विशेष : काशी के घाटों पर दिखेगा देवलोक का नजारा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 18 नवंबर 2021

विशेष : काशी के घाटों पर दिखेगा देवलोक का नजारा

  • दुल्हन की तरह सज-धजकर तैयार हुई काशी। अर्द्धचंद्राकार में गंगा के किनारे चमकते-दमकते घाटों की कतारबद्ध श्रृंखलाएं। घाटों पर विद्युत झालरों की झिलमिलाहट व असंख्य दीयों में टिमटिमाती रोशनी की मालाएं, आकर्षक आतिशबाजी की चकाचौंध। बजते घंट-घडियालों व शंखों की गूंज। आस्था एवं विश्वास से लबरेज देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु। हर हाथ में दीपकों से थाली और मन में उमंगों की उठान। स्वर्णिम किरणों में नहाएं घाटों पर अविरल मंत्रोंचार। कल-कल बहती पतित पावनि मां गंगा। ऐसा विहगंम व मनोरम दृष्य मानों देवता वास्तव में इस पृथ्वी पर दीवाली मनाने आ रहे हो। मानों गंगा के रास्ते देवताओं की टोली आने वाली है और उन्हीं के स्वागत में काशी के 84 घाट पूरी तरह से टिमटिमाती दीयों की रोशनी में नहाएं से दिखाई देते है 

 

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देव दीपावली काशी क्षेत्र का अनोखा जलउत्‍सव है। जहां दीपों की अनगिन लड़ि‍यों से मां गंगा का ही श्रृंगार नहीं होता अपितु सरोवर और अन्‍य जल स्रोत भी इस दौरान प्रकाशित होते हैं। वहीं 84 घाटों की अर्धचंद्राकार श्रृंखला हार सरीखी पर जगमग दीपक और मां गंगा की महाआरती का मध्‍यस्‍थल दशाश्‍वमेध घाट चंद्रहार के बीच में दिव्‍य प्रकाश के बीच में लॉकेट सरीखा नदी के मध्‍य से नजर आएगा। कहा जाता है कि वामन अवतार लेने के बाद जब नारायण स्वर्गलोक पहुंचे तो वहां उनका भव्य स्वागत किया गया। देवताओं ने हरि का वैसा ही अभिनंदन किया जैसा कि अयोध्या लौटने पर श्रीराम का हुआ था। जिस दिन भगवान विष्णु स्वर्गलोक पहुंचे व भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध कर आम जनमानस को अत्याचार से मुक्ति दिलाई वो कार्तिक पूर्णिमा का ही दिन था। वो दिन आज भी देवदीपावली के रूप में मनाया जाता है। भगवान भोलेनाथ की नगरी काशी में देव दीपावली मनाने का बिल्कुल अनोखा अंदाज हैं। घाट की सीढ़ियों पर टिमटिमाते दिये और आसमान में चमकते तारों के साथ चांदनी बिखेरता पूर्णिमा की चांद के बीच पूरा गंगातट लाखों दीपों से जगमगा उठता है। कण-कण को रोशन हो जाता है। अर्द्धचंद्राकार घाटों पर कतारबद्ध दीप मालाएं और आकर्षक आतिशबाजी कुछ ऐसी होती है मानो काशी में स्वर्गलोक उतार आया है। दीपों की झिलमिलाहट देख कर ऐसा एहसास होता है जैसे सचमुच आसमान में सितारों संग आमजन अठखेलियां कर रहे हो। दीपों का साथ पाकर पूनम की रात भी इठला रही हो। इस चकाचौंध में जब गंगा के पानी में पूर्णिमा के चांद व आकाश के तारों का प्रतिबिम्ब असंख्य दीयों के बीच अपनी छटा दिखाई देती है तो मानों स्वर्ग हजारों दीपक अर्धचन्द्राकार आकृति में ऐसे लग रहे होते है जैसे काशी के गले में दीपों की माला हो।  यह अनुपम छवि देखने के लिए ही गंगा में नौका संचालक ही नहीं बल्कि पर्यटक भी वर्ष भर इंतजार करते हैं। गंगा में चलने वाली नौका और बजड़े महीनों पहले ही बुक हो जाते हैं। वर्ष भर की कमाई का एक बड़ा हिस्‍सा देव दीपावली पर ही नौका संचालकों को मिल जाता है। हालांकि, कोरोना संक्रमण काल में इस बार देव दीपावली का वह वैभव भले ही नजर न आए मगर पीएम के आगमन के बाद सरकारी आयोजन सरीखी भव्‍यता इस बार देव दीपावली पर अनोखा अहसास पर्यटकों को कराएगा। इसे देवताओं का दिन भी कहा जाता है। तभी तो ‘देव दीपावली‘ का उत्साह चारों ओर दिखाई देता है। कार्तिक माह के प्रारंभ से ही दीपदान एवं आकाश दीप प्रज्जवलित करने की व्यवस्था के पीछे धरती को प्रकाश से आलोकित करने का भाव रहा है, क्योंकि शरद ऋुतु से भगवान भास्कर की गति दिन में तेज हो जाती है और रात में धीमी। इसका नतीजा यह होता है कि दिन छोटा होने लगता है और रात बड़ी, यानी अंधेरे का प्रभाव बढ़ने लगता है। इसलिए इससे लड़ने का उद्यम है दीप जलाना। दीप को ईश्वर का नेत्र भी माना जाता है। इस दृष्टिकोण से भी दीप प्रज्जवलित किए जाते हैं। इस माह की पवित्रता इस बात से भी है कि इसी माह में ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य आदि ने महापुनीत पर्वों को प्रमाणित किया है। 


त्रिपुरासुर का भगवान भोलेनाथ ने किया वध 

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इस माह किये हुए स्नान, दान, होम, यज्ञ और उपासना आदि का अनन्त फल है। इसी पूर्णिमा के दिन सायंकाल भगवान विष्णु का मत्स्यावतार हुआ था, तो इसी तिथि को अपने अत्याचार से तीनों लोकों को दहला देने वाले त्रिपुरासुर का भगवान भोलेनाथ ने वध किया। उसके भार से नभ, जल, थल के प्राणियों समेत देवताओं को मुक्ति दिलाई और अपने हाथों बसाई। काशी के अहंकारी राजा दिवोदास के अहंकार को भी नष्ट कर दिया। इसीलिए काशीपुराधिपति बाबा विश्वनाथ का एक नाम त्रिपुरारी भी है। त्रिपुर नामक राक्षस के मारे जाने के बाद देवताओं ने स्वर्ग से लेकर काशी में दीप जलाकर खुशियां मनाई। तभी से तीनों लोकों में न्यारी काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवताओं के दीवाली मनाने की मान्यता है। देवताओं ने ही इसे देव दीपावली नाम दिया। कहते है उस दौरान काशी में भी रह रहे देवताओं ने दीप जलाकर देव दीपावली मनाई। तभी से इस पर्व को कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर काशी के घाटों पर दीप जलाकर मनाया जाने लगा। इस दिन घाटों की दीए देखने के बाद अद्भुत, अकल्पनीय, अविस्मरणीय, आनंदकारी, अद्वितीय, अलौकिक, अविश्वसनीय जैसे सारे शब्द कम पड़ जाते है। इस दिन कार्तिक पूर्णिमा के चंद्र की धवल किरणें गंगा की लहरों पर अठखेलियां कर रही होती है तो दूसरी ओर घाट की सीढ़ियों पर रोशन लाखों दीपक सितारों की फौज के धरती पर उतर आने का आभास करा रहे होते है। गंगा की लहरों पर हिचकोले खाती, सजी-धजी नौकाओं पर यह नजारा देखते ही बनता है। अस्सी से राजघाट के बीच घाट पर बने मठों, मंदिरों, महलों, शिवालों हर लम्हा रंग बदलती रोशनी और घाटों पर जगमग दीपकों के प्रतिबिंब गंगा की लहरों पर पड़ कर अलग ही चित्र संरचना कर रहे होते है। गंगा की लहरों पर पड़ती सतरंगी रोशनी, जलधारा पर तैरती चंद्रकिरणों के साथ मिल कर कभी जल में तैरते इंद्रधनुष सी नजर आती तो कभी गंगा की लहरों पर प्रवाहित हो रहे दीप गंगा में आकाश गंगा जैसी अनुभूति करा रहे होते है। ऐसा प्रतीत होता मानो सुनहरी और रूपहली किरणधाराएं सैकड़ों टिमटिमाते सितारों के बीच से होकर गुजर रही है। मान्यता है कि इस दिन देवताओं का पृथ्वी पर आगमन होता है। इस प्रसन्नता के वशीभूत दीये जलाये जाते हैं। वैसे भी इस समय प्रकृति विशेष प्रकार का व्यवहार करती है, जिससे सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है और वातावरण में आह्लाद एवं उत्साह भर जाता है। इससे समस्त पृथ्वी पर प्रसन्नता छा जाती है। पृथ्वी पर इस प्रसन्नता का एक खास कारण यह भी है कि पूरे कार्तिक मास में विभिन्न व्रत-पर्व एवं उत्सवों का आयोजन होता है, जिनसे पूरे वर्ष सकारात्मक कार्य करने का संकल्प मिलता है। 


गंगा आरती में कन्‍याएं भी होंगी शामिल

इस बार देव दीपावली के मौके पर पांच कन्‍याएं भी गंगा आरती करेंगी और मां गंगा की आरती के दौरान आधी दुनिया का भी प्रतिनिधत्‍व होगा। वेद, विज्ञान, सभ्यता एवं संस्कृति की राजधानी विशेश्वर विश्वनाथ की नगरी में कन्याएं मां गंगा की महाआरती करेंगी। गंगोत्री सेवा समिति, वाराणसी के दिनेश शंकर दुबे ने इस बाबत जानकारी दी है कि गंगा आरती के इतिहास में पहली बार पांच कन्याएं आरती करेंगी। इस वर्ष काशी में गंगा आरती की शुरुआत करने वाले बाबू महाराज की तीसरी पीढ़ी की एक पुत्री और एक पुत्र भी महाआरती का नेतृत्व करेंगे। काशी के विद्वानों की सहमति के यह निर्णय लिया गया है। बताया कि इस बाद देव दीपावली के मौके पर पांच कन्याएं आरती करेंगी, वहीं उनके अलावा 21 बटुक और उनके साथ 42 रिद्धि सिद्धि की सहभागिता होगी। इस दौरान 108 किलो अष्ट धातु की मां गंगा की चल प्रतिमा का 108 किलो फूल से महाश्रृंगार किया जाएगा। पांच कन्याओं के अलावा 21 बटुक और 42 रिद्धि-सिद्धि महाआरती में शामिल होंगी। 


1986 में हुई शुरुवात 

काशी की देव दीपावली अब वैश्विक रुप ले चुकी है। गंगा के जिन नयनाभिराम आरती को देखने देश विदेश से सैलानी जुटते हैं उसी गंगा आरती को पहली बार पांच बेटियों की अगुवाई में करने की परंपरा अनोखी साबित होने जा रही है। सन 1996 में पहली बार दशाश्वमेध घाट पर गंगोत्री सेवा समिति के बैनर तले पं किशोरी रमन दुबे बाबू महाराज ने अकेले आरती का श्रीगणेश किया था। कालांतर में काशी के कई घाटों पर गंगा आरती का क्रम बढ़ता गया। इस बार 19 अक्टूबर (शुक्रवार) को सायंकाल पांच बजे गंगोत्री सेवा समिति, दशाश्वमेध घाट द्वारा देवदीपावली पर भव्य महाआरती का आयोजन किया जाएगा। इस वर्ष महा आरती के बड़े आकर्षण में पांच कन्याओं द्वारा आरती की जायेगी। काशी में गंगा आरती की शुरुआत करने वाली गंगोत्री सेवा समिति एक बार फिर महिला सशक्तिकरण और सम्मान के तहत बेटियों द्वारा गंगा आरती कराई जाएगी। इसी दिन पिछले एक महीने से (कार्तिक पूर्णिमा) चली आ रही पुलिस और पीएसी के उन वीर जवानों की याद में जो अपने कर्तव्य परायण का निर्वहन करते हुए आकस्मिक निधन को प्राप्त हुये, उन्हीं शहीद पुलिस, पी.ए.सी कर्मियों के वीर जवानों के आत्मिक शान्ति के निमित जल रहे आकाशदीप आयोजन का समापन भी किया जाएगा। 


15 लाख दीयों से रौशन होंगे घाट 

देव दीपावली के पर्व पर घाट, कुंड, गलियां और चौबारे दीपों से रौशन होंगे। साथ ही घाटों पर लेजर शो दिखेगा। वहीं, पहली बार कन्याएं मां गंगा की आरती उतारेंगी और 108 किलो फूल से श्रंगार किया जाएगा। जी हां, देव दीपावली की रात शिव की नगरी का नजारा देवलोक का आभास कराएगा। घाट, कुंड, गलियां, चौबारे और घर की चौखट दीयों की रौशनी से जगमग होगी। अस्सी से राजघाट तक 84 घाटों के बीच 22 से अधिक जगहों पर गंगा आरती का आयोजन किया जाएगा। शहर से लेकर गांव, घाट और नदियों के किनारों को रौशनी से सजाने की तैयारियां है। चेतसिंह घाट, राजघाट पर लेजर दिखाया जाएगा। साथ ही गंगा घाट 15 लाख दीयों से जगमग होंगे।


रंगोली होगी आकर्षण का केंद्र 

उत्तरवाहिनी गंगा के तट से लेकर वरुणा के किनारे दीपमालिकाओं की मणिमाला से रौशन होंगे। दीपों से सजी भव्य रंगोलियों की अनगिनत शृंखलाएं चौरासी गंगा घाटों पर आकर्षण का केंद्र होंगी। इसमें अस्सी, भदैनी, तुलसीघाट, शिवाला, हरिश्चंद्र, शंकराचार्य घाट, दशाश्वमेध, अहिल्याबाई, ललिताघाट, पंचगंगा घाट, सिंधिया घाट, मणिकर्णिका घाट प्रमुख हैं।


इंडिया गेट तैयार, 51 कन्याएं उतारेंगी आरती

गंगा सेवा निधि के अध्यक्ष सुशांत मिश्र ने बताया कि दशाश्वमेध घाट पर महाआरती का आयोजन किया जा रहा है। शहीदों की याद में इंडिया गेट की रेप्लिका का भी निर्माण कराया जा रहा है। राष्ट्र के अमर योद्धाओं को समर्पित आरती में एक संकल्प गंगा किनारे के माध्यम से लोगों को स्वच्छता की शपथ दिलाई जाएगी। देव दीपावली पर मां गंगा की महाआरती में नारी शक्ति की अद्भुत तस्वीर भी देखने को मिलेगी। इस वर्ष भव्य देव दीपावली के अवसर पर आयोजित होने वाली भव्य महाआरती का प्रारंभ 51 कन्याओं द्वारा मां गंगा की आरती से किया जाएगा।


शहीद सैनिकों के परिजनों को दी जाएगी सहायता राशि

शहीद सैनिकों को भागीरथी शौर्य सम्मान और परिजनों को 51-51 हजार रुपये की सहायता दी जाएगी। देव दीपावली के मुख्य अतिथि गंगा टास्क फोर्स के लेफ्टिनेंट जनरल राना और विशिष्ट अतिथि अनुराधा पौडवाल होंगी। 21 ब्राह्मणों द्वारा भगवती मां गंगा का वैदिक रीति से पूजन किया जायेगा। राम जन्म योगी द्वारा शंखनाद किया जाएगा। गंगा सेवा निधि के 21 ब्राह्मण, दुर्गा चरण इंटर कॉलेज की 42 कन्याएं रिद्धि-सिद्धि के रूप में ब्राह्मणों के साथ होंगी। श्री काशी विश्वनाथ डमरु दल के पांच स्वयं सेवकों द्वारा मां भगवती की भव्य महाआरती आरंभ होगी एवं 51 हजार दीपों से घाट व घाटों के भवनों का कोना-कोना जगमग हो उठेगा।





-सुरेश गांधी-

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