यह तो थी जम्मू-कश्मीर की बात। उधर, शानदार 'लुटियंज़ बंगलो ज़ोन' (एलबीजेड) नई दिल्ली की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है।यह एक ऐसा पॉश इलाका है जहां अपने रसूख और दमखम से कई-सारे केंद्रीय मंत्रियों, सांसदों, नौकरशाहों,कलाजगत की हस्तियों,ख्यातनामा पत्रकारों आदि ने समय-समय पर अपने नाम पर बंगले अलॉट करवाए थे और समयावधि पूरी हो जाने के बाद भी खाली नहीं किए। दरअसल,ये लोग सरकार के खासमखास रहे हैं और सरकार के ‘स्तवन’ की एवज में उन्हें ये सस्ते,सुंदर और आरामदायक रिहाइशें नज़राने के तौर पर बख्शी गईं।चस्का ऐसा लगा कि अब इन रिहाइशों को ये ‘भद्रजन’ छोड़ नहीं रहे। अगर किसी साधारण राज्य कर्मचारी ने इस तरह की गुस्ताखी की होती यानी सरकारी आवास खाली न किया होता तो प्रशासन द्वारा कब का ही उसे घसीटकर बोरिया-बिस्तर समेत बाहर का रास्ता दिखा दिया गया होता।इसे क्या कहा जाए?सरकार की दुर्बलता या मंत्रियों-नौकरशाहों का दबंगपन? साल-भर पहले की एक रिपोर्ट के अनुसार राजधानी दिल्ली में 576 सरकारी बंगलों पर रिटायर्ड अधिकारियों और पूर्व सांसदों के अवैध कब्जे को लेकर नाराजगी जाहिर करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी।कोर्ट ने दो सप्ताह के भीतर उन्हें खाली करने का आदेश देते हुए कहा था कि कब्जाधारियों से बकाया वसूल किया जाए। कोर्ट ने यहां तक कहा था कि यदि कोई बंगला खाली नहीं करता है तो दो सप्ताह के इंतजार के बाद उसका सारा सामान सड़क पर फिंकवा दिया जाए।
ये तो मात्र जम्मू-कश्मीर और दिल्ली की दो घटनाएं हैं।संभव है कि देश के अन्य राज्यों में भी इसी तरह के खासे उदाहरण मौजूद हों।विडंबना देखिए कि देश के ये कर्णधार और जनतंत्र के प्रहरी जिन्हें देशवासी परम पूजनीय और नैतिकता का मॉडेल मानकर चलते हैं,समय पड़ने पर कैसे स्वयं नैतिक-मूल्यों को ताक में रखकर उनसे समझौता करते हैं। अपने हित-साधन और स्वार्थ पूर्ति के लिए ऐसे ‘भद्रजन’ कोई-सा भी अनुचित कार्य करने को तैयार रहते हैं।दुर्भाग्य यह है कि उनके इस दोहरे आचरण को भोली जनता समझ नहीं पाती। एक प्रसंग याद आ रहा है। हमारे मिलने वाले एक सज्ज्न एक दिन मेरे पास मिलने के लिये आये।उन्होंने अपनी बेटी की एम0बी0ए की पढ़ाई के लिए किसी बैंक से दोलाख रुपये का लोन लिया था। बेटी की पढ़ाई खत्म तो हो गयी मगर उसकी अभी तक नौकरी लगीनहीं । बैंक ऋण कीराशि लौटाने के लिए नोटिस पर नोटिस भेज रहा है। ये सज्जन परेशान हैं। आय के स्रोतसीमित हैं। बेटी की नौकरी अभी लगी नहीं है, ऊपर से बेटी कीशादी भी करनी है। कर्ज़ा लौटाएं तो कैसे? जब उनको पता चला कि माल्या साहब अरबों रुपये डकार कर देश से भाग गए और उनका बाल भी बांका नहीं हुआ तो उन्हें लगा कि उनके साथ भी रियायत बरती जानी चाहिये।आखिर वे भी तो इसी देश के नागरिक हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि बड़ा आदमी जब नियमों की अवहेलना करता है तो छोटे आदमी को नियम न मानने का बहाना मिल जाता है। गंगाजी में पानी ऊपर से नीचे आता है, नीचे से ऊपर नहीं जाता।
(डॉ० शिबन कृष्ण रैणा)
संप्रति दुबई में
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