फिरहाल, सपा ने अपने कार्यकाल में दंगाइयों, अपराधियों से यूपी को दहलाने के बाद फिर एक बार आगामी विधानसभा चुनावों में अपराधियों और दंगाइयों को टिकट बांटें हैं जो उसके दोहरे चरित्र व नफरत की राजनीति को दर्शाता है। बेशक, आपराधिक प्रवृत्ति के ख्यातनाम चेहरों के लिए भारतीय राजनीति शरण स्थली बन चुकी है। कई अपराधिक मामले दर्ज होने के उपरांत भी राजनीतिक दल इन्हें चुनाव में अपने दल का मुखौटा बनाकर मैदान में उतारते हैं और इनके रौब का इस्तेमाल आम जन को प्रभावित करने के लिए करते हैं। गौरतलब है कि अपराधियों को सदैव राजनीतिक संरक्षण प्राप्त रहा है। सभी राजनीतिक दलों के कई जनप्रतिनिधियों व पदाधिकारियों के खिलाफ संगीन आपराधिक मामले दर्ज हैं, लेकिन राजनीतिक प्रभाव के चलते इन मामलों की कोई सुनवाई नहीं होती है।
- सुप्रीम कोर्ट का सख्त निर्देश है यदि राजनीतिक पार्टियां किसी अपराधी को टिकट देती हैं तो उन्हें 48 घंटे में बताना पड़ेगा कि आखिर इसकी क्या जरुरत है। लेकिन पार्टियां है कि चुनाव आते ही सब भूल जाती है और अपराधियों, माफियाओं व बाहुबलियों की धौंस पर सत्ता हासिल करने में जुट जाती है। ऐसा सपा ही नहीं बल्कि हर पार्टियां करती है। यह अलग बात है कि सपा की बुनियाद ही अपराधियों, माफियाओं व बाहुबलियों की साख पर ही टिकी है और इस वक्त उसी को लेकर चर्चाएं आम-ओ-खास है। सहारनपुर दंगे का मास्टरमाइंड मोहर्रम अली व कैराना के नाहिद हसन को सपा द्वारा प्रत्याशी बनाएं जाने के बाद गिरफ्तारी पर सपाई जिस तरह आग बबूला है उससे तो बड़ा सवाल यही है आखिर दंगाईयो व अपराधियो की पहली पंसद सपा ही क्यों?
सहारनपुर दंगों के आरोपी मास्टरमाइंड मोहर्रम अली पप्पू एवं कैराना सीट पर दर्जनों मुकदमों में वांछित नाहिद हसन को उम्मींदवार बनाया है और भाजपा इसे पश्चिम में चुनावी मुद्दा बना दिया है और सवाल पूछ रही है क्या सपा ने गुंडों, दंगाइयों, माफियाओं वबाहुबलियों को टिकट देकर अपने गुंडाराज और दंगाराज की वापसी कराना चाहती है? दरअसल राजनीति को ‘हींग लगे न फिटकरी, रंग आए चोखा’ समझने वाले लोग राजनीति में तेजी से प्रवेश कर रहे हैं। बिना निवेश और न्यूनतम जोखिम के ज्यादा रिटर्न देने वाले पेशे के तौर पर समझ रखने वाले ये तथाकथित अपराधी जनता का भला कैसे कर सकते हैं। ये बड़ा सवाल तो है ही, लेकिन उससे बड़ा सवाल तो यही कि राजनीतिक पार्टियों को अपराधी ही क्यों भाते है? माना कि जिताऊ उम्मीदवार के लालच में इन्हें टिकट मिल जाता है और मतदाता अपनी प्रिय पार्टी के नाम पर आंखें मूंद लेता है और ये अपराधी से माननीय बन जाते है। वहीं मतदाता बाद में नाक-भौं सिकोड़ते हैं जब उन्हें पता चलता है कि उनके कल्याण के लिए आए धन को सांसद-विधायक महोदय गड़प कर गए। ऐसे हालात से बचने के लिए और देश में साफ-सुथरी राजनीति को बढ़ावा देने के लिए कानून-कायदों के साथ मतदाता बहुत बड़ा हथियार है। उसे चेतना ही होगा। क्योकि आपराधिक छवि के लोग अपने फायदे के लिए समाज में मौजूद बंटवारे को और बढ़ाते हैं। वे रक्षात्मक अपराधीकरण के जरिए अपनी जाति या समुदाय के भाई-बंधुओं के मान-सम्मान की रक्षा करने का वादा करते हैं। उन्हें यह मर्म पता है कि रोजाना के इन मुद्दों का दीर्घकालिक उपाय कर देने से लोगों को उनकी जरूरत नहीं रहेगी। अगर सरकारें लोगों को मूलभूत सुविधाएं प्रदान कर देंगी तो आपराधिक उम्मीदवार अपनी चमक खो देंगे। दरअसल जहां कानून बेहद लचर हो और विखंडित समाज हो, वहां एक उम्मीदवार की आपराधिक पृष्ठभूमि अहम पूंजी मानी जाती है। ऐसे उम्मीदवार मतदाताओं का पुनर्वितरण, दादागिरी, सामाजिक बीमा और झगड़ों का निपटारा करके खुद की साख बनाते हैं। यह चारों माध्यम राज्य के विशेषाधिकार हैं और किसी अपराधी उम्मीदवार के ये गुण उसे विश्वसनीय बनाते हैं।
इधर, प्रयागराज की इलाहाबाद पश्चिम विधान सभा सीट से असदुद्दीन ओवैसी जेल में कैद माफिया और पूर्व सांसद अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन को मैदान में उतारा है। हालांकि एआईएमआईएम ने अभी शाइस्ता परवीन की उम्मीदवारी की आधिकारिक घोषणा नहीं की है, लेकिन एआईएमआईएम के संभागीय प्रवक्ता अफसर महमूद ने पुष्टि करते हुए कहा कि शाइस्ता परवीन इलाहाबाद पश्चिम सीट से पार्टी की उम्मीदवार होंगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि सपा की सूची में एक बार फिर माफिया और अपराधियों का बोलबाला है। लोनी विधान सभा से टिकट पाए मदन भैया की गिनती माफिया में होती है, यह शायद अखिलेश यादव और जयंत चौधरी भूल गए हैं। मदन भैया पर 1982 से लेकर 2021 तक 31 मुकदमे दर्ज हैं जिसमें हत्या के मामले भी हैं। मुज़फ्फरनगर दंगों के बाद कैराना से हिंदू परिवारों के पलायन की याद दिलायी और कहा कि वहाँ से नाहिद हसन को टिकट देकर सपा ने अपने साम्प्रदायिक पक्ष को फिर सामने रखा है। नाहिद हसन पर शामली और सहारनपुर जिलों में 17 मामले दर्ज हैं। इसी तरह बुलंदशहर से टिकट पाए हाजी युनुस पर 23 आपराधिक मामले दर्ज हैं। स्याना से लड़ने वाले दिलनवाज़ का इतिहास भी आपराधिक रहा है। सीएम ने कहा कि ऐसे लोगों को टिकट देकर अखिलेश ने स्पष्ट कर दिया है कि सपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश को एक बार फिर साम्प्रदायिक आग में झोंकने को तैयार है। सपा आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम को टिकट दे सकती है.। खबर है कि जल्द ही इसकी औपचारिक घोषणा हो सकती है। अभी हाल ही में अब्दुल्ला आजम को जेल से जमानत मिली है। अब्दुल्ला आजम खान 2017 में पार्टी के टिकट पर रामपुर की स्वार विधानसभा सीट से विधायक चुने गए थे लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी नवाब काजिम अली और सुना वेद मियां ने अब्दुल्लाह आजम की उम्र को लेकर शिकायत दर्ज कराई थी जिसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अब्दुल्ला आजम का निर्वाचन रद्द कर दिया था। उनके उपर जमीन कब्जाने, फर्जी कागज़ात पेश करने समेत अन्य कुछ मामले दर्ज किए गए थे। उन्हें 43 मामलो में जमानत दे दी गई है। उनकी मां को भी पिछले साल जेल से रिहा कर दिया गया था। लेकिन खुद आजम खान अभी भी जेल में ही हैं।
--सुरेश गांधी--
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