बता दे कि समाज सुधारक हरबिलास शारदा ने वर्ष 1927 में ब्रिटिश सरकार को बाल विवाह पर अंकुश लगाने का कानून में लड़कियों के विवाह की आयु बढ़ाकर 14 वर्ष कर दी गई, वहीं लड़कों की आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई.बाद में इस कानून में संशोधन कर लड़कियों की विवाह की आयु 18 वर्ष एवं लड़कों के विवाह की आयु 21 वर्ष कर दी गई. इस कानून को ‘शारदा अधिनियम’ (Sharda Act) के नाम से जाना जाता है. यह कानून 1 अप्रैल 1930 को देश में लागू हुआ और यह केवल हिंदुओं के लिए ही नहीं बल्कि सभी धर्म के लिए था. हालांकि यह एक समाज सुधारक बिल था, लेकिन सभी धर्म अनुयायियों ने इसका समर्थन किया.साल 2006 में यूपीए सरकार ने शारदा एक्ट को बदल कर नया एक्ट पास किया. इसका नाम बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 रखा गया.इस कानून की नींव शारदा एक्ट से ही पड़ी है. इन दिनों दीघा थाना पुलिस ने दीघा मुसहरी को दर्शनीय स्थान में तब्दील कर दिया है.यहां प्रत्येक दिन दर्शन देना अनिवार्य है.एक सामाजिक कुरीति शराब पर ही सरकार व पुलिस का फौकस है.दूसरी कुरीति बाल विवाह पर ध्यान पुलिसिया नजर नहीं है.ज्ञातव्य है कि वर्ष 2006 में, संसद ने 1929 के अधिनियम और उसके बाद के संशोधनों को निरस्त करते हुए "बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006" पारित किया.वर्तमान कानून- बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 तीन उद्देश्य को पूरा करता है: बाल विवाह की रोकथाम, बाल विवाह में शामिल बच्चों की सुरक्षा और अपराधियों पर मुकदमा चलाना.
कौन थे हरबिलास शारदा
हरबिलास शारदा एक शिक्षाविद, न्यायाधीश, राजनेता एवं समाज सुधारक थे.शारदा का जन्म 3 जून 1867 को अजमेर (राजस्थान) के एक सम्पन्न माहेश्वरी परिवार में हुआ था.उनके पिता हरिनारायण शारदा वेदांती थे और उन्होंने राजकीय महाविद्यालय, अजमेर में बतौर लाइब्रेरियन काम किया.हरबिलास ने 1889 में गवर्नमेंट कॉलेज, अजमेर में शिक्षक के रूप में काम शुरू किया था. 1892 में अजमेर-मेरवाड़ा प्रांत के न्यायिक विभाग में कार्य किया.1894 में वह अजमेर के नगर आयुक्त बने.1923 में उन्हें अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश बनाया गया.वह दिसंबर 1923 में सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हुए.1925 में उन्हें मुख्य न्यायालय जोधपुर का वरिष्ठ न्यायाधीश नियुक्ति किया गया.उनका राजनीतिक सफर भी शानदार रहा, 1924 में शारदा को केंद्रीय विधान सभा का सदस्य चुना गया. हरबिलास शारदा बचपन से ही हिंदू समाज सुधार के कार्यों में अपना सहयोग करते थे एवं हिंदू सुधारक दयानंद सरस्वती के अनुयायी थे और आर्य समाज के सदस्य थे.
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