- नीति आयोग की रिपोर्ट ने एक बार फिर से बिहार में विकास की पोल खोली. एक साल में माले विधायकों का आवास का आवंटन नहीं, आम लोगों का क्या हाल होगा, बिहार में पुलिस व अपराधियों का राज, सुशासन है तार-तार, 4 दिसंबर को बतख मियां की बरसी पर मोतिहारी में कार्यक्रम
पटना 3 दिसंबर, एक साल के लंबे आंदोलन के बाद अंततः मोदी सरकार को झुकना पड़ा और तीनों काले कृषि कानून वापस लेने पड़े. पंजाब और हरियाणा के किसानों का तो यही कहना था कि मंडी व्यवस्था की समाप्ति का दुष्परिणाम हम बिहार में देख चुके हैं. नीतीश जी ने मंडी व्यवस्था को खत्म करके बिहार के किसानों को कहीं का नहीं छोड़ा. यहां किसानों को फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य शायद ही मिलता हो. किसान 1000-1200 रु. प्रति क्विंटल अपना अनाज बिचौलियों के हाथों बेचने को बाध्य हैं. अतः किसान आंदोलन की ऐतिहासिक जीत से सबक लेते हुए नीतीश कुमार को बिहार में, एपीएमसी ऐक्ट की पुनर्बहाली और धान, गेहूं, मक्का, दलहन सहित अन्य फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी करनी होगी. उक्त बातें आज पटना में संवाददाता सम्मेलन में माले महासचिव कॉ. दीपंकर भट्टाचार्य, राज्य सचिव कुणाल, खेग्रामस के महासचिव धीरेन्द्र झा, विधायक दल के नेता महबूब आलम, सत्यदेव राम आदि उपिस्थत थे. 15 वर्षों के ‘न्याय के साथ विकास’ के नीतीश जी के नारे की पोल एक बार फिर से नीति आयोग की रिपोर्ट ने ही खोल दी. है. सरकार को सच्चाई स्वीकार करनी चाहिए, लेकिन यह सरकार ऐसी संवेदनहीन है कि कहती है कि नीति आयोग के मानदंड को ही बदल देना चाहिए. भाजपा ने ही इस आयोग को बनाया है, और उस मानदंड पर भी सरकार कहीं नहीं खड़ी है, बल्कि सबसे पिछली कतार में हैं. यह कैसा विकास है बिहार की जनता को कुछ समझ में नहीं आता. स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर इन तीनों मानदंडों पर बिहार कहीं नहीं टिकता. 51.9 फीसदी आबादी आज भी गरीबी रेखा के नीचे है.
बेरोजगारी, गरीबी, शिक्षा व स्वास्थ्य, कानून व्यवस्था, बिजली, कुकिंग, स्कूलों में छात्रों की भागीदारी, महिला सुरक्षा आदि सभी मानदंडों पर नीतीश जी के शासन में बिहार आज रसातल में चला गया है. और न केवल नीति आयोग बल्कि देश-विदेश के जितने भी प्रतिष्ठित मानक संस्थानों की रिपोर्ट की चर्चा कर लें, हर जगह यही आंकड़ा सामने आता है. एक साल बीत जाने के बाद भी आज तक माले विधायकों को न आवास मिला, न ही हमारे कार्यालय के लिए. सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि बिहार के आमलोगों का क्या हाल होगा? महादलितों को जमीन देने की बड़ी-बड़ी बातें की गईं.लाखों की आबादी नहरों, पइन, नदियों के किनारे ठौर लिए हुए है. सरकार ने हाल ही में एक आंकड़ा जारी किया है जिसमें कहा गया है कि 90 हजार गरीबों को आवास की जमीन उपलब्ध करा दी गई है और अब मात्र 26 हजार लोग बचे हैं. इनके बीच जमीन कितना वितरित की गई - महज 53 एकड़. यह आंकड़ा सचमुच अद्भुत है. मतलब झूठ की भी एक सीमा होती है. लेकिन इस सरकार ने मोदी जी से सीखते हुए झूठ की सारी सीमाओं को लांघ दिया है. अभी हाल में बिहार सरकार का फैसला आया है कि सरकारी जमीन पर बसे लोगों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. हमें पूरा संदेह है कि जैसे जल-जीवन-हरियाली योजना के नाम पर बरसो बरस से बसे गरीबों को उजाड़ा गया, इस बार भी गरीबों को ही निशाना बनाया जाएगा. सरकार भूमाफियाओं पर तो काई कार्रवाई नहीं करती लेकिन गरीबों को हमेशा प्रताड़ित करते रहती है. भाजपा-जदयू सरकार की सरकार अभी अपने 15 साल के शासन का जश्न मना रही थी, लेकिन यह 15 साल राज्य में दलित-गरीबों, मजदूर-किसानों, छात्र-नौजवानों, स्कीम वर्करों, शिक्षक समुदाय आदि तमाम तबके से किए गए विश्वासघात, बिहार को पुलिस राज में तब्दील करने, तानाशाही थोपने और एक बार फिर से सामंती अपराधियों का मनोबल बढ़ाने के लिए ही इतिहास में याद किया जाएगा. समस्तीपुर में सफाईकर्मी रामसेवक राम सहित सुपौल, अररिया, सीतामढ़ी में दलित-गरीबों, आंदोलनकारियों की हत्या बेहद निंदनीय है. कहीं उन्हें पुलिस का हमला सहना पड़ रहा है कहीं दबंगों का. 4 दिसंबर को आजादी के 75 साल जनअभियान के बैनर से बतख मियां की बरसी पर मोतिहारी में कार्यक्रम किया जाएगा और 5 दिसंबर को समस्तीपुर जाकर रामसेवक राम के परिजनों से मुलाकात की जाएगी.
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