इस डैशबोर्ड की जरूरत क्यों पड़ी, इसका जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि दरअसल एक गतिशील डिजिटल डैशबोर्ड से सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों तथा अन्य हितधारकों को यह जानने में आसानी होगी कि प्रदूषण नियंत्रण से सम्बन्धित विभिन्न एजेंसियां किन-कन कार्यों के लिए जिम्मेदार हैं। इसके अलावा नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के लिए औपचारिक निगरानी और मूल्यांकन का कोई तंत्र मौजूद नहीं है। ऐसे में यह डैशबोर्ड सभी लोगों के लिये विभिन्न समयसीमाओं को देखने और क्रियान्वयन के लिये सम्बन्धित अधिकारियों से जानकारी लेने में मदद की एक खिड़की साबित हो सकता है। क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा कि हमें एक ऐसे मंच की जरूरत थी, जहां पर हमें हवा की गुणवत्ता पर जवाबदेही और कार्य के लिए मौका मिल सके। यह ऐसा डैशबोर्ड है जहां डेटा को रचनात्मक रूप से पेश किया जाएगा ताकि कोई भी व्यक्ति उसे आसानी से समझ सके और पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान कर सके। उन्होंने कहा कि भारत के नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) के तहत महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 18 नॉन अटेनमेंट शहर हैं, जहां वर्ष 2024 तक पार्टिकुलेट मैटर के स्तरों में 30% तक की कटौती किए जाने का लक्ष्य है। हालांकि महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के समक्ष पेश किए गए सिटी क्लीन एयर एक्शन प्लांट में क्षेत्रवार उपायों को उन्हें लागू करने की समय सीमा के साथ सूचीबद्ध किया गया है। साथ ही उसमें उस कार्य के लिए जिम्मेदार एजेंसी का भी जिक्र किया गया है। मगर सीईईडब्ल्यू द्वारा हाल में किए गए एक अध्ययन से जाहिर होता है कि महाराष्ट्र के शहरों का ध्यान परिवहन, उद्योग और कचरा जलाने जैसी गतिविधियों से निकलने वाले प्रदूषण को रोकने पर ही है। आरती ने कहा कि सरकारों को नगरीय शासी इकाइयों के साथ मिलकर न सिर्फ विभागों के बीच समन्वय सुनिश्चित करने की दिशा में काम करना होगा बल्कि राज्यों और नगरों को इन योजनाओं में सूचीबद्ध किए गए कार्यों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने के लिए एक निगरानी तंत्र भी बनाना चाहिए ताकि एनसीएपी के तहत निर्धारित लक्ष्यों को हासिल किया जा सके।
रेस्पाइरर लिविंग साइंसेज के संस्थापक रोनक सुतारिया ने कहा कि किसी भी मसले पर काम करने के लिहाज से उसकी कार्य योजना का पहलू बहुत महत्वपूर्ण है। हम एक ऐसी योजना बनाना चाहते थे, जिससे यह जाना जा सके कि चीजें आखिर किस दिशा में बढ़ रही हैं। हम जान सकें कि किन चीजों पर ध्यान दिया जा रहा है। इसके अलावा नियामक के मोर्चे पर क्या हो रहा है। उन्होंने डैशबोर्ड की खूबियों का जिक्र करते हुए कहा कि इस डैशबोर्ड पर हम शहर के स्तर पर और प्रदूषण के स्रोत के स्तर पर चीजों को बेहतर तरीके से देख सकते हैं। हमने सोचा कि सभी स्तरों को एक मंच पर लाया जाए ताकि हमें एक समग्र तस्वीर मिल सके। इससे हमें सरकार द्वारा किए जा रहे प्रदूषण नियंत्रण से जुड़े कार्यों का भी जायजा मिल सकेगा। यह पता लगेगा कि सरकार वायु प्रदूषण को कम करने के लिए किन-कन बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित कर रही है। रोनक ने बताया कि इस डैशबोर्ड में एक सर्च बॉक्स दिया गया है जिसमें हम गूगल की तरह जाकर चीजों को सर्च कर सकते हैं। अगर आप एक कंस्ट्रक्शन एक्सपर्ट हैं और आप प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन को कम करने की सरकार की नीतियों और रणनीतियों के बारे में जानना चाहते हैं तो आप उससे सम्बन्धित कीवर्ड को डैशबोर्ड के सर्च बॉक्स में डालकर सर्च कर सकते हैं और जान सकते हैं कि सरकार ने उससे संबंधित क्या-क्या नियम और कायदे बना रखे हैं। उन्होंने बताया कि इसके अलावा आप अलग-अलग इलाकों में किए जा रहे कार्यों और उनसे संबंधित प्रावधानों के बारे में भी जान सकेंगे। इससे विभिन्न कार्यों के बीच में अधिक अर्थपूर्ण संपर्क स्थापित किए जा सकेंगे और इसे बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंचाया जा सकेगा। इससे अधिक मात्रा में सूचनाओं को ढूंढा जा सकता है और उन्हें साझा भी किया जा सकता है। सवाल यह है कि आम आदमी को किस तरह से इस डैशबोर्ड से जोड़ा जाए क्योंकि प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर तो उसी पर पड़ता है। महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के संयुक्त निदेशक (वायु गुणवत्ता) डॉक्टर वीएम मोटघरे ने प्रदूषण पर निगरानी और उसके समाधान की दिशा में महाराष्ट्र सरकार द्वारा किये जा रहे कार्यों का जिक्र करते हुए कहा कि इस वक्त महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा संख्या में मॉनिटरिंग स्टेशन हैं। इनसे अधिक से अधिक डेटा एकत्र हो रहा है जो कि देश से किसी अन्य राज्य में नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सरकार वायु प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में कार्य योजनाओं पर बेहतर तरीके से काम कर रही है। यह जाहिर है कि वायु प्रदूषण के लिये वाहनों का धुआं 30 से 40% तक जिम्मेदार है। महाराष्ट्र सरकार ने भारत की सबसे बेहतरीन इलेक्ट्रिक वाहन नीति बनाई है। उम्मीद है कि महाराष्ट्र बेहतर हवा से संबंधित लक्ष्य हासिल करेगा।
पुणे नगर निगम के पर्यावरण कार्यालय में अधिकारी मंगेश दीघे ने क्लाइमेट ट्रेंड्स और रेस्पाइरर लिविंग साइंसेज द्वारा तैयार किये गये डैशबोर्ड को प्रदूषण नियंत्रण कार्ययोजनाओं के बारे में आम लोगों को जानकारी उपलब्ध कराने और उन्हें संरक्षण अभियान से जोड़ने के लिहाज से बेहद उपयोगी बताया। उन्होंने कहा कि सरकार के पास वायु प्रदूषण से निपटने के लिये कोई भी विभाग या शाखा नहीं है। वायु प्रदूषण एक ऐसा मसला है जिससे कई अलग-अलग विभाग जुड़े हुए हैं, लिहाजा इससे निपटने के लिये सर्वश्रेष्ठ विभागीय समन्वय की जरूरत है। मगर यह अक्सर मुमकिन नहीं हो पाता। ऐसे में जब हम वायु गुणवत्ता को लेकर कदम उठाने की बात करते हैं, तो यह बहुत मुश्किल हो जाता है। इसके लिये हमें एक अलग वायु प्रदूषण विभाग बनाने और परियोजना क्रियान्वयन इकाई बनाने की जरूरत है जो विभिन्न विभागों से सारा डेटा एकत्र कर उसका विश्लेषण करे और उसे सिटी एक्शन प्लान में शामिल करे। सीईईडब्ल्यू की प्रोग्राम लीड तनुश्री गांगुली ने कहा कि नवविकसित डैशबोर्ड से सिविल सोसायटी को कार्य योजनाओं से खुद को जोड़ने में बहुत मदद मिलेगी। डैशबोर्ड से हम सूचनाओं को बेहतर तरीके से न सिर्फ ढूंढ सकते हैं बल्कि उन्हें साझा भी कर सकते हैं। इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल कम्युनिटीज के प्रोग्राम लीड अमित सिंह ने कहा कि नगरीय कार्ययोजनाएं बेहद महत्वपूर्ण माध्यम हैं। इस लिहाज से यह डैशबोर्ड बहुत उपयोगी होगा। हमें कार्यक्रम को लागू करने के लिए जिम्मेदार लोगों की स्किल को बढ़ाने की जरूरत है। इसके लिये हमें सूचना-प्रौद्योगिकी आधारित कुछ उपायों की जरूरत है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि हम प्रदूषण के सभी स्रोतों से किस तरह से छुटकारा पाएं। आईआईटी मुम्बई में एनवायरमेंटल साइंस एण्ड इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर अभिषेक चक्रवर्ती ने कहा कि डैशबोर्ड के जरिए लोगों को इस बात के लिये जागरूक करने की जरूरत है कि वे वायु प्रदूषण को कम करने के प्रयासों को अपने घर से ही शुरू करें। उन्होंने प्रदूषण के द्वितीयक स्रोतों का जिक्र करते हुए कहा कि लॉकडाउन के दौरान भी वायु प्रदूषण के स्तर सामान्य से अधिक थे। प्रदूषण के द्वितीयक स्रोत इनका कारण थे, जिनके बारे में कोई भी बात नहीं करता। अब भी अनेक ऐसे इलाके हैं जहां पर प्रदूषण के स्तर सुरक्षित सीमाओं के पैमाने पर खरे नहीं उतरते। प्रोफेसर चक्रवर्ती ने कहा कि प्रदूषण नियंत्रण से जुड़े अधिकारियों को अक्सर तकनीकी मुद्दों की जानकारी नहीं होती। वे सिर्फ प्रस्ताव देखते हैं और तय करते हैं कि उस पर धन खर्च किया जाना चाहिये या नहीं। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) में भी एक एडवाइजरी कमेटी होनी चाहिए, जो तकनीकी विषयों के बारे में सलाह दे सके।
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