नीतीश कुमार कह रह हैं कि इस यात्रा के जरिए शराब के दुष्प्रभावों से लोगों को अवगत कराया जाएगा. हमारी पार्टी बहुत पहले से मांग करती आई है कि शराब के दुष्प्रभावों से लोगों को अवगत कराने हेतु सरकार को सभी राजनीतिक-सामाजिक दलों का समर्थन लेना चाहिए और इसे एक सामाजिक जागरण का विषय बनाया जाना चाहिए. शराब की लत की जकड़ में पड़े लोगों के लिए नशामुक्ति केंद्र व्यापक पैमाने पर खोलने चाहिए. राजनेता-प्रशासन-शराब माफिया गठजोड़ की जांच करानी चाहिए, लेकिन नीतीश कुमार इन सभी सुझावों से लगातार भागते रहे हैं. सामाजिक जागरण का विषय बनाने की बजाए सरकार ने शराबबंदी की आड़ में दलित-गरीबों पर हमला बोल दिया है. लाखों लोगों को उठाकर जेल में डाल दिया है. उन परिवारों के लिए किसी भी प्रकार के वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था नहीं की गई है. ऐसे में भला उन गरीब परिवारों को कैसे उबारा जा सकता है?
महिलाओं को लगातार हमलों का शिकार होना पड़ रहा है. मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड को पूरे बिहार ने देखा व समझा है, जहां मासूम बच्चियों के साथ दरिंदगी की गई. आए दिन बलात्कार व महिला हिंसा की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है. आखिर यह क्यों हो रहा है? जाहिर सी बात है कि अपराधियों को आज किसी भी प्रकार का भय नहीं रह गया है. उन्हंे कानून-व्यवस्था का कोई डर नहीं रह गया है. सामान्य अपराध भी तेजी से बढ़ा है. सरकार को सबसे पहले यह सोचना चाहिए कि ‘सुशासन’ का उनका नरेटिव आज पूरी तरह ध्वस्त क्यों हो गया है, और बिहार पुलिस व अपराधी राज में क्यों तब्दील हो गया है? यदि सरकार कानून का राज स्थापित ही नहीं कर सकती, फिर समाज मंे अपराध, हिंसा आदि का बढ़ना स्वभाविक है, जिसकी मार अल्पसंख्यकों-महिलाओं-दलितों-गरीबांे पर ही पड़ेगी. दलितों-गरीबांे के जीवन में यदि बदलाव लाना है, तो उनकी जिंदगी की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करना ही होगा. लेकिन न तो सरकार ने गरीबों को वास के लिए जमीन उपलब्ध करवा सकी, न रोजगार और न ही शिक्षा. शिक्षा की हालत तो राज्य में लगातार बद से बदतर होते गई है. शिक्षकांे का भारी अभाव है. विद्यालय के भवन नहीं है और यहां तक कि विद्यालयों को बंद किया जा रहा है. यदि स्कूल नहीं होंगे, शिक्षक नहीं होंगे, तब बच्चे पढ़ाई कैसे कर पायेंगे? और यदि उनकी पढ़ाई नहीं होगी तो उन्हें बाल मजदूरी करने से भी नहीं रोका जा सकता है. इसलिए, हमारी पार्टी की मांग है कि यदि नीतीश कुमार बिहार में सचमुच का कोई सुधार चाहते हैं, तो सबसे पहले तो उन्हें भाजपा से अपने रिश्तों के बारे में सोचना चाहिए और फिर ईमानदारी से दलित-गरीबांे, महिलाओं, कामकाजी तबके लिए योजनाओं का क्रियान्वयन करना चाहिए.
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