पटना 18 दिसंबर, अम्बा/कुटुंबा प्रखंड के डुमरी पंचायत के मुखिया पद के लिए चुनाव लड़ने वाले सिंघना गांव निवासी बलवंत कुमार सिंह जिन का चुनाव चिन्ह बैगन छाप था, खरांटी गांव के चार महादलित नौजवानों को पैसा लेने के बाद वोट नहीं देने के आरोप में न केवल आधे घंटे तक उठक - बैठक कराया, बल्कि थूक गिरा कर कटवाने का घृणित काम भी किया. यह घटना उस समय घटी जब पूरा विश्व नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए मानवाधिकार दिवस के रूप में मना रहा था. उसी दिन 10 दिसम्बर 2021 को अहले सुबह करीब 7 या 8 बजे ‘दास प्रथा’ एवं ‘सामंती युग’ में दिए जाने वाले सजा और जुलुम अत्याचार का नमूना पेश किया जा रहा था. यह सब सुशासन की सरकार में चल रहा था. जबकि सुशासन की सरकार को महादलित से लेकर वैसे बाबू लोगों का भी समर्थन हासिल है जिन बाबुओं के द्वारा महादलितों पर जुल्म अत्याचार किए जा रहे हैं. नीतीश बाबू की यह इंजीनियरिंग गजब का है. नीतीश कुमार के सामाजिक मैनेजमेंट ने महादलित, अति पिछड़ा से लेकर ऊपर के क्रीम वाले लोगों का भी समर्थन हासिल कर लिया है, लेकिन दलित-गरीबों को मान-सम्मान और उन्हें सत्ता का कोई भी है अवसर उनके पास तक नहीं पहुंच पा रहा है. सामाजिक स्तर पर जो बनावट है, सामंती उत्पीड़न का विभिन्न तरीका आज भी बदस्तूर जारी है. क्या सामाजिक स्तर पर बलवंत सिंह के समकक्ष लोगों को चुनाव में दिया गया पैसा के एवज में वोट नहीं देने की आशंका के आधार पर ऐसी घटना कर सकते थे ? महादलित मुसहर जाति के साथ किया गया घिनौना व बर्बर घटना करने वाले बलवंत सिंह को न तो कानून का खौफ था, नहीं सुशासन का भय ही. संविधान के अधिकारों की धज्जियां उड़ाना तो इन लोगों के लिए आम बात हो गया है. जैसे सारा अधिकार हासिल किया दुनिया का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति को जुलूम - अत्याचार करने से लेकर गाली-गलौज, मार-काट के अलावे न जाने कौन-कौन से उत्पीड़न की घटनाएं घटाने के लिए इनके लिए जन्म सिद्ध अधिकार हासिल हो गया है. तभी तो बिना खौफ के इस तरह की घटना घटा दी गई. दरअसल ऐसी घटना घटाने वाले दबंगों को सत्ता का संरक्षण विभिन्न खतरनाक घटनाओं में भी साफ तौर पर मिलते रहा है तो मनोबल बढ़ना लाजमी है. नीतीश बाबू के ही राज में तो यह संदेश सत्ता के द्वारा दिया जा चुका है. लिहाजा, इन लोगों के द्वारा किसी भी तरह के जुलूम - अत्याचार करने की सजा क्या मिलेगी इन्हें पूरा मालूम है. इसीलिए बेखौफ होकर घटना घटाते हैं और विडिओ बनाकर अपनी क्रूरता का संदेश गरीबों, दलितों और अल्पसंख्यकों को देते रहते हैं. मॉब लॉन्चिंग के अनगिनत घटनाये हमलोगों के सामने है.
नीतीश सरकार के राज में एक भी वैसे हत्याकांड के हत्यारों को सजा दिलाना संभव नहीं हुआ. बाथे, बथानी, शंकर बिगहा, मियांपुर से लेकर अभी तक जितने भी बड़े बड़े गरीबों के जनसंहार हुए सारे के सारे हत्यारे बाइज्जत बरी कर दिए गए. तो इस तरह के थूक चटाने वाले, उठक-बैठक कराने वालों को यह सरकार कौन सी सजा देगी ! उन्हें मालूम है. इसीलिए बेखौफ होकर ये लोग दलित-गरीबों के ऊपर जुल्म-अत्याचार करते हैं. अभी तो इन लोगों का इतना मनोबल बढ़ गया है की चुनाव में जीतने वाले प्रतिनिधियों को हराना मुश्किल हो गया है तो दबंगों, उन्मादी ताकतों द्वारा हत्या करना शुरू कर दिया जा रहा है. असहमति के विचार वालों को सत्ता व वही उन्मादी ताकतों द्वारा जो गांवों में अपना जुर्म की घटनाएं घटाते रहे हैं, हमले किए जा रहे हैं. अब दलित- गरीबों की आवाज उठने लगी है तो उसको दबाने के लिए केंद्रित करते हुए नेतृत्वकर्ता पर हमले तेज कर दिया गया है. भाजपा के उन्मादी विचारधारा के तहत असहमति के विचारों, नागरिक अधिकारों, संविधान, लोकतंत्र पर हमले बदस्तूर जारी है. 10 दिसम्बर 2021 समय करीब 7 या 8 बजे की घटना : डुमरी पंचायत के सिंघना गांव निवासी बलवंत कुमार सिंह ने खरांटी गांव के 4 मुसहर जाति के नौजवानों को फोन पर खबर देकर बगल के गांव फैजा बीघा में वोटों की गिनती के पहले ही वोट नहीं देने के आरोप में मार-पीट, उठक-बैठक तक करवाया. बलवंत सिंह को जब यह एहसास हो गया कि उसकी जीत पक्की नहीं है, चुनाव में किए गए खर्च को वसूलने के लिए यह
1. मंजीत भुइंया (18 वर्ष) पिता रू रामसूरत भुइंया, 2. अनिल भुइंया (35 वर्ष) पिता रू सिरतन भुइंया, 3. कमलेश भुइंया (25 वर्ष) पिता रू राम सेवक भुइंया 4. अरविंद भुइंया(18 वर्ष )पिता रू सतेंद्र भुइंया को बलवंत सिंह ने आधे घंटे से भी ज्यादा समय तक उठक-बैठक करवाया और मंजीत भुइंया को थूक तक चटवाया, चुनाव में दिया गया रुपए वसूल भी लिए. यानि वोट भी ले लिया जैसा कि सभी पीड़ित लोगों ने जांच टीम को बताया, उठक- बैठक भी करवाया और थूक भी चटवाया यह बहुत ही पीड़ादायक घटना है. जांच टीम के सामने मंजीत, अनिल एवं खरांटी के भारी संख्या में आये गरीबों ने बलवंत सिंह द्वारा किए गए अत्याचार का आप बीती बताया. उनलोगों ने बताया कि उन लोगों को बलवंत सिंह के द्वारा तीन-तीन हजार रुपए चुनाव में खर्च के लिए दिए गए थे. चारो लोग बलवंत सिंह को ही वोट भी दिए थे. जब चारो पीड़ित लोगों बलवंत सिंह ने पिटाई व उठक बैठक के लिए दबाव बगल के गांव बैजा बिगहा में बनाने लगा तो अनिल, मंजीत, अरविंद एवं कमलेश भुइंया ने जोर देकर कह रहे थे कि अभी गिनती शुरू भी नहीं हुआ और उनलोगों पर वोट नहीं देने का आरोप कैसे लगा सकते हैं. मेरा वार्ड से उनलोगों का वोट नहीं निकलेगा तब कोई कार्रवाई करेंगे. लेकिन उसने एक नहीं मानी. केंद्र व राज्य सरकारें आजादी के 75 वें अमृत महोत्सव मना रही है. लेकिन औरंगाबाद जिले के सुदूर इलाके के गांवों में न तो कोई सरकारी सुविधा ही हासिल है और नहीं सामाजिक सुरक्षा ही. इस घटना से सरकार सबक नहीं लेती है तो केवल कागज पर विकास व सामाजिक सुरक्षा की बात रह जायेगी.
खरांटी गांव के गरीबों की स्थिति रू 40 से 45 घर मुसहर जाति, 20 से 25 घर रविदास, 4 घर पासवान, 7 घर पासी जाति के परिवार रहते हैं. रविदास टोला थोड़ा सा अलग है. शेष परिवार एक ही जगह बसे हैं. दलित परिवारों में शादी होते ही अलग- अलग परिवार रहने लगते हैं. लिहाजा, कई वैसे परिवार हैं जिन्हें मां-बाप के नाम पर बने अधूरे पक्का मकान, राशन कार्ड में उनकी हिस्सेदारी नहीं होती है और उस गांव के कई परिवारों को पक्का मकान व राशन कार्ड नहीं उपलब्ध है. वैसे बुजुर्ग महिला-पुरुष भी मिले जिनके अंगुलियों की रेखा घिस जाने के कारण उन्हें भी राशन नहीं मिलता है. कुल मिलाकर इस गांव में सभी परिवार को पक्का मकान और राशन भी मय्यसर नहीं है. ज्यादातर पक्का मकान पूर्ण नहीं बना है. डोर लेवल तक बना पक्का मकान को करकट से छत बना कर रहने को विवश हैं. गांव में एक भी घर में शौचालय निर्माण नही हुआ है. लेकिन सरकार ने तो सभी पंचायत को ओडीएफ घोषित कर दिया है. यानि कागज पर शौचालय निर्माण हुए और कागज पर ही ओडीएफ भी घोषित कर दिया गया. यही हाल नल-जल का है. एक भी नल चालू नहीं देखा. आजादी के 75 साल के बाद भी सुलभ शिक्षा की व्यवस्था नहीं की गई. गांव में कोई प्राथमिक विद्यालय नहीं है. खरांटी गांव से करीब 3 से 4 किलोमीटर दूर बैजा बिगहा बच्चों को पढ़ने जाना पड़ता है. दूर होने के कारण ज्यादातर बच्चे विद्यालय जाते ही नहीं. लिहाजा, गांव में पढ़ाई का कोई माहौल नहीं है. अनपढ़ की संख्या ज्यादा है और नई पीढ़ी के लिए भी कोई उम्मीद नहीं दिखती है. एक खंडहर बना आंगनबाड़ी केंद्र बना है, जिसमें एक भी किवाड़ नहीं है और नहीं और बच्चों को पढ़ाई भी नहीं होती है. बच्चों को पोषक आहार शायद ही मिलता है. गांव के लोगों ने बताया कि कुछ भी नहीं मिलता है. सरकार के द्वारा जिन लोगों के लिए लोक कल्याणकारी योजनाएं संचालित किया जाता है वह जमीनी हकीकत से कोसो दूर है.
जांच टीम की मांग
1. बलवंत सिंह को कड़ी सजा मिले
2. पीड़ित परिवार को 2-2 लाख मुआवजा दिया जाए. सभी परिवारों को सुरक्षा की गारंटी की जाए. सरकार ने पीड़ितों के लिए 50-50 हजार रुपये देने की घोषणा की है. लेकिन अभी तक उनके न तो खातों में आया है और नहीं कोई चेक ही दिया गया है. इसलिए तुरन्त उन्हें 50 हजार रुपये देने की मांग करते हैं.
3. गांव में सभी परिवार को पक्का मकान बनवाया जाए और सभी परिवारों के लिए राशन कार्ड बनवाया जाए, जिन बुजुर्गों के अंगुलियों की रेखाएं घिस गई है उन्हें भी राशन की गारंटी की जाए.
4. खरांटी से 3 से 4 किलोमीटर दूर बच्चों को दूर स्कूल जाना पड़ता है. गांव में प्राथमिक विद्यालय बनाने की मांग करते हैं.
भाकपा माले के पोलित ब्यूरो सदस्य कॉमरेड अमर के नेतृत्व में राज्य स्तरीय जांच टीम जिसमें माले राज्य स्थाई समिति सदस्य और अरवल के विधायक कॉ. महानन्द, माले औरंगाबाद जिला सचिव कॉ. मुनारिक राम, खेग्रामस के कार्यकारी राज्य अध्यक्ष कॉमरेड उपेंद्र पासवान, राज कुमार, बिरजू जी, चंद्रमा जी समेत कई माले के वरिष्ठ नेता की टीम डुमरी पंचायत के खरांटी गांव पहुंची और पीड़ित परिवार से मुलाकात की. पूरे गांव के लोगों से पूरी घटना की जानकारी ली.
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