नयी दिल्ली, 06 दिसंबर, उच्चतम न्यायालय ने मुंबई पुलिस के पूर्व आयुक्त परम बीर सिंह पर महाराष्ट्र में दर्ज आपराधिक मुकदमों की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कराने का सोमवार को संकेत दिया। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम. एम. सुंदरेश की पीठ ने सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार से कहा कि वह श्री सिंह के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमों की जांच जारी रखें, लेकिन उन मामलों में आरोप पत्र दाखिल न करें। शीर्ष न्यायालय ने श्री सिंह पर दर्ज मुकदमों की किसी केंद्रीय एजेंसी से जांच कराने का संकेत देते हुए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से अपना पक्ष हलफनामे के जरिए एक सप्ताह में रखने को कहा और इस मामले की अगली सुनवायी के लिए 11 जनवरी 2022 तारीख मुकर्रर कर दी। सीबीआई के लिखित जवाब के बाद अदालत अगली तारीख पर कोई आदेश पारित कर सकती है। इस बीच भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के 1988 बैच के 56 वर्षीय अधिकारी श्री सिंह की गिरफ्तारी पर रोक जारी रहेगी। अदालत ने अंतरिम रोक संबंधी आदेश 22 नवंबर को दिया था। दो सदस्यीय पीठ के समक्ष सीबीआई ने बताया कि उसके पास राज्य के तत्कालीन गृह मंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ लगे आरोपों की जांच की जिम्मेदारी पहले से ही है तथा परम बीर सिंह के मामले की जांच करने में उसे कोई परेशानी नहीं है। राज्य सरकार द्वारा पिछले दिनों निलंबित श्री सिंह ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर अपने ऊपर लगे आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी पर रोक एवं पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराने की गुहार लगायी थी। सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र पुलिस को आदेश दिया था कि वह अगले आदेश तक श्री सिंह को गिरफ्तार न करे। इसके अलावा अदालत ने महाराष्ट्र एवं केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने को कहा था।
महाराष्ट्र सरकार ने विभिन्न कानूनी पहलुओं का जिक्र करते हुए सिंह पर लगे आरोपों की सीबीआई से जांच कराने की याचिका का विरोध किया है। पूर्व पुलिस आयुक्त ने महाराष्ट्र के श्री देशमुख पर आरोप लगाया था कि उन्होंने उनसे 100 करोड़ रुपए अवैध रूप से हर महीने देने की मांग की थी। पूर्व पुलिस आयुक्त श्री सिंह पर मुंबई के पुलिस आयुक्त रहते हुए एक होटल व्यवसाई से लाखों रुपए की अवैध वसूली करने समेत कई आपराधिक मामले मुंबई के विभिन्न थानों में दर्ज हैं। उनके अलावा मुंबई पुलिस के एक अन्य अधिकारी समेत कई अन्य सह आरोपियों में शामिल हैं। पूर्व पुलिस आयुक्त की याचिका का जवाब राज्य के गृह विभाग के संयुक्त सचिव ने एक हलफनामे के जरिए दिया है, जिसमें सीबीआई से जांच की मांग को अनुचित बताया गया है। हलफनामे में कहा गया है कि याचिकाकर्ता को होमगार्ड के महानिदेशक पद पर स्थानांतरित किया गया था। उसके तीन दिन बाद 20 मार्च को उन्होंने आरोपों का खुलासा किया था, जबकि भ्रष्टाचार का कथित मामला कई माह पहले का बताया गया है। सरकार का कहना है कि व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट 2014 के तहत याचिकाकर्ता सिंह को व्हिसल ब्लोअर नहीं माना जा सकता। राज्य सरकार का कहना है कि परम बीर सिंह को उनकी सेवा में कथित लापरवाही के कारण अखिल भारतीय सेवा (अनुशासन और अपील नियम) 1969 के तहत उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने की मंजूरी राज्य सरकार ने दी हुई है। महाराष्ट्र सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि अवैध वसूली समेत कई आरोपों का सामना कर रहे श्री सिंह की याचिका 16 सितंबर को बॉम्बे उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी थी और केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के समक्ष अपनी शिकायत रखने को कहा था। पिछली सुनवायी के दौरान उच्चतम न्यायालय ने संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों को ‘चिंताजनक’ बताया था। श्री देशमुख पर गंभीर आरोप लगाने के बाद लगातार विवादों एवं एक होटल व्यवसायी से अवैध उगाही समेत कोई आरोपों से घिरे श्री सिंह कई महीनों से लापता थे। उनके विदेश भागने की भी अटकलें लगाई जा रही थी। महाराष्ट्र पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश में जुटी थी। इस बीच गिरफ्तारी से रोक संबंधी आदेश के बाद वह मुंबई पुलिस की जांच में पिछले दिनों शामिल हुए थे।
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