-बूझकर छोटा कर दिया है ताकि वहां जनता के सवालों पर कोई बातचीत नहीं हो सके. इन संस्थाओं को कमजोर करके वे लोकतंत्र की बुनियाद को कमजोर कर रही हैं. केंद्र व पटना की सत्ता में बैठी सरकारें तानाशाही के जरिए शासन चलाना चाहती हैं. हम देख रहे हैं कि आज दिल्ली से लेकर पटना तक तानाशाही का विस्तार हो रहा है और प्रतिरोध की आवाजों को जबरदस्ती कुचला जा रहा है. ऐसे में केवल आयोजन मनाकर भला हम लोकतंत्र को कैसे मजबूत कर सकते हैं? संवैधानिक संस्थाओं व विधायिका की भूमिका को लगातार कमजोर किए जाने की भाजपाई साजिशों के खिलाफ जनता को मोर्चा लेना होगा, और हमें सही अर्थों में अपने देश के संविधान व लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक निर्णायक लड़ाई मंे उतरना होगा.
बुधवार, 20 अक्तूबर 2021
विधानसभा के शताब्दी वर्ष में ही लोकतंत्र को किया गया कलंकित, नहीं भूलेगा बिहार: माले
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