जसिंता केरकेट्टा एक ऐसी कवियित्री है जिनकी कविताएं आदिवासियों के संघर्ष और प्रकृति से जुड़े उनके अलग नजरिए पर बात करते हुए भी पूरे मनुष्य जगत के संघर्षों की बात करती हैं। उन्होंने आदिवासी जगत की सच्ची और निर्मल अनुभूतियों और उनकी पीड़ाओं तथा उनसे जूझने के साहस को नए शब्द और व्यंजनाएँ दी हैं। उनके सृजन में वैश्विक दृष्टिकोण है इसलिए बहुत ही कम समय में उनकी कविताओं ने अंतर्राष्ट्रीय पहचान हासिल की है। वे दुनिया भर में पढ़ी जा रहीं हैं तथा कई देशों के अलग अलग विश्वविद्यालयों में उनकी कविताएं पढ़ाई जा रहीं हैं। जसिंता ने हिंदी साहित्य को सार और रूप दोनों तरह से समृध्द किया है, विवेकवान बनाया है । जसिंता उरांव आदिवासी समुदाय से हैं। हिंदी में कविताएं लिखती हैं। अब तक उनके दो कविता संग्रह प्रकाशित है। पहला कविता संग्रह " अंगोर " आदिवाणी , कोलकाता से और "जड़ों की ज़मीन " भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली से प्रकाशित है। पहले संग्रह का अनुवाद संथाली, इंग्लिश, जर्मन, इतालवी, फ्रेंच में भी प्रकाशित है। तीसरा संग्रह "ईश्वर और बाज़ार " राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशाधीन है। 2020 में उन्हें हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने उनके अनुभवों को सुनने-जानने के लिए आमंत्रित किया। 2014 में एशिया इंडीजिनस पीपुल्स पैक्ट, थाइलैंड ने उन्हें वॉयस ऑफ एशिया के रिकॉगिनेशन अवार्ड से सम्मानित किया। वर्तमान में वे मध्य भारत के आदिवासी इलाकों में घूम घूम कर स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता करती हैं। आदिवासियों की भाषा, संस्कृति के संरक्षण और आदिवासी लड़कियों की शिक्षा के लिए गांवों में सामाजिक काम भी करती हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ आलोचक एवं साहित्यकार प्रो विजय बहादुर सिंह ने सरोज जी को समाज के सच को उजागर कर मनुष्यता को रास्ता दिखाने वाला कवि बताया । उनका एक एक शब्द मारक और अर्थवान था जो सदियों तक प्रासंगिक रहेगा । उन्होंने कहा कि आज के समय में सच बोलना ही सबसे जरूरी साहित्य कर्म है। दोनों सम्मानित रचनाकार भी बोले । और अपनी रचनाओं का पाठ किया । विष्णु नागर और जेसिंता केरकेट्टा के अलावा अतुल अजनबी (ग्वालियर) मालिनी गौतम (गुजरात) ने भी रचना पाठ किया । संचालन युवा रचनाकार शेफ़ाली शर्मा (छिंदवाड़ा) ने किया । कार्यक्रम की शुरुआत में न्यास की सचिव मान्यता सरोज ने कहा कि इस आयोजन की निरंतरता पर कईयों को आश्चर्य है । ईमानदारी की बात कहें तो हमे भी अचरज है । मगर सपना सरोज बन गया और मशहूर है । उसकी वजह ग्वालियर की सांस्कृतिक साहित्यिक परम्परा और सरोज जी के साथ सबका नेह है । जब तक यह है तब तक यह आयोजन जीवित रहेंगे । उन्होंने कहा कि अनेक शुभचिंतक पूछते हैं कि पैसा कहां से आता है । न्यास का सीक्रेट यह है कि उसके पास अधिक पैसा कभी रहा नहीं और आयोजन के लिए कभी कम पड़ा नहीं । पैसे के लिए कभी किसी मठ, संस्थान या कारपोरेट के आगे हाथ नही फैलाये गये । तय करके किया गया कि पूंजी की गटर और धनपशुओं के अस्तबल से कभी कुछ नही लिया जाएगा । सरोज जी का कार्यक्रम है उन्ही के अंदाज में किया जाएगा । उन्होंने कहा कि यह मेहनत के पसीने का आयोजन है जिसके घट में कोई चोंच भरकर तो कोई अंजुरी भर कर पानी लाया है ताकि आग बुझाई जा सके, मनुष्यता हरियाई जा सके जनकवि मुकुट बिहारी सरोज स्मृति सम्मान से अभिनंदित होने के बाद विष्णु नागर जी ने सम्मान निधि में अपनी तरफ से 1000 रुपये की राशि जोड़कर उसे देश के किसान आंदोलन के लिए समर्पित कर दिया। अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव बादल सरोज को मध्यप्रदेश किसान सभा के नाम से चैक सौंपते हुए अपने सामाजिक सरोकारों और उनके प्रति दृढ संकल्पबद्धता के लिए पहचाने जाने वाले विष्णु नागर ने कहा कि वे अपनी तरफ से शुभकामनाओं के साथ इस ऐतिहासिक आंदोलन में अपना कुछ योगदान भी जोड़ना चाहते हैं। किसान सभा ने विष्णु नागर जी की भावनाओ तथा योगदान के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की है।
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